प्याज न खाने से दस लाख लोग मरे
हिंदुस्तान में इस समय भगवान से ज्यादा नाम प्याज का भजा रहा है। हर समाचार पत्र, न्यूज वेबसाइट और टीवी चैनलों में परोसी जा रही खबरों में प्याज राडिया पर लीड बनाता जा रहा है। राडिया, राजा, टाटा दबते जा रहे हैं प्याज के बोझ और भाव के नीचे। न्यूज माध्यम और राजनेताओं को अचानक आम आदमी याद आ रहा है। गरीब हिंदुस्तान के लोग प्याज और रोटी खाकर दिन गुजार रहे हैं लेकिन समझ नहीं आ रहा कि अचानक देश के सारे न्यूज माध्यम वालों को गरीब आदमी कहां से याद आ गया। गरीब तो इतना दब चुका है कि प्याज से रोटी खाना तो उसने कभी का छोड़ दिया और गांव वाले भी शहरियों की तरह प्रोग्रेस कर रहे हैं। बल्कि शहर वाले हर खाने में प्याज चाहते हैं, प्याज की कचोरियां, प्याज के पकौड़े से लेकर पता नहीं कितने व्यंजनों में प्याज चट कर रहे हैं।
अभी कुछ साथियों से बात हो रही थी कि ऐसा कहीं सुना है कि प्याज न खाने से लोग मर गए हों या प्याज न खाने से बीमार पड़ गए हो और अस्पतालों के सामने मरीजों की लंबी कतारें लगी हो। फिर प्याज पर हायतौबा क्यों। मत खाइए, अपने आप दुकानदार हाथ जोड़कर सस्ता बेचते नजर आएंगे। लेकिन अपने यहां राजनीतिक लाभ लेने के लिए विपक्ष वाले सत्ता पक्ष को प्याज के माध्यम से राजनीति के खेल में शह मात देना चाहते हैं। मैं खुद प्याज कभी नहीं खाता लेकिन आज तक ऐसा नहीं लगा कि प्याज न खाने से बीमार पड़ गया होऊं या प्याज के रस के इंजेक्शन लगवाने पड़े हों। प्याज पर टीवी एंकर हल्ला मचा रहे हैं। इनके टेबल पर 40 किलो प्याज रख देने चाहिए, ले खाता जा और खबर पढ़ता जा। जब पूरे हो जाए तो बोलना, 40 किलो और भेज देंगे।
अब पाकिस्तान से प्याज अमृतसर पहुंच गया है। जागो, बापूओ, बाबाओं, यह तो मुस्लिम प्याज है। टीवी पर सुबह सुबह जोर से चिल्लाना शुरु करो कि सनातन धर्म खतरे में है। हिंदूओं का धर्म भ्रष्ट करने के लिए यह मुस्लिम प्याज आ गया। हम तो सारे मुस्लिम बन जाएंगे। हे राम, हे राम। लेकिन सर्दी के मौसम में कोई इसे हे रम न पढ़ ले। बाबा लोग अपनी सर्दी भगाने के लिए हे राम की जगह रम का सेवन न करने लग जाएं क्योंकि इन बाबाओं की दुकान के स्वामी राजा इंद्र तो सोमरस के प्यासे हैं। लेकिन खैरियत है कि यह प्याज से नहीं बनता।
आम हिंदुस्तानी को दाल, हरी सब्जियां और अन्य सब्जियां जिस भाव पर आज मिल रही है उस पर हल्ला नहीं हो रहा। सारे न्यूज माध्यमों को यह मसला दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि प्याज से आए आंसू में यह मसला धुंधला हो गया है। फलों के भाव आसमान पर हैं। खाद्य महंगाई दर बढ़ाने में प्याज का उतना हाथ नहीं है जितना दाल, हरी सब्जियों का है। कोई भी सब्जी सामान्य कस्बे में 60 रुपए से किलो से कम पर नहीं है। दालें भी महंगी है और फल तो ऐसा कहना चाहिए, फल लागे अति दूर। सरकार और मीडिया को यह दिखाई नहीं दे रहा। सब्जियों के निर्यात को रोकने पर ध्यान नहीं गया केवल प्याज दिखाई दे गया, वह भी काफी महंगा और हल्ला होने के बाद।
यही हल्ला कुछ समय बाद चीनी पर मचने वाला है। सरकार को चीनी मिलों को फायदा कराए लंबा समय हो गया तो अचानक इनके भले के लिए कुछ करने की सोची। सोचा आम आदमी तो रोता फिरेगा और जब खूब रो लेगा तब चीनी के बारे में सोचेंगे, फिलहाल तो उसे निचोड़ लें। पांच लाख टन चीनी का निर्यात, चाहे देश में ही इसकी खपत खूब हो, लेकिन दूसरे देशों को तो फायदा कराओ। राशन की चीनी यानी लेवी चीनी का दाम बढ़ाना और पहले की तरह चीनी वायदा को खोलने का वादा करना, चीनी को कड़वी बनाने के लिए काफी है। चीनी वायदा से फायदा किसे होता है जो महीने में दो से चार किलो चीनी खाता है उसे या चीनी मिलों को अथवा कारोबारियों को, यह हर कोई जानता है। लेकिन मीडिया सो रहा है, पहले चीनी 38 रुपए हो जाने दो, फिर हल्ला मचाएंगे ताकि तब तक न्यूज तैयार हो जाएगी। बाइट के लिए लोग मिल जाएंगे। चीनी के दाम रोज बढ़ रहे हैं लेकिन जनपथ पर बैठे शहंशाह दम साध्ो हुए हैं। भागने दो चीनी को फिर जनता को कहेंगे कि हम नकेल कस रहे हैं। जांच करेंगे कि किसने पांच लाख टन चीनी देश से बाहर जाने दी। चलो चली गई तो अब क्या करें। हम 15 लाख टन चीनी आयात कर लेते हैं, चिंता क्यों करते हो। चलो जनपथ तुम्हारा मुंह मीठा करवा रहा है, अब तो हल्ला मचाना बंद करो। वोट देने का टैम आ रहा है, हमें ही वोट देना क्योंकि आम आदमी को निचोड़ने के लिए हम ही बने हैं, हमसे बेहतर कोई दूसरा हो तो बताना। हम निचोड़ते हैं तो रस भी भरते हैं। भिगोया, धोया, निचोडा और सुखाया, हो गया आम आदमी खुश।
अभी कुछ साथियों से बात हो रही थी कि ऐसा कहीं सुना है कि प्याज न खाने से लोग मर गए हों या प्याज न खाने से बीमार पड़ गए हो और अस्पतालों के सामने मरीजों की लंबी कतारें लगी हो। फिर प्याज पर हायतौबा क्यों। मत खाइए, अपने आप दुकानदार हाथ जोड़कर सस्ता बेचते नजर आएंगे। लेकिन अपने यहां राजनीतिक लाभ लेने के लिए विपक्ष वाले सत्ता पक्ष को प्याज के माध्यम से राजनीति के खेल में शह मात देना चाहते हैं। मैं खुद प्याज कभी नहीं खाता लेकिन आज तक ऐसा नहीं लगा कि प्याज न खाने से बीमार पड़ गया होऊं या प्याज के रस के इंजेक्शन लगवाने पड़े हों। प्याज पर टीवी एंकर हल्ला मचा रहे हैं। इनके टेबल पर 40 किलो प्याज रख देने चाहिए, ले खाता जा और खबर पढ़ता जा। जब पूरे हो जाए तो बोलना, 40 किलो और भेज देंगे।
अब पाकिस्तान से प्याज अमृतसर पहुंच गया है। जागो, बापूओ, बाबाओं, यह तो मुस्लिम प्याज है। टीवी पर सुबह सुबह जोर से चिल्लाना शुरु करो कि सनातन धर्म खतरे में है। हिंदूओं का धर्म भ्रष्ट करने के लिए यह मुस्लिम प्याज आ गया। हम तो सारे मुस्लिम बन जाएंगे। हे राम, हे राम। लेकिन सर्दी के मौसम में कोई इसे हे रम न पढ़ ले। बाबा लोग अपनी सर्दी भगाने के लिए हे राम की जगह रम का सेवन न करने लग जाएं क्योंकि इन बाबाओं की दुकान के स्वामी राजा इंद्र तो सोमरस के प्यासे हैं। लेकिन खैरियत है कि यह प्याज से नहीं बनता।
आम हिंदुस्तानी को दाल, हरी सब्जियां और अन्य सब्जियां जिस भाव पर आज मिल रही है उस पर हल्ला नहीं हो रहा। सारे न्यूज माध्यमों को यह मसला दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि प्याज से आए आंसू में यह मसला धुंधला हो गया है। फलों के भाव आसमान पर हैं। खाद्य महंगाई दर बढ़ाने में प्याज का उतना हाथ नहीं है जितना दाल, हरी सब्जियों का है। कोई भी सब्जी सामान्य कस्बे में 60 रुपए से किलो से कम पर नहीं है। दालें भी महंगी है और फल तो ऐसा कहना चाहिए, फल लागे अति दूर। सरकार और मीडिया को यह दिखाई नहीं दे रहा। सब्जियों के निर्यात को रोकने पर ध्यान नहीं गया केवल प्याज दिखाई दे गया, वह भी काफी महंगा और हल्ला होने के बाद।
यही हल्ला कुछ समय बाद चीनी पर मचने वाला है। सरकार को चीनी मिलों को फायदा कराए लंबा समय हो गया तो अचानक इनके भले के लिए कुछ करने की सोची। सोचा आम आदमी तो रोता फिरेगा और जब खूब रो लेगा तब चीनी के बारे में सोचेंगे, फिलहाल तो उसे निचोड़ लें। पांच लाख टन चीनी का निर्यात, चाहे देश में ही इसकी खपत खूब हो, लेकिन दूसरे देशों को तो फायदा कराओ। राशन की चीनी यानी लेवी चीनी का दाम बढ़ाना और पहले की तरह चीनी वायदा को खोलने का वादा करना, चीनी को कड़वी बनाने के लिए काफी है। चीनी वायदा से फायदा किसे होता है जो महीने में दो से चार किलो चीनी खाता है उसे या चीनी मिलों को अथवा कारोबारियों को, यह हर कोई जानता है। लेकिन मीडिया सो रहा है, पहले चीनी 38 रुपए हो जाने दो, फिर हल्ला मचाएंगे ताकि तब तक न्यूज तैयार हो जाएगी। बाइट के लिए लोग मिल जाएंगे। चीनी के दाम रोज बढ़ रहे हैं लेकिन जनपथ पर बैठे शहंशाह दम साध्ो हुए हैं। भागने दो चीनी को फिर जनता को कहेंगे कि हम नकेल कस रहे हैं। जांच करेंगे कि किसने पांच लाख टन चीनी देश से बाहर जाने दी। चलो चली गई तो अब क्या करें। हम 15 लाख टन चीनी आयात कर लेते हैं, चिंता क्यों करते हो। चलो जनपथ तुम्हारा मुंह मीठा करवा रहा है, अब तो हल्ला मचाना बंद करो। वोट देने का टैम आ रहा है, हमें ही वोट देना क्योंकि आम आदमी को निचोड़ने के लिए हम ही बने हैं, हमसे बेहतर कोई दूसरा हो तो बताना। हम निचोड़ते हैं तो रस भी भरते हैं। भिगोया, धोया, निचोडा और सुखाया, हो गया आम आदमी खुश।
टिप्पणियाँ