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ब्‍लैक मंडे में डेढ़ दिन बाकी

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नए वित्‍त वर्ष की शुरूआत शेयर बाजार के लिए घातक हो सकती है। बीते वित्‍त वर्ष की आखिरी तारीख 31 मार्च को शेयर बाजार भले ही बढ़कर बंद हुआ, लेकिन बाजार के बंद होने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने अचानक कैश रिजर्व रेश्‍यो और रेपो रेट में बढ़ोतरी की जो घोषणा की, वह सोमवार को शेयर बाजार के लिए ब्‍लैक मंडे साबित हो सकता है। कैश रिजर्व रेश्‍यो में दो चरणों में आधे फीसदी की बढ़त होते ही बाजार से सीधे 15500 करोड़ रूपए और मनी मल्‍टीप्‍लायर असर से 70 हजार करोड़ रूपए कम हो जाएंगे। रेपो रेट में 25 अंक बढ़ते ही बैंकों को अल्‍प समय के लिए जरुरी पैसा जुटाना महंगा पड़ेगा। हालांकि, रिजर्व बैंक के इस कदम की आशंका सभी को थी लेकिन यह 24 अप्रैल को घोषित होने वाली मौद्रिक नीति से पहले उठा लिए जाएंगे, यह नहीं पता था। सरकार हर तरह से प्रयास कर रही है कि महंगाई की बढ़ती दर को रोका जाए, लेकिन यह नहीं हो पा रहा। भारतीय रिजर्व बैंक ने बढ़ती मुद्रास्‍फीति को थामने के लिए पिछले तीन महीनों में सीआरआर में तीसरी बार बढ़ोतरी की है। यही वजह है कि अब हर तरह के कर्ज पर ब्‍याज दरें बढ़ती जा रही हैं और आम आदमी को नई कठिनाईयों के

यूनिवर्सिटी शेयर बाजार में

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शिक्षा के विकास और विस्तार योजनाओं को परवान चढ़ाने के लिए मुंबई विश्वविद्यालय आम जनता से पैसा जुटाने पर विचार कर रहा है। यानी यह यूनिवर्सिटी अपने शेयर जारी करेगी और इनमें निवेशक लेनदेन कर सकेंगे। पूंजी बाजार में उतरने वाला यह देश का पहला विश्वविद्यालय होगा। विश्वविद्यालय के कुलपति डा. विजय खोले का कहना है कि विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या एवं जरूरी सुविधाओं को पूरा करने में असमर्थ होने के बाद विश्वविद्यालय खुद को मुंबई शेयर बाजार (बीएसई) में सूचीबद्ध कराने के लिए विचार कर रहा है। यह एक क्रियात्मक प्रयास है और इसके जरिए विश्वविद्यालय वित्तपोषण को बेहतर बनाने के अलावा आगामी वर्ष में वैश्विक स्तर पर अपनी साख स्थापित करेगा।

मीठे पर नमक डाला और जले निवेशक

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शेयर बाजार में एक बार फिर चीनी कंपनियों के शेयरों को लेकर खूब हलचल मची हुई है। कुछ मीडिया और रिसर्च हाउस यह रिपोर्ट बार बार पेश कर रहे हैं अब चीनी कंपनियों के शेयरों में बड़ी तेजी है या फिर मंदी आने वाली है। कई बार तो खबरों को इस तरह से पेश किया जा रहा है कि अनेक निवेशकों ने कल ही चीनी कंपनियों के शेयरों में कड़वा स्‍वाद चखा। सरकार चीनी निर्यात की अनुमति नहीं देगी, इस खबर को फैलाकर चीनी शेयरों के निवेशकों को कल मीडिया ने झटका दिया। जबकि खबर का गलत अर्थ निकाला गया है। असली बात यह है कि सरकार ने 30 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी है जो साढ़े सात लाख टन के चार चरणों में दी गई है। यानी साढ़े सात लाख टन चीनी का निर्यात होने के बाद दूसरे साढ़े सात लाख टन निर्यात की अनुमति दी जाएगी। जबकि कल एक मीडिया हाउस ने चीनी निर्यात के पहले चरण को पूरा होने की घोषणा के बाद जस्‍ट इन कहकर सरकार चीनी निर्यात की अनुमति नहीं देगी कहा और चीनी शेयर तीन से पांच फीसदी नीचे आ गिरे। सरकार ने अप्रैल से जून के लिए चीनी का फ्री सेल कोटा दस फीसदी कमकर 38 लाख टन दिया है। जबकि चीनी निर्यात के दूसरे चरण का रिलीज ऑर्डर

करोड़ों क्रेडिट-डेबिट कार्डों से चोरी

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बीबीसी हिंदी वेबसाइट ने एक खबर दी है कि अमरीका और ब्रिटेन में इस्‍तेमाल हुए साढ़े चार करोड़ क्रेडिट और डेबिट कार्डों से कंप्‍यूटर हैकरों ने अहम जानकारियां चोरी कर ली हैं। गोपनीय जानकारियां चोरी करने का ये सबसे बड़ा मामला माना जा रहा है। पूरी खबर इस बीबीसी पर : http://www.bbc.co.uk/hindi/business/story/2007/03/070330_cardhackers_usbrit.shtml

अमरीकी डॉलर गया भाड़ में

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एक बहुत पुरानी कहावत है जापानी बीबी, फ्रैंच खाना और अमरीकी डॉलर जिस किसी के पास हो, वह बड़े नसीब वाला होता है। कहा जाता था कि अमरीकी डॉलर समूची दुनिया पर राज करता है लेकिन अब शायद इसके बुरे दिन भी आ रहे हैं। अमरीकी अर्थव्‍यवस्‍था में छाई मंदी को दूर करने के लिए वहां की हर सरकार ने खूब प्रयास किए लेकिन सफलता नहीं मिली। अमरीकी डॉलर दिन पर दिन कमजोर होता जा रहा है और दूसरी मुद्राएं मजबूत। ऐसे कई देश जिनकी अर्थव्‍यवस्‍था अमरीकी डॉलर से जुड़ी थी, अब यूरो को अपना रहे हैं। अनेक देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार में अमरीकी डॉलर जमा करने के बजाय यूरो या दूसरी मजबूत मुद्राओं को वरीयता दे रहे हैं। ऐसे में अमरीका का परेशान होना स्‍वाभाविक है। अमरीकी कंपनियों को नए बाजारों की तलाश हैं और यही वजह है कि अमरीका एक के बाद एक देश पर हमला कर अपनी कंपनियों को वहां की अर्थव्‍यवस्‍था को हड़पने में मदद कर रहा है। जिन देशों ने अमरीकी दादागिरी के आगे सिर झुका लिया वहां देखिएं सारे बड़े कारोबारों में अमरीकी कंपनियों का वर्चस्‍व बढ़ता जा रहा है और घरेलू कंपनियां बर्बाद हो रही हैं। इसी प्रसंग में एक छोटा सा देश ईरान भ