फिलिप्स कार्बन ब्लैक में पैसा ही पैसा
यदि आप इस समय निवेश के लिए एक बेहतर कंपनी की तलाश कर रहे हैं तो आपकी यह तलाश आरपीजी समूह की कंपनी फिलिप्स कार्बन ब्लैक के साथ पूरी हो सकती है। अब इस कंपनी के मुख्य कर्ता धर्ता अशोक गोयल हैं जिन्हें टर्नअराउंड विशेषज्ञ माना जाता है तभी तो उन्होंने 45 साल के इतिहास में पहली बार घाटे में गई इस कंपनी को एक साल के भीतर फिर से मुनाफे वाली कंपनियों की सूची में ला खड़ा किया।
घरेलू कार्बन ब्लैक की मांग वर्ष 2006 में 3.70 लाख टन थी जो वर्ष 2010 तक सालाना आठ फीसदी की दर से बढ़ती हुई 5.20 लाख टन पहुंच जाएगी। टायर उद्योग की बढ़ती मजबूत मांग से यह तय है कि कार्बन ब्लैक की मांग अगले पांच वर्ष में 7.4 फीसदी की औसत दर से बढ़ती रहेगी। जबकि कार्बन ब्लैक की आपूर्ति इस अवधि में पांच फीसदी की औसत सालाना दर से बढ़ेगी। फिलिप्स कार्बन ब्लैक, भारत की सबसे बड़ी कार्बन ब्लैक उत्पादक कंपनी है और इसकी बाजार हिस्सेदारी 41 फीसदी है। यही वजह है कि कंपनी को इस बढ़ते बाजार में जोरदार लाभ होगा। कार्बन ब्लैक का टायर उद्योग में सबसे ज्यादा 64 फीसदी, रबर होज, कनवेर्स, ऑटो कम्पोनेंट में 33 फीसदी और प्रिंटिंग इंक, पीवीसी, मास्टर बेचेज में तीन फीसदी उपयोग होता है। कार्बन ब्लैक के घरेलू खिलाडि़यों में फिलिप्स कार्बन की 48 फीसदी, हाई टेक की 29 फीसदी, कांटिनेंटल की 11 फीसदी, कैबॉट की नौ फीसदी और रालसन की तीन फीसदी बाजार हिस्सेदारी है।
कच्चे माल की कीमतें बढ़ने से इस कंपनी को इतिहास में पहली बार वर्ष 2006 में घाटा हुआ लेकिन कंपनी ने इससे सबक लेते हुए कई कदम उठाए और वर्ष 2007 में कंपनी ने अपने उत्पादों के दाम 20 फीसदी बढ़ाए और दाम तय करने के सूत्र को लचीला बनाया। साथ ही क्षमता का उपयोग बढ़ाने, कार्यकारी पूंजी पर मिलने वाली यील्ड के चक्र पर ध्यान से यह कंपनी सफलतापूर्वक घाटे से उबर गई है। कंपनी निजी बिजली संयंत्र लगाकर बिजली लागत को कम करने की दिशा में कदम उठा रही है। साथ ही सरप्लस बिजली बेचकर कंपनी आमदनी भी कर सकेगी। वर्ष 2009 में कपंनी को जहां निजी बिजली संयंत्र से छह लाख रुपए की बचत होगी, वहीं सरप्लस बिजली बेचकर 46 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई होगी।
कंपनी को वर्ष 2007 में 998 करोड़ रुपए की आय होने का अनुमान है वहीं यह आय वर्ष 2008 में 999 करोड़ रूपए और वर्ष 2009 में 1218 करोड़ रुपए पहुंच जाने की उम्मीद है। कंपनी को बीते वित्त वर्ष में 23 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ होने की उम्मीद की जा रही है। वर्ष 2008 में शुद्ध लाभ 67 करोड़ रुपए और वर्ष 2009 में 83 करोड़ रुपए रहने की आस है। इसी तरह प्रति शेयर आय वर्ष 2007 में 9.3 रुपए, वर्ष 2008 में 23.7 रुपए और वर्ष 2009 में 29.3 रुपए रहेगी। फिलिप्स कार्बन की अपनी समूह कंपनी सीएट में 12 फीसदी होल्डिंग है। फिलिप्स कार्बन और हाई टेक ये दो ही कंपनियां इस समय कार्बन ब्लैक की घरेलू और निर्यात मांग को पूरा करने के लिए अपना विस्तार कर रही हैं।
आरपीजी समूह की यह कंपनी कार्बन ब्लैक के उत्पादन में भारत में पहले स्थान पर और दुनिया में आठवें स्थान पर है। इसके तीन संयंत्र हैं जो बड़ौदा, कोचिन और दुर्गापुर में हैं। इन सभी संयंत्रों की कुल क्षमता 2.70 लाख टन है, जो देश की कुल स्थापित क्षमता का 48 फीसदी है। अब कंपनी सवा लाख टन सालाना की नई क्षमता जोड़ने जा रही है। साथ ही 26 मेगावाट का निजी बिजली संयंत्र भी लगा रही है। इस विस्तार पर कुल 3.5 अरब रुपए खर्च होंगे। इसमें से कार्बन ब्लैक संयंत्र पर 2.3 अरब रुपए और बिजली संयंत्र पर 1.2 अरब रुपए खर्च होंगे। यह विस्तार वर्ष 2009 तक पूरा हो जाएगा और इसके लाभ वित्त वर्ष 2010 के नतीजों में दिखाई देंगे। इस कंपनी के मुख्य ग्राहकों में गुडईयर, ब्रिजस्टोन और सभी घरेलू टायर निर्माता कंपनियां हैं। अपने 45 साल के इतिहास में कंपनी को पहली बार वर्ष 2006 में घाटा हुआ लेकिन अशोक गोयल की अगुआई में आई नई प्रबंधन टीम ने इसे फिर से मुनाफे में ला खड़ा किया। अशोक गोयल टर्नअराउंड विशेषज्ञ के रुप में प्रसिद्ध हैं। हमारी राय में इस कंपनी के शेयर का दाम जल्दी ही 250/300 रुपए पहुंच सकता है जो आज 175 रुपए के करीब बंद हुआ है।
घरेलू कार्बन ब्लैक की मांग वर्ष 2006 में 3.70 लाख टन थी जो वर्ष 2010 तक सालाना आठ फीसदी की दर से बढ़ती हुई 5.20 लाख टन पहुंच जाएगी। टायर उद्योग की बढ़ती मजबूत मांग से यह तय है कि कार्बन ब्लैक की मांग अगले पांच वर्ष में 7.4 फीसदी की औसत दर से बढ़ती रहेगी। जबकि कार्बन ब्लैक की आपूर्ति इस अवधि में पांच फीसदी की औसत सालाना दर से बढ़ेगी। फिलिप्स कार्बन ब्लैक, भारत की सबसे बड़ी कार्बन ब्लैक उत्पादक कंपनी है और इसकी बाजार हिस्सेदारी 41 फीसदी है। यही वजह है कि कंपनी को इस बढ़ते बाजार में जोरदार लाभ होगा। कार्बन ब्लैक का टायर उद्योग में सबसे ज्यादा 64 फीसदी, रबर होज, कनवेर्स, ऑटो कम्पोनेंट में 33 फीसदी और प्रिंटिंग इंक, पीवीसी, मास्टर बेचेज में तीन फीसदी उपयोग होता है। कार्बन ब्लैक के घरेलू खिलाडि़यों में फिलिप्स कार्बन की 48 फीसदी, हाई टेक की 29 फीसदी, कांटिनेंटल की 11 फीसदी, कैबॉट की नौ फीसदी और रालसन की तीन फीसदी बाजार हिस्सेदारी है।
कच्चे माल की कीमतें बढ़ने से इस कंपनी को इतिहास में पहली बार वर्ष 2006 में घाटा हुआ लेकिन कंपनी ने इससे सबक लेते हुए कई कदम उठाए और वर्ष 2007 में कंपनी ने अपने उत्पादों के दाम 20 फीसदी बढ़ाए और दाम तय करने के सूत्र को लचीला बनाया। साथ ही क्षमता का उपयोग बढ़ाने, कार्यकारी पूंजी पर मिलने वाली यील्ड के चक्र पर ध्यान से यह कंपनी सफलतापूर्वक घाटे से उबर गई है। कंपनी निजी बिजली संयंत्र लगाकर बिजली लागत को कम करने की दिशा में कदम उठा रही है। साथ ही सरप्लस बिजली बेचकर कंपनी आमदनी भी कर सकेगी। वर्ष 2009 में कपंनी को जहां निजी बिजली संयंत्र से छह लाख रुपए की बचत होगी, वहीं सरप्लस बिजली बेचकर 46 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई होगी।
कंपनी को वर्ष 2007 में 998 करोड़ रुपए की आय होने का अनुमान है वहीं यह आय वर्ष 2008 में 999 करोड़ रूपए और वर्ष 2009 में 1218 करोड़ रुपए पहुंच जाने की उम्मीद है। कंपनी को बीते वित्त वर्ष में 23 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ होने की उम्मीद की जा रही है। वर्ष 2008 में शुद्ध लाभ 67 करोड़ रुपए और वर्ष 2009 में 83 करोड़ रुपए रहने की आस है। इसी तरह प्रति शेयर आय वर्ष 2007 में 9.3 रुपए, वर्ष 2008 में 23.7 रुपए और वर्ष 2009 में 29.3 रुपए रहेगी। फिलिप्स कार्बन की अपनी समूह कंपनी सीएट में 12 फीसदी होल्डिंग है। फिलिप्स कार्बन और हाई टेक ये दो ही कंपनियां इस समय कार्बन ब्लैक की घरेलू और निर्यात मांग को पूरा करने के लिए अपना विस्तार कर रही हैं।
आरपीजी समूह की यह कंपनी कार्बन ब्लैक के उत्पादन में भारत में पहले स्थान पर और दुनिया में आठवें स्थान पर है। इसके तीन संयंत्र हैं जो बड़ौदा, कोचिन और दुर्गापुर में हैं। इन सभी संयंत्रों की कुल क्षमता 2.70 लाख टन है, जो देश की कुल स्थापित क्षमता का 48 फीसदी है। अब कंपनी सवा लाख टन सालाना की नई क्षमता जोड़ने जा रही है। साथ ही 26 मेगावाट का निजी बिजली संयंत्र भी लगा रही है। इस विस्तार पर कुल 3.5 अरब रुपए खर्च होंगे। इसमें से कार्बन ब्लैक संयंत्र पर 2.3 अरब रुपए और बिजली संयंत्र पर 1.2 अरब रुपए खर्च होंगे। यह विस्तार वर्ष 2009 तक पूरा हो जाएगा और इसके लाभ वित्त वर्ष 2010 के नतीजों में दिखाई देंगे। इस कंपनी के मुख्य ग्राहकों में गुडईयर, ब्रिजस्टोन और सभी घरेलू टायर निर्माता कंपनियां हैं। अपने 45 साल के इतिहास में कंपनी को पहली बार वर्ष 2006 में घाटा हुआ लेकिन अशोक गोयल की अगुआई में आई नई प्रबंधन टीम ने इसे फिर से मुनाफे में ला खड़ा किया। अशोक गोयल टर्नअराउंड विशेषज्ञ के रुप में प्रसिद्ध हैं। हमारी राय में इस कंपनी के शेयर का दाम जल्दी ही 250/300 रुपए पहुंच सकता है जो आज 175 रुपए के करीब बंद हुआ है।
टिप्पणियाँ
आपके विशलेषण पूरी तरह सटीक होते है,
इंडो एशियन फ्यूजगियर शायद आपकी पोस्ट का इँतजार कर रहा था, 15 फीसदी बढ चुका है
धन्यवाद :)