मौसम जानो पैसा कमाओं
नेशनल कमोडिटी एंड डेरीवेटिव्स एक्सचेंज यानी एनसीडीईएक्स वर्ष 2003 से देश में मौसम वायदा शुरू करने की कोशिश में है लेकिन अब तक एक्सचेंज की मंशा हकीकत में नहीं बदल पाई है। एक्सचेंज एक बार फिर पूरे जोर शोर से मौसम वायदा लाने की तैयारी में है, लेकिन वायदा शुरू करने के लिए कानून में बदलाव की जरुरत को देखते हुए यह काम थोड़ा मुश्किल लग रहा है। इसके अलावा इस तरह के वायदा में कारोबारी भागीदारी जुटाना भी एक्सचेंज के लिए एक चुनौती होगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज यानी सीएमई और यूरोनेक्सट में मौसम आधारित वायदा में कामकाज होता है, जिस देखते हुए एनसीडीईएक्स भी इस तरह के वायदा भारत में लांच करने की फिराक में है। गौरतलब है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद अभी भी मौसम पर हमारी निर्भरता काफी है। मौसमी परिस्थितियां काफी हर तक आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती है, विशेषकर कृषि, ऊर्जा, मनोरंजन, निर्माण व यातायात जैसे उद्योगों की आय पर मौसम का काफी असर पड़ता है। सीएमई द्धारा 1999 में तापमान इंडेक्स आधारित वायदा शुरू करने से पहले उद्योगों के पास मौसम से जुड़े जोखिम के प्रबंधन के लिए कम ही विकल्प थे। इस मामले में मौमस बीमा एक बेहतर विकल्प था, लेकिन इससे सिर्फ भारी जोखिम व कम संभाव्यता वाली मौसमी दुर्घटनाओं को ही कवर किया जाता है, तापमान बढ़ने या घटने जैसी अधिक संभाव्यता व कम जोखिम वाली मौसमी स्थितियों के कारण किसी कंपनी को होने वाले नुकसान को कवर नहीं किया जाता। ऊर्जा क्षेत्र या कृषि क्षेत्र की आय पर तापमान की घटबढ़ या बारिश का काफी असर पड़ता है, इसलिए इन उद्योगों को कम जोखिम व ज्यादा संभाव्यता वाली मौसमी स्थितियों से निपटने के लिए मौसम वायदा काफी मददगार होते हैं।
सीएमई में जो मौसम वायदा चलते हैं वे तापमान पर आधारित हैं। एक्सचेंज में कूलिंग डिग्री डे सीडीडी व हीटिंग डे एचडीडी नामक तापमान इंडेक्सों के आधार पर वायदा चलते हैं। सीडीडी इंडेक्स की वैल्यू उन दिनों के तापमान को प्रदर्शित करती है जब ऊर्जा का उपयोग हीटिंग के लिए होता है। दिन का तापमान सामान्य से जितना कम है वह उस दिन की सीडीडी वैल्यू है और दैनिक सीडीडी वैल्यू को जोड़कर मासिक इंडेक्स बनता है। सीडीडी पर आधारित वायदा का मूल्य सीडीडी वैल्यू को 20 डॉलर से गुणा करके निकाला जाता है, यहां 20 डॉलर प्रति डिग्री तापमान का आर्थिक प्रभाव दर्शाता है। एचडीडी इंडेक्स की वैल्यू उन दिनों के तापमान को प्रदर्शित करता है जब ऊर्जा का उपयोग एयरकंडीशनिंग के लिए होता है। इस इंडेक्स में बाकी सब चीजें समान होती है, बस इतना फर्क होता है कि एचडीडी वैल्यू तापमान सामान्य जितना अधिक होता है उतनी होती है।
तापमान इंडेक्स अमरीका के 15 शहरों व यूरोप के पांच शहरों के तापमान में होने वाले बदलाव पर आधारित हैं। तापमान आधारित वायदा की अवधारणा यह है कि तापमान अगर सामान्य से कम या ज्यादा रहता है तो जिन कंपनियों व लोगों की आय पर इसका असर पड़ता है वे अपने जोखिम को तापमान इंडेक्स आधारित वायदा के माध्यम से हेज कर सकते हैं। उदाहरण के लिए तापमान कम होने से एयरकंडीशिनिंग के लिए बिजली की जरुरत कम हो जाएगी, ऐसे में कोई भी ऊर्जा कंपनी सामान्य से कम तापमान के कारण बिजली की खपत में आई कमी और इसके नतीजन होने वाले नुकसान की भरपाई तापमान इंडेक्स आधारित वायदा के माध्यम से कर सकती है। ऊर्जा कंपनियों के अलावा दूसरी कंपनी या व्यक्ति जिनका कारोबार तापमान में होने वाले बदलाव से प्रभावित होता है, वे भी इन वायदा से लाभ उठा सकते हैं।
जहां तक एनसीडीईएक्स की पहल का सवाल है तो यहां सबसे बड़ी चुनौती फारवर्ड कांट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट में संशोधन की है। एक बार यह संशोधन हो जाता है तो तापमान या बारिश के इंडेक्स पर आधारित वायदा लांच करने में कोई मुश्किल नहीं होगी। लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब घरेलू एक्सचेंज भौतिक कमोडिटी के वायदा में कंपनियों व हाजिर कारोबारियों की भागीदारी नहीं जुटा पाए, तो मौमस जैसी इनटेंजीबल चीजों के वायदा में कारोबारी रूचि कहां तक बना पाएंगे और अगर ऐसा नहीं होता है तो मौसम वायदा भी अन्य कमोडिटीज की तरह सट्टेबाजों के खेल के मैदान बन जाएंगे और इनमें व देश के गली मोहल्लों में मौमस पर होने वाले अवैध सट्टे में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज यानी सीएमई और यूरोनेक्सट में मौसम आधारित वायदा में कामकाज होता है, जिस देखते हुए एनसीडीईएक्स भी इस तरह के वायदा भारत में लांच करने की फिराक में है। गौरतलब है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद अभी भी मौसम पर हमारी निर्भरता काफी है। मौसमी परिस्थितियां काफी हर तक आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती है, विशेषकर कृषि, ऊर्जा, मनोरंजन, निर्माण व यातायात जैसे उद्योगों की आय पर मौसम का काफी असर पड़ता है। सीएमई द्धारा 1999 में तापमान इंडेक्स आधारित वायदा शुरू करने से पहले उद्योगों के पास मौसम से जुड़े जोखिम के प्रबंधन के लिए कम ही विकल्प थे। इस मामले में मौमस बीमा एक बेहतर विकल्प था, लेकिन इससे सिर्फ भारी जोखिम व कम संभाव्यता वाली मौसमी दुर्घटनाओं को ही कवर किया जाता है, तापमान बढ़ने या घटने जैसी अधिक संभाव्यता व कम जोखिम वाली मौसमी स्थितियों के कारण किसी कंपनी को होने वाले नुकसान को कवर नहीं किया जाता। ऊर्जा क्षेत्र या कृषि क्षेत्र की आय पर तापमान की घटबढ़ या बारिश का काफी असर पड़ता है, इसलिए इन उद्योगों को कम जोखिम व ज्यादा संभाव्यता वाली मौसमी स्थितियों से निपटने के लिए मौसम वायदा काफी मददगार होते हैं।
सीएमई में जो मौसम वायदा चलते हैं वे तापमान पर आधारित हैं। एक्सचेंज में कूलिंग डिग्री डे सीडीडी व हीटिंग डे एचडीडी नामक तापमान इंडेक्सों के आधार पर वायदा चलते हैं। सीडीडी इंडेक्स की वैल्यू उन दिनों के तापमान को प्रदर्शित करती है जब ऊर्जा का उपयोग हीटिंग के लिए होता है। दिन का तापमान सामान्य से जितना कम है वह उस दिन की सीडीडी वैल्यू है और दैनिक सीडीडी वैल्यू को जोड़कर मासिक इंडेक्स बनता है। सीडीडी पर आधारित वायदा का मूल्य सीडीडी वैल्यू को 20 डॉलर से गुणा करके निकाला जाता है, यहां 20 डॉलर प्रति डिग्री तापमान का आर्थिक प्रभाव दर्शाता है। एचडीडी इंडेक्स की वैल्यू उन दिनों के तापमान को प्रदर्शित करता है जब ऊर्जा का उपयोग एयरकंडीशनिंग के लिए होता है। इस इंडेक्स में बाकी सब चीजें समान होती है, बस इतना फर्क होता है कि एचडीडी वैल्यू तापमान सामान्य जितना अधिक होता है उतनी होती है।
तापमान इंडेक्स अमरीका के 15 शहरों व यूरोप के पांच शहरों के तापमान में होने वाले बदलाव पर आधारित हैं। तापमान आधारित वायदा की अवधारणा यह है कि तापमान अगर सामान्य से कम या ज्यादा रहता है तो जिन कंपनियों व लोगों की आय पर इसका असर पड़ता है वे अपने जोखिम को तापमान इंडेक्स आधारित वायदा के माध्यम से हेज कर सकते हैं। उदाहरण के लिए तापमान कम होने से एयरकंडीशिनिंग के लिए बिजली की जरुरत कम हो जाएगी, ऐसे में कोई भी ऊर्जा कंपनी सामान्य से कम तापमान के कारण बिजली की खपत में आई कमी और इसके नतीजन होने वाले नुकसान की भरपाई तापमान इंडेक्स आधारित वायदा के माध्यम से कर सकती है। ऊर्जा कंपनियों के अलावा दूसरी कंपनी या व्यक्ति जिनका कारोबार तापमान में होने वाले बदलाव से प्रभावित होता है, वे भी इन वायदा से लाभ उठा सकते हैं।
जहां तक एनसीडीईएक्स की पहल का सवाल है तो यहां सबसे बड़ी चुनौती फारवर्ड कांट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट में संशोधन की है। एक बार यह संशोधन हो जाता है तो तापमान या बारिश के इंडेक्स पर आधारित वायदा लांच करने में कोई मुश्किल नहीं होगी। लेकिन यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब घरेलू एक्सचेंज भौतिक कमोडिटी के वायदा में कंपनियों व हाजिर कारोबारियों की भागीदारी नहीं जुटा पाए, तो मौमस जैसी इनटेंजीबल चीजों के वायदा में कारोबारी रूचि कहां तक बना पाएंगे और अगर ऐसा नहीं होता है तो मौसम वायदा भी अन्य कमोडिटीज की तरह सट्टेबाजों के खेल के मैदान बन जाएंगे और इनमें व देश के गली मोहल्लों में मौमस पर होने वाले अवैध सट्टे में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।
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