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आम बजट तय करेगा शेयर बाजार की चाल

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भारतीय शेयर बाजार के लिए सोमवार 6 जुलाई का दिन बेहद अहम है। आम बजट वाला यह दिन घरेलू शेयर बाजार की अगली चाल तय करेगा और यह भी पता चल जाएगा कि यदि तेजी की चाल आती है तो कौन-कौन से सैक्‍टर निवेशकों के लिए मध्‍यम से लंबी अवधि के लिए फायदेमंद साबित होंगे और यदि बाजार गिरता है तो किन सैक्‍टरों से बचना चाहिए। हालांकि, लंबी अवधि की दृष्टि से देखें तो आज किए जाने वाले कड़े निर्णय भी मीठे साबित हो सकते हैं। देश की अर्थव्‍यवस्‍था को बचाने और उसे गति देने के लिए काफी कुछ मरम्‍मत की जरुरत पड़ेगी। वेबदुनिया में पिछले दिनों शेयर बाजार की रिपोर्ट में भारतीय उपमहाद्धीप की बदल रही स्थिति का जिक्र किया था कि श्रीलंका, पाकिस्‍तान और भारत में ऐसे कारक बन रहे हैं कि आने वाले वर्ष भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के होंगे। उसमें से सभी बातें सच साबित हुई हैं। हमने कहा था कि श्रीलंका में तमिल चीतों का दम निकल जाएगा, वह हो चुका है। पाकिस्‍तान में तालिबान को घेरकर मारे जाने की योजना पर इन दिनों स्‍वात घाटी में जोरशोर से काम चल जा रहा है। तीसरा, भारत में लोकसभा चुनाव के तहत एक मजबूत सरकार बगैर वामदलों के आई जिससे मध्‍यावध

शेयर बाजार की दिशा का अहम समय

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भारतीय शेयर बाजार के लिए चार मई से शुरु हो रहा सप्‍ताह बेहद अहम है और 16 मई तक शेयर बाजार अनेक उतार चढ़ाव का सामना करता रहेगा। स्‍वाइन फ्लू और राजनीतिक जोड़तोड़ इन दो सप्‍ताहों में शेयर बाजार की अगली दिशा तय कर देंगे। हालांकि, लोकसभा के नतीजों से ही यह पता चल सकेगा कि दिल्‍ली में किस दल के हाथ कुर्सी लगेगी और उसके मित्र दल कौन कौन होंगे लेकिन नतीजों से पहले ही जिस तरह की हलचल राजनीतिक गलियारों में हो रही हैं उसका आम जनता से मिले वोट से कोई सारोकार नहीं है। केवल व्‍यक्तिगत स्‍वार्थ को सर्वोपरि रखा जा रहा है क्‍योंकि जनता से तो अब पांच साल बाद मिलना है। शेयर बाजार की इस रिपोर्ट में पिछली बार भारतीय उपमहाद्धीप की बदल रही स्थिति का जिक्र किया था कि श्रीलंका, पाकिस्‍तान और भारत में ऐसे कारक बन रहे हैं कि आने वाले वर्ष भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के होंगे। श्रीलंका में तमिल चीतों का काफी दम निकल गया है, जबकि पाकिस्‍तान में ओबामा प्रशासन ने जरदारी को कमजोर खिलाड़ी मानते हुए नवाज शरीफ से पींगे बढ़ाना शुरु कर दिया है ताकि उन्‍हें कुर्सी का आनंद देने की एवज में तालिबान को पाकिस्‍तान में घेरकर मारा जा

भारतीय शेयर बाजार नई तेजी की ओर

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अंतरराष्‍ट्रीय इक्विटी विश्‍लेषक फर्म इलियटवेव ने जब यह कहा कि भारतीय शेयर बाजार का सेंसेक्‍स अगले 15 साल में एक लाख अंक पर पहुंच जाएगा तो अनेक निवेशकों और विश्‍लेषकों ने इसे हसंने के अंदाज में लिया कि आज क्‍या होगा, यह बताओं, 15 साल किसने देखें। लेकिन एशियाई बाजारों में आने वाले दिन भारतीय शेयर बाजार के होंगे। हो सकता है घरेलू शेयर बाजार चीन जैसे बाजार को भी पीछे छोड़ दें। भारतीय शेयर बाजार के बेहद मजबूत बनने के अनेक कारक अब पैदा होते जा रहे हैं जिसमें अति धैर्यवान निवेशक भारी भरकम मुनाफा कमाने की स्थिति में होंगे। लेकिन इस खजाने को हासिल करने के‍ लिए आज किए गए निवेश पर धैर्य रखना होगा। यहां धैर्य रखने की समय सीमा पर एक बात साफ कर दूं कि धैर्य का मतलब यह कदापी नहीं हैं कि आज शेयर खरीदें और अगले 15 साल तक उन्‍हें न देखें। अपने निवेश पर बीच बीच में मुनाफावसूली करते रहें और हर गिरावट पर फिर से खरीद जरुर करते रहें। यह न तो इंट्रा डे ट्रेडिंग है और ना ही चुपचाप बैठने वाली सलाह। भारतीय उपमहाद्धीप में हमारे शेयर बाजार के लिए जो सकारात्‍मक कारक पैदा हो रहे हैं वे भौगोलिक हैं। श्रीलंका में पिछल

शेयर बाजार को आखिरी धक्‍का मारने की तैयारी !

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मंदी में डूबे शेयर बाजार को क्‍या अब आखिरी धक्‍का मारने की तैयारी हो रही है। आम निवेशक के विचारों को आगे रखें तो शेयर बाजार में मंदी का अंत नहीं है और उन्‍हें ऐसा लगता है सब कुछ जीरो हो जाएगा। लेकिन ऐसा है नहीं। आम निवेशक की मनोस्थिति में उसे जीरो के अलावा कुछ नहीं दिख रहा जबकि अंधेरे के बाद उजाला और उजाले के बाद अंधियारा प्रकृति का नियम है। शेयर बाजार में यह कोई पहली बार मंदी नहीं आई है। ऐसा कई बार हुआ है लेकिन अब तक निचले और आकर्षक स्‍तर पर लेवाली कर फिर लौटी तेजी में मुनाफाकमाने वाले इस बार की मंदी में गच्‍चा खा गए हैं। हर घटे स्‍तर को निचला स्‍तर मानकर शेयर खरीदने वालों ने पैसा कमाया ही नहीं, बल्कि गंवाया ही है। शेयर बाजार की तलहटी का पता न लगते देख अब ऐसे निवेशकों ने खरीद रोक दी है। मंदडि़यों ने पूरे देश को ही नहीं बल्कि सारी दुनिया को मंदी में उतार दिया है। बस बेचो..बस बेचो...यही एक शब्‍द सब जगह गुंज रहा है। लेकिन हर बार ऐसा हुआ है पूरी तरह मंदी या तेजी में डूबा देने के बाद खिलाड़ी खेल बदलते हैं। यदि आपको याद हो तो दिसंबर 2008 में हर कोई मानकर चल रहा था कि रिलायंस पावर का आईपीओ

शेयर बाजार में अगली गिरावट से पहले पुलबैक रैली संभव

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‘अवर इकॉनामी आर लैस इफेक्‍टेड देन अदर्स...’ भारत दुनिया भर की मंदी से अलग है, देश की आर्थिक विकास दर को कोई आंच नहीं आएगी, भारतीय अर्थव्‍यवस्‍‍था स्‍थानीय मांग पर आधारित है...जैसी बात कहकर आम जनता और निवेशकों को भ्रम में रखने वाले हमारे अर्थशास्‍त्री नेताओं और ब्‍यूरोक्रेटस को अब पता चलने लगा है कि वाकई अमरीकी व यूरोपीय मंदी हमारी तरफ तेजी से बढ़ रही है। शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट से पहले केवल आम चुनाव तक एक पुलबैक रैली की संभावना है जिसे हमारे यहां सुधार की संज्ञा दी जा रही है लेकिन स्थिति खराब होने के आसार अधिक है। आर्थिक विकास की दर को नौ से आठ और फिर सात फीसदी बताने वाले अर्थशास्‍त्री अब स्‍वीकार कर रहे हैं कि यह 5.3 से 5 फीसदी ही रह सकती है। आम उपभोक्‍ता वस्‍तुओं की मांग घटने से ही महंगाई दर 3.36 फीसदी पहुंची हैं। जबकि हकीकत में जीवन की जरुरत वाली वस्‍तुओं के दाम वाकई उतने नहीं घटे हैं जितनी महंगाई दर का कम होना बताया जा रहा है। औद्योगिक उत्‍पादन के साथ अब कृषि क्षेत्र भी विकास दर में गिरावट दिखा रहा है। ऐसे में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए मौजूदा यूपीए सरकार ने सरकारी तिजोरी पूरी