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फ्यूचर एंड ऑप्‍शन के नए खिलाड़ी

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सेबी जल्‍दी ही कुछ और कंपनियों को फ्यूचर एंड ऑप्‍शन की सूची में शामिल करने को मंजूरी देगी। जिन कंपनियों को इस सूची में शामिल किया जा रहा है, उनके नाम इस तरह हैं। यहां एक बात मैं स्‍पष्‍ट कर दूं कि यह सूची सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक है। इस सूची के इस महीने के आखिर तक आने के आसार हैं। हिंदुस्‍तान मोटर्स एचएमटी आरसीएफ पीटीसी इंडिया सेंचुरियन बैंक हिमाचल फ्युच्‍यूरिस्टिक मर्केटर लाइंस पंजाब ट्रैक्‍टर डीसीडब्‍लू

क्‍या बात है, वाह मनी ! की

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कुछ बातें किताबों में लिखी जाती हैं और कुछ जीवन का यथार्थ होता है। जीवन का यथार्थ, जो आदर्श से नहीं, मनी से संचालित है। आज हम एक ऐसे ब्‍लॉग के बारे में बात करने वाले हैं, जो जीवन की इसी मुख्‍य धुरी पर के बारे में बात करता है। वाह मनी ! आपको मनी के महत्‍व और उसे ठीक तरीके से सुनियोजित करना सिखाता है। पूरी ब्‍लॉग चर्चा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

केशोराम इंडस्‍ट्रीज में बाकी है कमाई

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बसंत कुमार बिड़ला समूह की कंपनी केशोराम  इंडस्‍ट्रीज का शेयर आज 3 जनवरी 2008 को 595 रुपए पर बंद हुआ है लेकिन अभी भी इसमें विपुल संभावनाएं हैं और यह निश्‍चित रुप से बढ़ेगा। हालांकि, 5 अप्रैल 2007 को इसका भाव 295 रुपए था जो 11 दिसंबर 2007 को 675 रुपए पहुंच गया। केशोराम इंडस्‍ट्रीज के कार्य प्रदर्शन को देखते हुए मध्‍यम अवधि में इसका शेयर 750 रुपए की ऊंचाई पर पहुंच सकता है। इसका बॉम्‍बे स्‍टॉक एक्‍सचेंज में कोड 502937 है। केशोराम इंडस्‍ट्रीज सीमेंट, ऑटोमोबाइल टायर एवं टयूब, विस्‍कॉस फिलामेंट यार्न एवं ट्रांसपरेंट पेपर, हैवी केमिकल्‍स, कॉस्टिक सोडा, हाइड्रोक्‍लोरिक एसिड, स्‍पन पाइप्‍स और रिफ्रैक्‍टरीज के उत्‍पादन से जुड़ी हुई है। कंपनी की एक डिवीजन केशोराम रेयॉन का पश्चिम बंगाल के नयासारी में रेयॉन संयंत्र है जिसकी स्‍थापित क्षमता साढ़े छह टन सालाना है। इस संयंत्र में 3600 टन सालाना सेलोफेन पेपर, 3600 टन सालाना कार्बन-ड‍ी-सलफाइड और 36500 टन सालाना सलफ्यूरिक एसिड का उत्‍पादन किया जाता है। केशोराम की सीमेंट ब्रांड बिड़ला शक्ति है, जबकि टायर बिड़ला टायर्स के नाम से बिकते हैं। केशोराम इंडस

बैंक ऑफ इंडिया में है दम

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देश का प्रमुख सरकारी बैंकों में से एक बैंक ऑफ इंडिया क्‍वॉलिफाइड इंस्‍टीटयूशनल प्‍लेसमेंट यानी क्‍यूआईपी के माध्‍यम से 1300-1400 करोड़ रुपए जुटाएगा। इस कदम के बाद इस बैंक का पूंजी पर्याप्‍तता अनुपात सितंबर 2007 के 12.5 फीसदी से बढ़कर 13 फीसदी से अधिक हो जाएगा। बैंक  बेस द्धितीय की शर्तों के मुताबिक पूंजी बढ़ा रहा है। साथ ही क्रेडिट में विस्‍तार और नए कारोबार मसलन जीवन बीमा संयुक्‍त उद्यम में उतरने की तैयारी कर रहा है। बैंक की टियर प्रथम कैपिटल 7.08 फीसदी के मुकाबले बढ़कर आठ फीसदी से ज्‍यादा हो जाएगी। बैंक ऑफ इंडिया में सरकार की भागीदारी 69.47 फीसदी है जो इस इश्‍यू के बाद घटकर 64.47 फीसदी आ जाएगी। बैंक ने इस बात के संकेत दिए हैं कि अगले दो साल तक उसका इरादा अपनी और इक्विटी वितरण का नहीं है। बैंक ऑफ इंडिया पिछले कुछ साल से तेजी से विकास के रास्‍ते पर बढ़ रहा है। वित्‍त वर्ष 2004 से वर्ष 2007 के बीच इसकी कंसोलिडेटेड जमाओं और एडवांस में 19 फीसदी और 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वित्‍त वर्ष 2008 की पहली छमाही में इसकी जमा में 25.5 फीसदी एवं एडवांस में 27.6 फीसदी का इजाफा हुआ है। बैंक ऑफ

शेयर बाजार के लिए रिकपलिंग का वर्ष

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नया वर्ष का पहला दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए एक शानदार दिन रहा। लेकिन अब पूरे साल यह बाजार कैसा रहेगा, क्‍या अमरीका में मंदी के बढ़ रहे धीमे कदमों की आहट भारतीय बाजार पर पड़ेगी या नहीं। दुनिया भर के शेयर बाजारों में होने वाली उठापटक से हमारे बाजार अछूते रहेंगे या फिर हर असर हमारे बाजारों पर देखने को मिलेगा। यानी यह वर्ष डिकपलिंग का होगा या रिकप‍लिंग का। गोल्‍डमैन सेक्‍स और मार्गन स्‍टेनली के इक्विटी बाजार के विशेषज्ञों ने शेयर बाजारों के लिए सबसे पहले डिकपलिंग की थ्‍योरी विकसित की थी। यह एक ऐसी विचारधारा है जिसके तहत कोई एक निश्चित बाजार अपना कामकाज दुनिया के दूसरे बाजारों के साथ किसी तरह के संबंध रखे बगैर या बाहरी परिबलों से प्रभावित हुए बगैर चालू रखते हैं। यह थ्‍योरी नई होने के बावजूद तर्कसंगत है और इसे स्‍वीकार करने का कोई कारण भी नहीं है। वर्ष 2007 का आखिर महीना विदा हो चुका है और अमरीका में मंदी फैलने का भय थम नहीं रहा है। क्रेडिट बाजार की होती ऐसी तैसी, सबप्राइम और डॉलर में बढ़ती कमजोरी जैसे कारकों ने डिकपलिंग थ्‍योरी के पक्षधरों को भी अपने दावे के संबंध में विचार करने पर विवश