टेलीग्राम को भूल गए हम...


खो गया झुमरी तिलैया का सरगम में पिछले शनिवार को हमने यह जिक्र किया था कि उस समय कुछ लोग रेडियो पर अपनी फरमाइश टेलीग्राम के माध्‍यम से भेजते थे। लेकिन ईमेल और एसएमएस के जमाने में हम टेलीग्राम को भूल गए हैं।
हमने बताया था कि एक बार ऐसा हुआ कि आल इंडिया रेडियो पर गंगा जमुना फिल्‍म का गीत दो हंसो का जोड़ा बिछुड़ गयो रे बज रहा था। गीत समाप्‍त होने पर उदघोषक ने घोषणा की कि अभी अभी झुमरी तिलैया से रामेश्‍वर प्रसाद वर्णवाल का भेजा हुआ टेलीग्राम हमें प्राप्‍त हुआ है, जिसमें उन्‍होंने दो हंसों का जोड़ा सुनाने का अनुरोध किया है। अत: यह गीत हम आपको पुन: सुना रहे हैं। लेकिन अब मोबाइल के इस जमाने में लोग टेलीग्राम को भूल सा गए हैं और यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आप यही नहीं बता पाएंगे कि आपने आखिरी टेलीग्राम किस दिन किया था। लोग अब टेलीग्राम के बजाय एसएमएस, ईमेल करना पसंद करते हैं।

लेकिन जिन लोगों ने टेलीग्राम किए हैं वे उसके अहसास को समझ सकते हैं। टेलीग्राम आने पर लोग घबरा तक जाते थे कि कहां क्‍या हो गया, कुछ गलत तो नहीं हो गया....जब तक टेलीग्राम पढ़ नहीं लिया जाता....लोगों की घबराहट कम नहीं होती थी। इंग्लिश के टेलीग्राम की एक बानगी देखिए...राजस्‍थान के छोटे से गांव से चले छोरे ने कलकत्‍ता पहुंचकर टेलीग्राम किया...आई रिचड हियर विद सेफ्टी...अंग्रेजी में यह टेलीग्राम इस गांव में कोई पूरा नहीं पढ़ सकता। एक लड़का जो टूटी फूटी अंग्रेजी जानता था, उसने पढ़ा मैं कलकत्‍ता सेफ्टी के साथ पहुंच गया हूं। सारे लोग सोचते रहे कि लड़का गांव से तो अकेला गया था कमाने कलकत्‍ता। यह सेफ्टी कौन है। सभी ने इतना कोमल नाम देखकर राय निकाल ली की यह कोई लड़की है, जो छोरे को रास्‍ते में मिल गई होगी। लड़के के पिता ने पलट कर पत्र भेजा कि इस सेफ्टी को जल्‍दी से रवाना कर मैं तेरी शादी यही पास के गांव में एक अच्‍छी लड़की के साथ करने की तैयारी करता हूं।

लेकिन अब एसएमएस, ईमेल, मोबाइल, फोन सेवाओं के हुए तगड़े विस्‍तार ने टेलीग्राम को हमसे दूर कर दिया या लोग भूल से गए हैं। मुंबई, दिल्‍ली, कोलकाता, चेन्‍नई जैसे बड़े एवं मध्‍यम शहरों में जहां पहले तार घरों में लंबी लंबी लाइनें दिखाई देती थी, वहां अब दिन भर में मुशिकल से कोई आ पाता है। अमरीका के सैम्‍युल मोर्स ने 1844 में मोर्स कोड की खोज की थी तो संचार जगत में बड़ी क्रांति आ गई थी लेकिन ईमेल और एसएमएस ने तो समूची दुनिया ही बदल दी।

तार दरों में पिछले लगभग 25 साल से कोई बदलाव नहीं आया है और आज भी यह साढ़े तीन रुपए पहले दस शब्‍दों या उससे कम के लिए है। एक्‍सप्रेस तार भेजना हो तो दुगुने पैसे। इस दर पर आप भारत के चाहे जिस कौने में अपना संदेश भेज सकते हैं। भारत में मोबाइल फोन सेवा 1995 में आई और इसके फैलाव के साथ तार घरों की माली हालत बिगड़ती गई, जिसका नतीजा यह है कि देश में हर साल तार घरों की संख्‍या कम होती जा रही है। उदयपुर के अनिल तलेसरा बताते हैं कि तार घर जाने का समय अब नहीं है। जब संदेश एसएमएस और ईमेल से कहीं जल्‍दी व सस्‍ते पहुंच जाते हैं तो क्‍या जरुरत है तार घर तक जाने और तार भेजने की। लेकिन हम आपको बताते हैं कि चीन सरकार ने अपनी और चीनी जनता की ओर से भारत के पहले राष्‍ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद को राष्‍ट्रपति चुनने पर तार के माध्‍यम से ही बधाई दी थी।

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
ek aaccha aur safal pryas.taknik ne humse bahut kuch china hain.Telegram bhi inhi me se ek hain..email aur sms ke jamene me to ab log letter likhan bhool gaye hain.jo ahsas kagaz ke tukade par likhe sab det hain voh kabhi email yaa sms nahi de payenge
बेनामी ने कहा…
badia hai lekh to hai hi, maal bhi

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