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शेयर बाजार तो चमकेगा ही

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भारत और अमरीका के बीच परमाणु करार पर वामपंथियों ने जो रुख दिखाया और सरकार से समर्थन वापस लेने की बात तक कही अब उससे हर सांसद बचता नजर आ रहा है। मौजूदा यूपीए सरकार पूरे पांच साल चले इसकी पहल दस सांसदों ने शुरू कर दी है। इन सांसदों की अगुआई कर रहे राहुल बजाज का कहना है कि इस पहल का उद्देश्‍य सभी दलों की सरकार बनाकर मध्‍यावधि चुनावों को टालना है। ऐसे चुनाव से देश पर तगड़ा वित्‍तीय बोझ पड़ता है। हमारा आश्‍य मौजूदा लोकसभा अपनी अवधि पूरी करे यही है। इस समय मध्‍यावधि चुनाव होते हैं तो 2700 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस खर्च में राजनीतिक दलों द्धारा किए जाने वाला खर्च शामिल नहीं है। इस प्रयास की पहल भले ही दस सांसदों ने की हो, लेकिन हरेक पार्टी के सांसद के मन में तो यही है कि मध्‍यावधि चुनाव न हो। राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चाओं पर भरोसा करें तो देश में मध्‍यावधि चुनाव की संभावना कम ही है क्‍योंकि सभी दल जानते हैं कि भाजपा ने समय से पहले चुनाव कराकर अपनी सत्‍ता खो दी थी। वामपंथियों से लेकर दक्षिणपंथी तक इस बात के हिमायती हैं कि मध्‍यावधि चुनाव को टाला जाना चाहिए। यदि देश मध्‍यावधि चुनाव की

मुनाफा वसूली के साथ करें शेयरों में कामकाज

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यूरोपियन सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ इंग्‍लैंड ने भले ही ब्‍याज दरों को यथावत रखा हो लेकिन शेयर निवेशकों की नजर 18 सितंबर को होने वाली अमरीकी फेडरल रिजर्व की बैठक पर है। इस बैठक में ब्‍याज दरों में कटौती की उम्‍मीद की जा रही है। लेकिन सब प्राइम की छाया से अभी अमरीकी अर्थव्‍यवस्‍था उबरी नहीं है। हाउसिंग और एम्‍पलायज के कमजोर आंकडों ने इस अर्थव्‍यवस्‍था को और हिला दिया है। लंदन मेटल एक्‍सचेंज में अलौह धातुओं के बढ़ रही आपूर्ति ने इन धातुओं के भाव को तोड़ दिया है जिसका असर मेटल शेयरों पर पड़ रहा है। हालांकि, घरेलू मोर्चे पर मुद्रास्‍फीति दर 16 महीने की निचले स्‍तर पर आ गई है लेकिन राजनीतिक स्थिरता नहीं है। ऐसा लग रहा है जैसे कि सभी राजनीतिक दल आर्थिक सुधारों पर ब्रेक लगाकर मध्‍यावधि चुनाव की तैयारी में जुट रहे हैं। अगले सप्‍ताह यानी दस सितंबर को चालू होने वाले नए सप्‍ताह में बीएसई सेंसेक्‍स के 15125 से 15925 के बीच घूमने की उम्‍मीद है। पिछले दिनों की भारी गिरावट में बीएसई सेंसेक्‍स 13790 अंक तक आ गया था जो अब तक 1925 अंक बढ़ चुका है। यही वजह है निवेशकों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि शेयर बाजार

मार्च-2009 तक भरे जा सकते हैं बिलेटिड रिटर्न

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वित्त वर्ष 2006-07 के लिए टैक्स रिटर्न भरने की अंतिम तारीख 31 जुलाई थी। इस तारीख से पहले लोगों ने टैक्स रिटर्न भरने के लिए काफी भागदौड़ की और कई-कई पेजों का नया टैक्स रिटर्न भरा। पर इस भागदौड़ के बावजूद बहुत से लोग ऐसे छूट गए, जो टैक्स रिटर्न नहीं भर पाए। उनके लिए एक अच्छी खबर। वे 31 मार्च, 2009 तक रिटर्न भर सकते हैं। पर इसमें एक 'खतरा' भी है। अगर आयकर अधिकारी ने उनके पेपर का असेसमेंट कर लिया, तो हो सकता है कि उनको 5,000 रुपये तक जुर्माना देना पड़ जाए। इसके अतिरिक्त भी उन्हें कर अदा करने में देरी के लिए 1 प्रतिशत मासिक की दर से ब्याज देना पड़ेगा। क्या है बिलेटिड रिटर्न इनकम टैक्स एक्ट की धारा 139(4) करदाताओं को अंतिम तारीख के बाद भी रिटर्न भरने की अनुमति देती है। इसके तहत रिटर्न असेसमेंट इयर के अंत के बाद एक साल के भीतर भरा जा सकता है। इसको हम और साफ करते हैं। वित्त वर्ष 2006-07 के लिए रिटर्न भरने की अंतिम तारीख 31 जुलाई, 07 थी। इस वित्त वर्ष के लिए असेसमेंट इयर 2007-08 होगा। यानी कि असेसमेंट वर्ष 31 मार्च, 08 को पूरा होगा। ऐसे में असेसमेंट साल के खत्म होने के बाद एक साल तक या

सेंसेक्‍स हजार अंक उछलेगा !

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भारतीय शेयर बाजार ने न्‍यूक्लियर डील पर वामपंथियों के रवैये से जो मात खाई थी वह दूर हो गई है। न्‍यूक्लियर डील के संबंध में समिति का गठन कर दिया गया है और अब इस बारे में समिति मिलकर निर्णय करेगी कि भारत को क्‍या करना चाहिए। समूचे मामले को शां‍त करने के लिए समिति बनाई गई लेकिन एक बात तय है कि इस संबंध में समय समय पर हो हल्‍ला होता रहेगा ता‍कि पश्चिम बंगाल और केरल के मतदाताओं को यह लगते रहना चाहिए कि वामपंथी मौजूद है और उनके वोट बैंक में कोई दरार नहीं पड़ पाए। सत्‍ता का स्‍वाद चख रहे वामपंथी भी नहीं चाहते कि कुर्सी का दम ही निकल जाए अन्‍यथा ऑल क्लियर डील कहां करेंगे। बड़ी मुश्किल से मिलती है कुर्सी। वामपंथी भी चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल और केरल उनके हाथ से न निकले बस इतना तो हो हल्‍ला करने ही दो। वामपंथियों को दूसरे रुप में धन्‍यवाद देना चाहिए कि अनेक निवेशकों को बेस्‍ट स्‍टॉक्‍स सस्‍ते में मिल गए और वापस सेंसेक्‍स वहीं पहुंच गया, जहां से वह गिरा था। अब शेयर ऑपरेटरों, पंटरों की बात पर भरोसा करें तो अक्‍टूबर मध्‍य तक सेंसेक्‍स 16500 के आसपास दिखाई देगा। इनका कहना है कि सभी जगह सब कुछ ठीकठा

शेयर बाजार में रहेगी गर्मी, चीनी शेयरों से बचें

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दुनिया भर के शेयर बाजारों में आए सुधार के साथ अब भारतीय शेयर बाजार भी ताल मिला रहा है। हालांकि, इस तेजी की रेस में भारतीय शेयर बाजार पहले पिछड़ रहे थे क्‍योंकि भारत अमरीका परमाणु करार पर वामपंथियों ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन लेने की बात कही थी। हालांकि, अडि़यल वामपंथी अब थोड़े नरम पड़े हैं और न्‍यूक्लियर डील को क्लियर करवाने के लिए एक समिति बनाई गई है। निवेशकों को इस समय भी सचेत रहने की जरुरत है क्‍योंकि समिति बन जाना राजनीतिक स्थिरता की गारंटी नहीं है। वामपंथी कभी भी इस मुद्दे पर सरकार का साथ छोड़ सकते हैं या अपने बयानों से बाजार पर बुरा असर डाल सकते हैं। इस समय सभी राजनीतिक दल देश में मध्‍यावधि चुनाव की बात सोच जरुर रहे हैं। सभी दल इस गणना में लगे हैं कि यदि इस समय मध्‍यावधि चुनाव होते हैं तो उन्‍हें कितना लाभ होगा और जब तक कांग्रेस की रिपोर्ट नहीं बन जाती, मध्‍यावधि चुनाव की ओर बढ़ने का सवाल ही नहीं उठता। वामपंथी भी एक बात यह अच्‍छी तरह जानते हैं कि वे अपने बूते कभी देश में सरकार नहीं बना सकते और मौजूदा मौके को खोना उन्‍हें ठीक नहीं लगता क्‍योंकि सत्‍ता हमेशा ताकत देती हैं। आज स