सेंसेक्स का अगला मुकाम 18 हजार !
मुंबई शेयर बाजार के सेंसेक्स ने ज्योंहि 15 हजार के अंक को छूआ, लाखों निवेशकों के चेहरे खिल उठे। लेकिन सभी के चेहरों पर एक सवाल उभरा कि सेंसेक्स का अगला मुकाम कहां। क्या यह तेजी जारी रहेगी या फिर इस स्तर पर अपना पोर्टफोलियों हल्का कर लिया जाना चाहिए। हालांकि, यह सच है कि मुंबई शेयर बाजार के सेंसेक्स ने 14 हजार से 15 हजार अंक की दूरी 145 कारोबारी दिवसों में पूरी की है जो मौजूदा तेजी में लगा सर्वाधिक वक्त है। इस तेजी के दौर में अनेक नकारात्मक कारक मसलन मुद्रास्फीति में उछाल, ब्याज दरों में हुई बढ़ोतरी, अमरीकी डॉलर का नरम होना जैसे कारकों को नजरअंदाज करते हुए निवेशकों ने उभरते भारतीय शेयर बाजार में खरीद जारी रखी।
फर्स्ट ग्लोबल के निदेशक शंकर शर्मा मानते हैं कि पब्लिक इश्यू में छोटी बचतों के माध्यम से करोड़ों रुपए का निवेश हुआ है और अभी इसमें बेहतर होना बाकी है। शर्मा की नजर में शेयर बाजार में गर्मी का दौर बना रहेगा। लेकिन कुछ ऐसे निवेशक जो मानते हैं कि अब उन कंपनियों में निवेश किया जाना चाहिए जिनके हाथ में सूचकांक को नई ऊंचाई तक ले जाने की कमान हो। साथ ही ऐसी मिड कैप कंपनियों की भी तलाश करनी चाहिए जहां तेजी से पैसा कमाया जा सके।
फर्स्ट ग्लोबल के निदेशक शंकर शर्मा मानते हैं कि पब्लिक इश्यू में छोटी बचतों के माध्यम से करोड़ों रुपए का निवेश हुआ है और अभी इसमें बेहतर होना बाकी है। शर्मा की नजर में शेयर बाजार में गर्मी का दौर बना रहेगा। लेकिन कुछ ऐसे निवेशक जो मानते हैं कि अब उन कंपनियों में निवेश किया जाना चाहिए जिनके हाथ में सूचकांक को नई ऊंचाई तक ले जाने की कमान हो। साथ ही ऐसी मिड कैप कंपनियों की भी तलाश करनी चाहिए जहां तेजी से पैसा कमाया जा सके।
शेयर बाजार में तेजी का अगला दौर शुरू होने से पहले निवेशकों को कुछ झटकों के लिए भी तैयार रहना होगा। संवेदी सूचकांक को 14 हजार से 15 हजार तक का सफर तय करने में सात महीने लगे जबकि वित्तीय और तकनीकी विश्लेषकों का मानना था कि मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक इस एक हजार अंक की दूरी बहुत जल्दी पार कर लेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मार्च में यह भारतीय रिजर्व बैंक के अर्थव्यवस्था में आए उबाल को शांत करने वाले कदम उठाने के सुझावों से गिरकर 12500 अंक के स्तर तक आ गया था। विश्लेषक मानते हैं कि 15 से 16 हजार तक के सफर से पहले कुछ ऐसे झटके निवेशकों को झेलने पड़ सकते हैं जिसके लिए उनका मन तैयार नहीं है। विश्लेषकों की राय में फिलहाल संवेदी सूचकांक के 15400 के स्तर से ज्यादा बढ़ने के आसार दिखाई नहीं देते और इस स्तर तक पहुंचते पहुंचते तकनीकी करेक्शन जरुर आएगा और सूचकांक 14400 से 14800 के बीच दिखाई दे सकता है। हालांकि, आम निवेशक की दृष्टि से देखें तो मुंबई शेयर बाजार में पांच साल पहले जिसने एक लाख रुपए निवेश किए आज उसकी कीमत 5.07 लाख रुपए पहुंच गई है, जबकि अमरीकी बाजार में इस निवेश की कीमत 1.56 लाख रुपए है। बीएसई का बाजार पूंजीकरण भी 1.1 खरब डॉलर पहुंच गया है जो बड़ी उपलब्धि है।
शेयर बाजार की अगली चाल पर डीएसपी मैरिल लिंच के चेयरमैन हेमेन्द्र कोठारी कहते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था व कार्पोरेट जगत बेहतर प्रदर्शन कर रहा है जिसकी वजह से ही शेयर बाजार ने तेजी से 15 हजार तक सफर तय किया और इसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। हालांकि, मौजूदा स्तर पर बाजार कंसालिडेटेड हो सकता है लेकिन लंबी अवधि की बात की जाए तो तेजी बनी रहेगी। जबकि कुछ शेयर विश्लेषक कहते हैं कि शेयरों में दैनिक कारोबार करने वालों को अपना पोर्टफोलियो कम करना चाहिए और ऐसे निवेशकों को 30 से 50 फीसदी नकदी अपने हाथ में रखनी चाहिए ताकि बाजार के नीचे जाने पर बेहतर स्टॉक कम कीमत पर खरीदे जा सके। साथ ही यह समय पेनी स्टॉक से निकल जाने का है। इस राय से जियोजिट फाइनेंशियल सर्विसेज के गौरांग शाह और नेटवर्थ स्टॉक ब्रोकिंग के कानन शाह सहमत हैं। हालांकि, वित्तीय सलाहकार मानते हैं कि लंबी दौड़ के इच्छुक निवेशकों को चिंता नहीं करनी चाहिए लेकिन बाजार में अब कभी भी पांच सौ अंकों की गिरावट आ सकती है। यूटीआई म्युचयूअल फंड के प्रमुख निवेश अधिकारी एके श्रीधर का कहना है कि मुझे शेयर बाजार में कोई खतरनाक करेक्शन दिखाई नहीं दे रहा जिसकी वजह से लोगों को यह कहा जाए कि वे बाजार से दूर रहें। हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि उन्हें सेंसेक्स में तत्काल कोई बड़ी बढ़त भी नजर नहीं आती। मुद्रास्फीति और ब्याज दरों के मोर्चे से कोई नकारात्मक खबर आती दिखाई नहीं देती। हालांकि, यह तय है अगली तिमाही के कंपनी परिणाम ही बाजार को नया जंप दिला सकते हैं, जिसके तहत इंफोसिस ने तो बेहतर शुरूआत नहीं की। शेयर बाजार के बड़े खिलाडि़यों में से एक राकेश झुनझूनुवाला मानते हैं कि अगले तीन साल में बीएसई सेंसेक्स 25 हजार अंक पहुंच सकता है।
भारतीय शेयर बाजार में घरेलू बैंकों, बीमा और वित्तीय संस्थाओं के अलावा अमरीकी और यूरोपिय निवेशकों के अलावा जापानी, कोरियाई, मलेशियाई और रुसी संस्थागत निवेशकों ने भी अपना पैसा लगाया है। असल में विदेशी धन के बढ़ते प्रवाह ने ही शेयर बाजार को नई ऊंचाईयां छूने में मदद की है। चालू केलैंडर वर्ष में विदेशी निवेशकों के निवेश की बात करें तो जनवरी में 160.3 करोड़ रूपए, फरवरी में 5595.4 करोड़ रूपए, मार्च में 1403.3 करोड़ रुपए, अप्रैल में 5533;7 करोड़ रूपए, मई में 4574.4 करोड़ रूपए, जून में 7169.5 करोड़ रूपए की शुद्ध खरीद की। एक से पांच जुलाई के बीच यह खरीद 2710.5 करोड़ रूपए की रही। इन आंकड़ों को देखकर कहा जा सकता है कि भारतीय पूंजी बाजार में विदेशी निवेशक जमकर पैसा लगा रहे हैं। पूंजी बाजार के खिलाडि़यों की राय में विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय पूंजी बाजार में बने रहेंगे क्योंकि दूसरे विकसित बाजारों में नौ फीसदी लाभ कमाने का रास्ता उन्हें दिखाई नहीं दे रहा। हालांकि, समय समय पर यह आशंका जताई जाती रही है कि विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजार को नमस्ते कर सकते हैं लेकिन लंबी अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने का भरोसा ही उन्हें यहां रोके हुए हैं। सरकार ने यदि इस भरोसे को तोड़ा तो शेयर बाजार को कोई नहीं संभाल सकेगा इसलिए जरुरी है कि आर्थिक सुधारों में तेजी लाई जाए।
मौजूदा तेजी और पिछली तेजी में एक समान बात देखने को मिली की अधिकतर निवेशकों ने हर्षद मेहता और केतन पारेख के समय हुए शेयर घोटालों से सबक न लेते हुए उन कंपनियों में निवेश किया जिनके फंडामेंटल मजबूत नहीं है। ये वे कंपनियां हैं जिनके भाव तेजी के समय ही बढ़े हुए दिखाई देते हैं और तेजी पूरी होते ही या बड़ा करेक्शन आते ही इनके भाव जमीन पर आ जाते हैं और इनके प्रमोटर पैसा कमाकर बाजार से गायब हो जाता हैं। शेयर ब्रोकर प्रदीप अग्रवाल कहते हैं कि विजेता निवेशक वह है जिसके पास तेजी पूरी होने पर एक भी शेयर नहीं बचा हो। तेजी के हो हल्ले में लोग सही सलाह को नजरअंदाज कर देते हैं और पेनी स्टॉक में पैसा लगाकर बड़ा मुनाफा काटने के चक्कर में फंस जाते हैं।
अनेक निवेशक तो केवल सुनी सुनाई बातों के आधार पर ही निवेश करते हैं जैसे कि अमुक कंपनी का शेयर फला बिगबुल चला रहा है। बस इस कानाफूसी के आधार पर, होमवर्क न करने वाले निवेशक दौड़ पड़ते हैं पैसा कमाने। जबकि हकीकत इसके विपरीत होती है। मौजूदा तेजी में भी यह बात देखने को मिली जब लोग राकेश झुनझुनूवाला, अनिल अंबानी, केतन पारेख जैसे खिलाडि़यों का नाम लेकर शेयरों की सिफारिश करते दिखे और लंबा हाथ मारने के चक्कर में घटिया कंपनियों के शेयरों के पीछे दौड़ रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि अगर बाजार में जरा सी भी नकारात्मक हलचल हुई तो इन कंपनियों के शेयर सिर्फ उल्टे पैर चलेंगे।
पेनी स्टॉक में कम निवेश पर बड़ा मुनाफा काटने की सोचने वाले निवेशक चाहे एक बार खुश हो भी जाए लेकिन अंत में सबसे ज्यादा घाटा इन्हीं निवेशकों को होता है। कंपनियों की विश्वसनीयता और कारोबारी आंकडे न देखकर निवेश करने वाला निवेशक समझदार कतई नहीं कहा जा सकता। हालांकि, मौजूदा तेजी कुछ ऐसे निवेशकों के लिए वरदान भी साबित हुई है जो पिछली तेजी के दौर में कुछ ऐसी कंपनियों के शेयरों में फंस गए थे। मौजूदा तेजी में इन कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ते ही पिछली बार हाथ जला बैठे निवेशक इनसे निकल गए। असल में देखा जाए तो मौजूदा समय घटिया कंपनियों से बाहर निकल जाने का सुनहरा मौका है।
रुपए की मजबूती, मुद्रास्फीति के भूत का बवाल, राजनीतिक स्थिरता, सरकारी कंपनियों के विनिवेश में अवरोध, तेल की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी जैसे अनेक कारणों से निवेशक डरे हुए भी हैं। ऐसे में सरकार आर्थिक सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाने के साथ रातों रात गायब होने वाली कंपनियों की लगाम कसने और पेनी स्टॉक में हो रहे उतार चढ़ाव पर पैनी नजर रखने का बंदोबस्त कर लेती है तो निवेशकों का भय कम हो सकता है एवं 130 साल पुराने मुंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक 18 हजार की तरफ कूच कर सकता है।
टिप्पणियाँ