शेयर बाजार अब ज्यादा हॉट नहीं
दुनिया भर के शेयर बाजारों के साथ भारतीय शेयर बाजारों की जो गत बिगड़ी है उसकी दो वजह है। एक-विदेशी संस्थागत निवेशकों की लगातार बिकवाली, दो-देश में पैदा हुआ राजनीतिक संकट। हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स को लेकर किसी तरह की कोई समस्या नहीं है और वे पहले की तरह मजबूत बने हुए हैं लेकिन उपर्युक्त दो कारणों ने शेयर बाजार की गर्मी पर पानी डाला है। अर्थव्यवस्था के बैरोमीटर बीएसई के सेंसेक्स को 12800 के स्तर पर मजबूत स्पोर्ट मिलना चाहिए और अब हम अपने इस मत से पीछे हट रहे हैं कि इस साल के अंत तक बीएसई सेंसेक्स 18 हजार के अंक को छू जाएगा। हमारी राय में अब साल के आखिर तक सेंसेक्स 17 हजार के स्तर तक जा पाएगा क्योंकि अब जो भी तगड़ी बढ़त होगी, वहां मुनाफा वसूली उससे ज्यादा जोर से आएगी जिसकी वजह से सेंसेक्स हमारे पूर्व अनुमान 18 हजार तक नहीं पहुंच पाएगा।
दूर रहने में भलाई
निवेशकों को हमारी सलाह है कि वे नई खरीद से कुछ समय दूर रहें जब तक कि सेंसेक्स 15 हजार के अंक को पार नहीं कर जाता, बल्कि इस दौरान मुनाफा वसूली जरुर करते रहे या फिर उन कंपनियों में ही इंट्रा डे ट्रेडिंग करें जहां गर्मी आने की पक्की खबर हो या फिर गिरने की पक्की खबर हो तो शार्ट सेल कर पैसा कमाते रहे। लेकिन एक बात दिमाग में साफ रखें कि अगले तीन महीने तक बाजार में तेजी का बड़ा मूवमेंट नहीं होगा और मंदडिए हावी रहेंगे। हमारी राय में भारतीय शेयर बाजार की आने वाले दिनों में मौजूदा स्तर से दस फीसदी तक और धुलाई हो सकती है।
धमाके से बचना आसान नहीं
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों के तकरीबन 150 अरब डॉलर लगे हुए हैं जिससे यह तो साफ है कि घरेलू निवेशकों की ताकत इनकी तुलना में कम है और वही होगा जो विदेशी निवेशक चाहेंगे। इस पैसे में हैज फंडों और पी नोट की बड़ी भूमिका है। 1997 में एशिया में जो संकट पैदा हुआ था, उस समय हम जरुर बच गए लेकिन इसके बाद से अर्थव्यवस्था में खूब पानी बह गया है और अब हम भी एशिया में आने वाले किसी संकट अथवा वैश्विक अर्थव्यवस्था में होने वाले किसी भी धमाके से बच नहीं सकते। लेकिन हम दोहराना चाहेंगे कि हमारे फंडामेंटल्स खराब नहीं है और भारतीय बैंकिंग उद्योग की हालत बेहतर है जिससे लंबी अवधि के निवेशकों को बड़ी चपत नहीं लगेगी।
भारतीय शेयर बाजार जिस तरह विदेशी निवेशकों को रिटर्न दे रहा है उससे आने वाले दिनों में इन निवेशकों के सामने भारत में निवेश करने के अलावा कोई चारा नहीं है और यह निवेश आगे जाकर बढ़े तो अचरज नहीं होना चाहिए। यह इससे भी साफ है कि पहले ये निवेशक जहां केवल 50-75 कंपनियों में ही निवेश करते थे, वह संख्या अब हजार-डेढ़ हजार तक पहुंच गई है। पहले यह निवेश केवल सेंसेक्स आधारित या टॉप ब्लू चिप कंपनियों में ही होता था, वह अब मिड कैप कंपनियों में हो रहा है।
राजनीतिक दुर्भाग्य
अब बात करते हैं राजनीतिक मोर्चे की। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि पिछले कई साल से हमारे यहां कोई भी एक राजनीतिक दल अपने दम पर केंद्र में सरकार नहीं बना सका है जिसकी वजह से कई कड़े राजनीतिक और नीतिगत निर्णय करने में अड़चनें आती हैं। असल में भाजपा और कांग्रेस ने भानुमती का पिटारा टाइप की सरकारें दी हैं जो अहम मुद्दों पर लाचार नजर आईं। देशवासियों को वास्तविक आर्थिक, सामाजिक विकास के लिए इस दिशा में सोचना चाहिए और किसी भी राजनीतिक दल को साफ बहुमत देकर दिल्ली की गद्दी पर बैठाना चाहिए। इस समय कम्युनिस्ट जिस तरह भारत-अमरीका परमाणु करार पर रुख अपनाए हुए है और बयान दे रहे हैं, उसने बाजार के सेंटीमेंट को प्रभावित करने के साथ राजनीतिक अस्थिरता को पुष्ट किया है जिसके परिणाम हमें भोगने के लिए तैयार रहना होगा।
दूर रहने में भलाई
निवेशकों को हमारी सलाह है कि वे नई खरीद से कुछ समय दूर रहें जब तक कि सेंसेक्स 15 हजार के अंक को पार नहीं कर जाता, बल्कि इस दौरान मुनाफा वसूली जरुर करते रहे या फिर उन कंपनियों में ही इंट्रा डे ट्रेडिंग करें जहां गर्मी आने की पक्की खबर हो या फिर गिरने की पक्की खबर हो तो शार्ट सेल कर पैसा कमाते रहे। लेकिन एक बात दिमाग में साफ रखें कि अगले तीन महीने तक बाजार में तेजी का बड़ा मूवमेंट नहीं होगा और मंदडिए हावी रहेंगे। हमारी राय में भारतीय शेयर बाजार की आने वाले दिनों में मौजूदा स्तर से दस फीसदी तक और धुलाई हो सकती है।
धमाके से बचना आसान नहीं
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों के तकरीबन 150 अरब डॉलर लगे हुए हैं जिससे यह तो साफ है कि घरेलू निवेशकों की ताकत इनकी तुलना में कम है और वही होगा जो विदेशी निवेशक चाहेंगे। इस पैसे में हैज फंडों और पी नोट की बड़ी भूमिका है। 1997 में एशिया में जो संकट पैदा हुआ था, उस समय हम जरुर बच गए लेकिन इसके बाद से अर्थव्यवस्था में खूब पानी बह गया है और अब हम भी एशिया में आने वाले किसी संकट अथवा वैश्विक अर्थव्यवस्था में होने वाले किसी भी धमाके से बच नहीं सकते। लेकिन हम दोहराना चाहेंगे कि हमारे फंडामेंटल्स खराब नहीं है और भारतीय बैंकिंग उद्योग की हालत बेहतर है जिससे लंबी अवधि के निवेशकों को बड़ी चपत नहीं लगेगी।
भारतीय शेयर बाजार जिस तरह विदेशी निवेशकों को रिटर्न दे रहा है उससे आने वाले दिनों में इन निवेशकों के सामने भारत में निवेश करने के अलावा कोई चारा नहीं है और यह निवेश आगे जाकर बढ़े तो अचरज नहीं होना चाहिए। यह इससे भी साफ है कि पहले ये निवेशक जहां केवल 50-75 कंपनियों में ही निवेश करते थे, वह संख्या अब हजार-डेढ़ हजार तक पहुंच गई है। पहले यह निवेश केवल सेंसेक्स आधारित या टॉप ब्लू चिप कंपनियों में ही होता था, वह अब मिड कैप कंपनियों में हो रहा है।
राजनीतिक दुर्भाग्य
अब बात करते हैं राजनीतिक मोर्चे की। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि पिछले कई साल से हमारे यहां कोई भी एक राजनीतिक दल अपने दम पर केंद्र में सरकार नहीं बना सका है जिसकी वजह से कई कड़े राजनीतिक और नीतिगत निर्णय करने में अड़चनें आती हैं। असल में भाजपा और कांग्रेस ने भानुमती का पिटारा टाइप की सरकारें दी हैं जो अहम मुद्दों पर लाचार नजर आईं। देशवासियों को वास्तविक आर्थिक, सामाजिक विकास के लिए इस दिशा में सोचना चाहिए और किसी भी राजनीतिक दल को साफ बहुमत देकर दिल्ली की गद्दी पर बैठाना चाहिए। इस समय कम्युनिस्ट जिस तरह भारत-अमरीका परमाणु करार पर रुख अपनाए हुए है और बयान दे रहे हैं, उसने बाजार के सेंटीमेंट को प्रभावित करने के साथ राजनीतिक अस्थिरता को पुष्ट किया है जिसके परिणाम हमें भोगने के लिए तैयार रहना होगा।
टिप्पणियाँ
मार्किट की सेहत के लिए भी अच्छा है अगर वो १०-१२ दिन १३५०० - १४५०० के बीच नाचता रहे।