मीडिया वाले खा गए देश का सारा प्याज, टमाटर, आलू
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को विधानसभा चुनाव के समय को छोड़कर हमेशा मीडिया पर गुस्सा आता है। राष्ट्रमंडल खेलों में हुए निर्माण कार्य और घोटालों के लिए जहां वे मीडिया पर बरस रही थीं वहीं अब प्याज, टमाटर और आलू सहित सब्जियों के दाम के लिए मीडिया को दोषी ठहरा रही हैं।
शीला दीक्षित ने क्या कहा.... सब्जियों की आसमान छूती कीमतों पर पूछे गए एक सवाल पर शीला पत्रकारों पर भड़क उठीं और उन्होंने बेतुका बयान देते हुए कहा कि "आपलोग दाम बढ़ा रहे हैं।" शीला दीक्षित से संवाददाताओं ने पूछा था कि "दिल्ली में प्याज के दाम आसमान पर हैं और राज्य सरकार बिजली के दाम बढ़ाने पर विचार कर रही है।" इस पर मुख्यमंत्री भड़क उठीं और उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि "कहां बढ़ रहे हैं दाम, आपलोग बढ़ा रहे हैं।"
शीला जी सही है आपकी बात, क्योंकि मीडिया कर्मी आजकल न्यूज कवरेज करने में लगे हैं और उनके खेत खाली पड़े हैं। देखिए न तो वे समय पर सब्जियां उगा रहे हैं और न ही उनकी सही ढंग से सप्लाई कर रहे हैं। मैंने खुद कई बार कहा मीडिया दोस्तों से कि ये न्यूज व्यूज क्या है। छोड़ो और सब्जियां उगाओ, उनकी समय पर सप्लाई करो, ओबी वैन की जगह सब्जियों के ठेले ले लो और गली गली आवाज देते निकल जाओ। सब्जियां भी बिक जाएंगी और गली-गली की न्यूज भी मिल जाएंगी। दिन भर सब्जी बेचो, शाम को न्यूज चेपो। लेकिन मानते ही नहीं शीला जी। दिल्ली में आपके आलाकमान बैठे हैं, अब आप ही मीडिया के लिए यह आदेश निकलवाओ। मैं तो कहते-कहते थक गया।
शीला जी, पहले आप यह आंकडे जुटा लो कि अपने देश की जनसंख्या कितनी है। सब्जियों और दालों की पैदावार कितनी होती है। कितनी जरुरत है। और हम सब्जियां निर्यात क्यों करते हैं। देश के लोग तरसते रहे सब्जियों के लिए लेकिन निर्यात कर डॉलर, यूरो भरते रहे रिजर्व बैंक में। विदेशी धन चाहिए, चाहे देश की जनता तरसे सब्जी, प्याज, टमाटर के लिए। खाने-पीने की चीज दूसरे देशों को भेजकर किसका भला किया जा रहा है। क्या देश को चीनी की जरुरत नहीं है। क्या मीडिया ने कहा कि पांच लाख टन चीनी निर्यात करो। जब चीनी के दाम बढ़ जाएंगे तब इस बढ़ोतरी का दोष मीडिया के सिर पर मढ देना।
लाल बहादुर शास्त्री के बाद तो किसी भी राजनेता ने नैतिक जिम्मेदारी लेना ही छोड़ दिया। नकटे होकर कुर्सी पर बैठे रहेंगे लेकिन पद नहीं छोड़ेंगे। बहुत पैसे खर्च कर पांच साल सेवा करने का ठेका मिला है, ऐसे ही थोड़े छोड़ देंगे, जब तक जनता ही नीचे न उतार दे क्यों छोड़ दें। पांच साल खूब चूस लो आम आदमी को, फिर चुनाव के समय उसे पुचकार कर वोट हासिल कर लेना राजनेताओं को खूब आता है। लेकिन अब यह समय भी जा रहा है। बिहार में क्या हुआ, लालू को आलू की तरह भूनकर जनता ने ठीकाने लगा दिया। रामविलास के सारे विलास ही समाप्त कर दिए। जागो, और दोष मीडिया को देने से बेहतर है, कुछ अच्छा करो, अन्यथा जनता जाग गई तो...न जनपथ आपके साथ होगा और न ही मुख्यमंत्री आवास।
शीला दीक्षित ने क्या कहा.... सब्जियों की आसमान छूती कीमतों पर पूछे गए एक सवाल पर शीला पत्रकारों पर भड़क उठीं और उन्होंने बेतुका बयान देते हुए कहा कि "आपलोग दाम बढ़ा रहे हैं।" शीला दीक्षित से संवाददाताओं ने पूछा था कि "दिल्ली में प्याज के दाम आसमान पर हैं और राज्य सरकार बिजली के दाम बढ़ाने पर विचार कर रही है।" इस पर मुख्यमंत्री भड़क उठीं और उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि "कहां बढ़ रहे हैं दाम, आपलोग बढ़ा रहे हैं।"
शीला जी सही है आपकी बात, क्योंकि मीडिया कर्मी आजकल न्यूज कवरेज करने में लगे हैं और उनके खेत खाली पड़े हैं। देखिए न तो वे समय पर सब्जियां उगा रहे हैं और न ही उनकी सही ढंग से सप्लाई कर रहे हैं। मैंने खुद कई बार कहा मीडिया दोस्तों से कि ये न्यूज व्यूज क्या है। छोड़ो और सब्जियां उगाओ, उनकी समय पर सप्लाई करो, ओबी वैन की जगह सब्जियों के ठेले ले लो और गली गली आवाज देते निकल जाओ। सब्जियां भी बिक जाएंगी और गली-गली की न्यूज भी मिल जाएंगी। दिन भर सब्जी बेचो, शाम को न्यूज चेपो। लेकिन मानते ही नहीं शीला जी। दिल्ली में आपके आलाकमान बैठे हैं, अब आप ही मीडिया के लिए यह आदेश निकलवाओ। मैं तो कहते-कहते थक गया।
शीला जी, पहले आप यह आंकडे जुटा लो कि अपने देश की जनसंख्या कितनी है। सब्जियों और दालों की पैदावार कितनी होती है। कितनी जरुरत है। और हम सब्जियां निर्यात क्यों करते हैं। देश के लोग तरसते रहे सब्जियों के लिए लेकिन निर्यात कर डॉलर, यूरो भरते रहे रिजर्व बैंक में। विदेशी धन चाहिए, चाहे देश की जनता तरसे सब्जी, प्याज, टमाटर के लिए। खाने-पीने की चीज दूसरे देशों को भेजकर किसका भला किया जा रहा है। क्या देश को चीनी की जरुरत नहीं है। क्या मीडिया ने कहा कि पांच लाख टन चीनी निर्यात करो। जब चीनी के दाम बढ़ जाएंगे तब इस बढ़ोतरी का दोष मीडिया के सिर पर मढ देना।
लाल बहादुर शास्त्री के बाद तो किसी भी राजनेता ने नैतिक जिम्मेदारी लेना ही छोड़ दिया। नकटे होकर कुर्सी पर बैठे रहेंगे लेकिन पद नहीं छोड़ेंगे। बहुत पैसे खर्च कर पांच साल सेवा करने का ठेका मिला है, ऐसे ही थोड़े छोड़ देंगे, जब तक जनता ही नीचे न उतार दे क्यों छोड़ दें। पांच साल खूब चूस लो आम आदमी को, फिर चुनाव के समय उसे पुचकार कर वोट हासिल कर लेना राजनेताओं को खूब आता है। लेकिन अब यह समय भी जा रहा है। बिहार में क्या हुआ, लालू को आलू की तरह भूनकर जनता ने ठीकाने लगा दिया। रामविलास के सारे विलास ही समाप्त कर दिए। जागो, और दोष मीडिया को देने से बेहतर है, कुछ अच्छा करो, अन्यथा जनता जाग गई तो...न जनपथ आपके साथ होगा और न ही मुख्यमंत्री आवास।
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घुघूती बासूती