मेहमानों ने की मनमानी
आउटलुक साप्ताहिक हिंदी के 5 नवंबर 2007 के अंक में पेज संख्या 41 पर मेरा एक लेख छपा है..मेहमानों ने की मनमानी....आप भी पढि़ए इस लेख को.....सांप चला गया और लकीर पीटी जा रही है। भारतीय शेयर बाजार को बुरी तरह झकझोरने के बाद शेयर बाजार नियामक सेबी यही कर रही है। सेबी अब यह जानना चाहती कि मुंबई शेयर बाजार के सेंसेक्स ने 1700 अंक का गोता कैसे लगाया जिससे अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर हिल उठा। हालांकि, शेयर बाजार इन पंक्तियों के लिखे जाने तक स्थिर नहीं हो पाया था। भारत-अमेरिका परमाणु करार पर फैसला, सेबी की पार्टिसिपेटरी नोट पर बैठक, शेयर वायदा का निपटान, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति और अमेरिकी फैड रिजर्व की बैठक। ये पांच मसले भारतीय शेयर बाजार की अगली चाल तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। हालांकि, लंबी अवधि के निवेशकों के लिए बाजार में उतना खतरा नहीं है जितना रोज रोज कारोबार करने वाले निवेशकों के लिए।
सेंसेक्स 19198 अंक के ऑल टाइम हाई पर पहुंचने के बाद जिस तरह नीचे आया उसके लिए सेबी द्धारा पार्टिसिपेटरी नोट पर अपने दिशा निर्देशों का मसौदा सामने रखना मुख्य वजह मानी गई। यही वजह खास थी क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार में जमकर चांदी काट रहे थे और वे यह भी नहीं बताना चाहते हैं कि जो डॉलर भारत आ रहे हैं वे कहां से आ रहे हैं और उनका असली मालिक कौन हैं। वित्त विश्लेषकों का कहना है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बाहरी पैसे के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन यह जानने का सरकार और नियामकों को अधिकार तो है ही जो पैसा आ रहा है उसका मुख्य स्त्रोत क्या है। विदेशी संस्थागत निवेशक मेहमान है तो इसका मतलब यह नहीं कि वे मेजबान के घर में मनमानी करने लगें। मनमानी करने पर ऐसे मेहमान को घर से बाहर भी निकाला जा सकता है।
सेबी और रिजर्व बैंक ने इस बात पर जोर दिया है कि पार्टिसिपेटरी नोट के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने की आवश्यकता है। हालांकि, पार्टिसिपेटरी नोट को रोकने के लिए यह पहली बार कुछ नहीं कहा गया है। जब भी पार्टिसिपेटरी नोट पर अंकुश लगाने की बात होती है, शेयर बाजार में घबराहट भरी गिरावट आती है। स्थितियां आप भी देखिए कि पार्टिसिपेटरी नोट का कुल अनुमानित मूल्य मार्च 2004 के 31875 करोड़ रूपए से बढ़कर अगस्त 2007 में 353484 करोड़ रूपए पहुंच गया। यही वजह है रिजर्व बैंक इस मामले पर सेबी को जगाता रहा है जिसकी वजह से सेबी ने कुछ कदम उठाने की बात कही। सेबी विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश को लेकर चिंतित है। वह इन पर अब पूरा अंकुश चाहती है। इस कदम को उठाने की पहल इसलिए की गई है कि अचानक ऐसा बड़ा निवेश न आए जिसकी उम्मीद न की गई हो और फिर एकदम से वह पैसा बाहर निकल जाए जिससे बाजार को तगड़ा झटका लगे। हालांकि, यहां एक बात समझ में नहीं आती कि पार्टिसिपेटरी नोट की बीमारी पर सेबी ने शुरूआत में ही कोई कदम क्यों नहीं उठाया जिसके इलाज के बारे में बाजार के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद कहा गया।
उभरते बाजारों में भारत जिस तरह बाहरी निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है उसमें शेयर सेंसेक्स के अभी और नई मंजिल तक पहुंचने के मौके हैं। ऐसे में छोटे और बड़े निवेशक यह जान लें कि सब कुछ मिटने नहीं जा रहा है। बुनियादी रुप से मजबूत कंपनियों के शेयर मजबूत रहेंगे। हां, जिन में जमकर सट्टा चल रहा था या कमजोर कंपनियां जो गलत ढंग से दौड़ रही थी उनमें नुकसान होगा। सेबी ने पार्टिसिपेटरी नोट पर अभी कोई अंतिम सिफारिश नहीं दी है। सेबी ने केवल डिस्क्शन पेपर जारी किया है लेकिन इसकी भाषा से लगता है कि सेबी पार्टिसिपेटरी नोट को नियंत्रित करना चाहती है। पार्टिसिपेटरी नोट किसी विदेशी संस्थागत निवेशक और उसके विदेशी ग्राहक के बीच होने वाला समझौता होता है। इसके माध्यम से विदेशी निवेशक उस विदेशी संस्थागत निवेशक को अपने लिए कोई सौदा करने का निर्देश देता है। लेकिन जब यह सौदा बाजार में होता है तो नाम विदेशी संस्थागत निवेशक का ही आता है असली विदेशी ग्राहक का नहीं। असल में पार्टिसिपेटरी नोट के माध्यम से शेयर खरीदने बेचने वाले की पूरी जानकारी सेबी को नहीं मिल पाती यानी पार्टिसिपेटरी नोट विदेशी निवेशकों को बाजार में पैसा लगाने और बेचकर निकलने का आसान और छिपा रास्ता है। एक तरह से ये बेनामी विदेशी सौदे हैं।
सेंसेक्स 19198 अंक के ऑल टाइम हाई पर पहुंचने के बाद जिस तरह नीचे आया उसके लिए सेबी द्धारा पार्टिसिपेटरी नोट पर अपने दिशा निर्देशों का मसौदा सामने रखना मुख्य वजह मानी गई। यही वजह खास थी क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार में जमकर चांदी काट रहे थे और वे यह भी नहीं बताना चाहते हैं कि जो डॉलर भारत आ रहे हैं वे कहां से आ रहे हैं और उनका असली मालिक कौन हैं। वित्त विश्लेषकों का कहना है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बाहरी पैसे के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन यह जानने का सरकार और नियामकों को अधिकार तो है ही जो पैसा आ रहा है उसका मुख्य स्त्रोत क्या है। विदेशी संस्थागत निवेशक मेहमान है तो इसका मतलब यह नहीं कि वे मेजबान के घर में मनमानी करने लगें। मनमानी करने पर ऐसे मेहमान को घर से बाहर भी निकाला जा सकता है।
सेबी और रिजर्व बैंक ने इस बात पर जोर दिया है कि पार्टिसिपेटरी नोट के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने की आवश्यकता है। हालांकि, पार्टिसिपेटरी नोट को रोकने के लिए यह पहली बार कुछ नहीं कहा गया है। जब भी पार्टिसिपेटरी नोट पर अंकुश लगाने की बात होती है, शेयर बाजार में घबराहट भरी गिरावट आती है। स्थितियां आप भी देखिए कि पार्टिसिपेटरी नोट का कुल अनुमानित मूल्य मार्च 2004 के 31875 करोड़ रूपए से बढ़कर अगस्त 2007 में 353484 करोड़ रूपए पहुंच गया। यही वजह है रिजर्व बैंक इस मामले पर सेबी को जगाता रहा है जिसकी वजह से सेबी ने कुछ कदम उठाने की बात कही। सेबी विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश को लेकर चिंतित है। वह इन पर अब पूरा अंकुश चाहती है। इस कदम को उठाने की पहल इसलिए की गई है कि अचानक ऐसा बड़ा निवेश न आए जिसकी उम्मीद न की गई हो और फिर एकदम से वह पैसा बाहर निकल जाए जिससे बाजार को तगड़ा झटका लगे। हालांकि, यहां एक बात समझ में नहीं आती कि पार्टिसिपेटरी नोट की बीमारी पर सेबी ने शुरूआत में ही कोई कदम क्यों नहीं उठाया जिसके इलाज के बारे में बाजार के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद कहा गया।
उभरते बाजारों में भारत जिस तरह बाहरी निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है उसमें शेयर सेंसेक्स के अभी और नई मंजिल तक पहुंचने के मौके हैं। ऐसे में छोटे और बड़े निवेशक यह जान लें कि सब कुछ मिटने नहीं जा रहा है। बुनियादी रुप से मजबूत कंपनियों के शेयर मजबूत रहेंगे। हां, जिन में जमकर सट्टा चल रहा था या कमजोर कंपनियां जो गलत ढंग से दौड़ रही थी उनमें नुकसान होगा। सेबी ने पार्टिसिपेटरी नोट पर अभी कोई अंतिम सिफारिश नहीं दी है। सेबी ने केवल डिस्क्शन पेपर जारी किया है लेकिन इसकी भाषा से लगता है कि सेबी पार्टिसिपेटरी नोट को नियंत्रित करना चाहती है। पार्टिसिपेटरी नोट किसी विदेशी संस्थागत निवेशक और उसके विदेशी ग्राहक के बीच होने वाला समझौता होता है। इसके माध्यम से विदेशी निवेशक उस विदेशी संस्थागत निवेशक को अपने लिए कोई सौदा करने का निर्देश देता है। लेकिन जब यह सौदा बाजार में होता है तो नाम विदेशी संस्थागत निवेशक का ही आता है असली विदेशी ग्राहक का नहीं। असल में पार्टिसिपेटरी नोट के माध्यम से शेयर खरीदने बेचने वाले की पूरी जानकारी सेबी को नहीं मिल पाती यानी पार्टिसिपेटरी नोट विदेशी निवेशकों को बाजार में पैसा लगाने और बेचकर निकलने का आसान और छिपा रास्ता है। एक तरह से ये बेनामी विदेशी सौदे हैं।
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