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मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दानवीर कर्ण और वारेन बफेट एंड बिल गेटस

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दो अमरीकी महाधनाढ़य वारेन बफेट और बिल गेटस भारतीयों को दान की महिमा एवं दान करने के लिए प्रेरित करने पधारे। असल में तो सारा खेल इस दान महिमा के पीछे उनके बिजनैस का ही रहता है। वारेन बफेट को सुनने के लिए साफ कहा गया था कि पहले एक बीमा पॉलिसी खरीदो तो ही उनके कार्यक्रम में आ सकते हैं। दूसरा, बिल गेटस को आम आदमी जानता ही है कि दुनिया भर में जो कंप्‍यूटर चल रहे हैं वे अब उन्‍हें घर बैठे बिठाए खूब कमाई दे रहे हैं। कल की कोई चिंता नहीं है। वारेन बफेट भारतीयों को दान के लिए प्रेरित करते हुए भारत सरकार को भी इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि बीमा क्षेत्र में सीधे विदेशी धन की सीमा 26 फीसदी को खत्‍म कर सौ फीसदी कर दी जाए ताकि उनकी दुकान यहां अच्‍छी तरह जम सके। बिल गेटस के बारे में आम आदमी जानता ही है कि जो कंप्‍यूटर चल रहे हैं वे दिन रात उनकी तिजोरियां भर रहे हैं। भारतीय उद्योगपति इस समय सम्‍पत्ति सर्जन कर रहे हैं जबकि बफेट एवं गेटस यह काम कर चुके हैं। हालांकि, भारतीयों को दान की महिमा के बारे में बताने की जरुरत नहीं है। भारतीय उद्योगपति कारोबार के अलावा दान पुण्‍य का कार्य ढोल नगाड़ा बजाए ब

तय है आज लीबिया...कल कश्‍मीर

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अमरीका ने अफगानिस्‍तान और इराक से शायद कुछ सबक नहीं सीखे। इराक में सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने के लिए समूची दुनिया से सब कुछ झूठ बोला गया। इराक में परमाणु हथियार है, जैविक हथियार है, सद्दाम सब को मार देंगे। इराक में परमाणु निरीक्षण के बहाने उस पर झूठे आरोप लगाए गए। सारे के सारे अंतरराष्‍ट्रीय निरीक्षक अमरीका की रोटियों पर पलने वाले दलाल थे। यूरोप के इशारों पर नाचने वाले भांड थे। इराक की बेबिलोन संस्‍कृति वाले पूरे इराक को ऐसी आग में झोंक दिया, जो कभी नहीं बुझ सकती। बरसों लगेंगे, फिर से इराक में अमन चैन कायम करने के लिए। अफगानिस्‍तान के राष्‍ट्रपति हमीद करजई तो अमरीका की बैसाखी के बगैर दो दिन नहीं चल सकते। ता‍लिबान आज भी उन्‍हें कुर्सी से उतारकर भाग खड़ा होने पर मजबूर कर देगा। बराक ओबामा के आने के बाद यह आस बंधी थी कि दुनिया में अमन चैन लौटेगा। मार्टिन लूथर किंग से जिस व्‍यक्ति की तुलना की जा रही थी, एक अश्‍वेत जिस तरह से अमरीका का राष्‍ट्रपति बना और वाही वाही की जा रही थी, वह सब अब खत्‍म हुआ। दुनिया को भाषण देने की आड़ में शायद एक कुटिल चाल तैयार की जा रही थी। दुनिया के प्राकृतिक स

सुप्रीम इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर: बड़ी सोच का बड़ा नतीजा

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यदि आज कार्पोरेट इंडिया के बड़े दिग्गज प्रेमजी, मित्तल और नारायण मूर्ति आदि कुछ दान करते हैं तो वह अखबारों और टीवी चैनलों की हैडलाइन बन जाती है। अब हम थोड़ा पीछे चलते हैं। जयपुर के 45 वर्षीय स्व. चन्द्रभान शर्मा, जो एक स्वतंत्रा सेनानी थे, ईस्ट इंडिया कंपनी से बचने के लिए जयपुर से पलायन कर मुंबई के पवई आ गए। सर मोहम्मद यूसुफ से उन्होंने अंधेरी से लेकर कांजुरमार्ग तक 4600 एकड़ जमीन खरीदी। 1947 में जब देश आजाद हुआ तब स्व. शर्मा चाहते थे कि आईआईटी की स्थापना मुंबई में हो, इसके लिए उन्होंने मात्र एक रुपए में अपनी 1700 एकड़ जमीन इस संस्थान की स्थापना के लिए दे दी। इतना ही नहीं 170 एकड़ जमीन उन्होंने एलएंडटी को 35000 रुपए प्रति माह किराए पर दी, जो 99 साल की लीज पर है (38 साल अभी बचे हैं)। यह एक इतिहास है। समय निकलता गया, स्व. शर्मा के पोते भवानीशंकर शर्मा ने अपने दो पुत्रों विक्रम और विकास के साथ मिलकर पवई में अपनी बिजनेस यूनिट और कार्पोरेट ऑफिस बनाया है। भवानीशंकर ने 1969 में बिजनेस के क्षेत्र में प्रवेश किया और 1980 तक वे पवई के पहाड़ी क्षेत्रों में अधिग्रहण और क्रशिंग का काम करने लगे। 1983 में