गरीबों को हटा दो...गरीबी अपने आप हट जाएगी
देश में गरीब कम हो गए और अमीर ज्यादा। मजा आ गया
यह जानकर लेकिन सरकार ने यह नहीं बताया कि भूख और तंगहाली से कितने गरीब स्वर्ग सिधार गए या अल्लाह को प्यारे हो गए। एक नारा है गरीबी हटाओं.......भाईयों इसके बजाय यह कहिए गरीबों को हटा दो...गरीबी अपने आप हट जाएगी। सरकार के दावे कागजी दावों से ज्यादा तो नहीं लगते। यह सैम्पल सर्वे है। किन लोगों को सर्वे में शामिल किया गया और कैसे किया गया...इस पर खूब सारे कागजात पेश किए जा सकते हैं लेकिन हकीकत तो खराब ही दिखाई देती है। कौनसे गरीबों का सर्वे किया गया, यह अहम है। मेरी मानिए आप भी एक सर्वे कर लीजिए यह संख्या बढ़ ही जाएगी। महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में किसानों की आत्महत्या से चिंतित होकर जब प्रधानमंत्री नागपुर आए थे तो आपको पता होगा कि अखबारों और टीवी में रिपोर्टस आई थी कि जिन किसानों से प्रधानमंत्री को मिलवाया गया उनमें कितने सच में पीडि़त किसान थे। कितने किसान तो प्रधानमंत्री के उनके दरवाजे तक आने का इंतजार करते रहे और आंखें सूख गई।
नेशनल सैम्पल सर्वे ने देश में गरीबी में कमी आने का दावा किया है। एनएसएस के आंकडों के मुताबिक 1999/2000 से 2004/2005 के दौरान भारत में गरीबों की संख्या में 4.3 फीसदी की कमी आई है। हालांकि अब भी देश में 23.85 करोड़ लोग गरीबी में जी रहे हैं। योजना आयोग का कहना है कि वर्ष 1999/2000 में देश में गरीबों की संख्या 26.1 फीसदी थी। वर्ष 2004/2005 में न्यूनतम सहूलियतों से कम पर गुजर बसर करने वाले लोगों की यह संख्या घटकर 21.8 फीसदी रह गई। इस दौरान गांवों में गरीबों की संख्या में शहरी इलाकों की तुलना में अधिक तेजी से कमी आई। वर्ष 2004/2005 के दौरान गांवों में गरीबों की गिनती वर्ष 1999/2000 के 27.1 फीसदी से काफी कम होकर 21.8 फीसदी रह गई। जबकि शहरी इलाकों में बदहाली में जीने वाले लोगों की संख्या वर्ष 1999/2000 के 23.6 फीसदी से थोड़ी सी कम होकर वर्ष 2004/2005 में 21.7 फीसदी रही। देश में गरीबों की कुल संख्या 23.85 करोड़ में से 17.03 करोड़ गरीब गांवों और 6.82 करोड़ गरीब शहरों में बसते हैं। इसके अलावा, यूनिफॉर्म रिकॉल पीरियड उपभोग के आधार पर भी देश की गरीबी में खासी कमी आई है।
यह जानकर लेकिन सरकार ने यह नहीं बताया कि भूख और तंगहाली से कितने गरीब स्वर्ग सिधार गए या अल्लाह को प्यारे हो गए। एक नारा है गरीबी हटाओं.......भाईयों इसके बजाय यह कहिए गरीबों को हटा दो...गरीबी अपने आप हट जाएगी। सरकार के दावे कागजी दावों से ज्यादा तो नहीं लगते। यह सैम्पल सर्वे है। किन लोगों को सर्वे में शामिल किया गया और कैसे किया गया...इस पर खूब सारे कागजात पेश किए जा सकते हैं लेकिन हकीकत तो खराब ही दिखाई देती है। कौनसे गरीबों का सर्वे किया गया, यह अहम है। मेरी मानिए आप भी एक सर्वे कर लीजिए यह संख्या बढ़ ही जाएगी। महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में किसानों की आत्महत्या से चिंतित होकर जब प्रधानमंत्री नागपुर आए थे तो आपको पता होगा कि अखबारों और टीवी में रिपोर्टस आई थी कि जिन किसानों से प्रधानमंत्री को मिलवाया गया उनमें कितने सच में पीडि़त किसान थे। कितने किसान तो प्रधानमंत्री के उनके दरवाजे तक आने का इंतजार करते रहे और आंखें सूख गई।
नेशनल सैम्पल सर्वे ने देश में गरीबी में कमी आने का दावा किया है। एनएसएस के आंकडों के मुताबिक 1999/2000 से 2004/2005 के दौरान भारत में गरीबों की संख्या में 4.3 फीसदी की कमी आई है। हालांकि अब भी देश में 23.85 करोड़ लोग गरीबी में जी रहे हैं। योजना आयोग का कहना है कि वर्ष 1999/2000 में देश में गरीबों की संख्या 26.1 फीसदी थी। वर्ष 2004/2005 में न्यूनतम सहूलियतों से कम पर गुजर बसर करने वाले लोगों की यह संख्या घटकर 21.8 फीसदी रह गई। इस दौरान गांवों में गरीबों की संख्या में शहरी इलाकों की तुलना में अधिक तेजी से कमी आई। वर्ष 2004/2005 के दौरान गांवों में गरीबों की गिनती वर्ष 1999/2000 के 27.1 फीसदी से काफी कम होकर 21.8 फीसदी रह गई। जबकि शहरी इलाकों में बदहाली में जीने वाले लोगों की संख्या वर्ष 1999/2000 के 23.6 फीसदी से थोड़ी सी कम होकर वर्ष 2004/2005 में 21.7 फीसदी रही। देश में गरीबों की कुल संख्या 23.85 करोड़ में से 17.03 करोड़ गरीब गांवों और 6.82 करोड़ गरीब शहरों में बसते हैं। इसके अलावा, यूनिफॉर्म रिकॉल पीरियड उपभोग के आधार पर भी देश की गरीबी में खासी कमी आई है।
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Jai Ram ji ki
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