दो हाई प्रोफाइल मौत !
भारतीय शेयर बाजार में डेढ़ साल बाद दो हाई प्रोफाइल कंपनियों के आईपीओ की मौत हुई है। शेयर बाजार में चल रही ताजा गिरावट ने पहले वोकहार्ट हॉस्पिटल और अब रीयल इस्टेट की दिग्गज कंपनी एमार एमजीएफ को पब्लिक इश्यू यानी आईपीओ वापस लेने पर मजबूर कर दिया। इन कंपनियों को अपने शेयर खरीदने वाले ही नहीं मिले। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ, शेयर बाजार में मंदी ही इनके आईपीओ की मौत के लिए जिम्मेदार है। शेयर बाजार में अभी पहली बार मंदी आई हो, ऐसी बात नहीं है। मंदी और तेजी का चक्र चलता रहता है। लेकिन जिस तरह इन कंपनियों ने अपने आईपीओ की प्राइस बैंड यानी निवेशकों को अपने शेयर बेचने की कीमत रखी वह सही नहीं थी, नतीजन निवेशकों ने इन्हें खारिज कर दिया।
वोकहार्ट हॉस्पिटल के आईपीओ को केवल 20 फीसदी ही समर्थन मिला। रीयल इस्टेट दिग्गज कंपनी एमार एमजीएफ को भी यह समर्थन 38 फीसदी रहा। निवेशकों के इतने कमजोर समर्थन ने इन दोनों कंपनियों के लीड मैनेजरों को आईपीओ वापस लेने पर मजबूर कर दिया। फर्स्ट ग्लोबल के शंकर शर्मा का कहना है कि निवेशकों को डर है कि आईपीओ के शेयर बीएसई और एनएसई में लिस्टेड होने पर मंदी की चपेट में न आ जाएं। इसलिए वे ज्यादा प्राइस बैंड वाले आईपीओ से बच रहे हैं। निवेशकों का मूड देखते हुए आने वाले कई आईपीओ के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है।
वोकहार्ट हॉस्पिटल और एमार एमजीएफ वाकई अच्छी कंपनियां है लेकिन इनका प्राइस बैंड बाजार की उम्मीद से कहीं ऊंचा था। हालांकि इन दोनों कंपनियों ने अपने प्राइस बैंड घटाने के अलावा आईपीओ में पैसा लगाने के लिए आवेदन जमा कराने की तारीख तक बढ़ाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वोकहार्ट हॉस्पिटल ने अपने शेयर की प्राइस बैंड 280 से 310 रुपए से घटाकर 225 से 260 रुपए कर दी थी। एमार एमजीएफ ने अपने शेयर की प्राइस बैंड 610 से 690 रुपए से घटाकर 540 से 630 रुपए कर दी थी। प्राइस बैंड का मतलब होता कि जिस भाव पर निवेशक शेयरों के लिए आवेदन कर सकते हैं। जब कोई कंपनी अपना आईपीओ बाजार में लाती है तो उसका प्रति शेयर का मूल्य तकनीकी रूप से दस रुपए होता है। कारोबार और नेटवर्थ के आधार पर कंपनी को प्रीमियम और प्राइस बैंड तय करने का अधिकार होता है।
एमआर एमजीएफ के बारे में एक रोचक बात देखें कि एमआर दुबई स्थित कंपनी है और दुबई स्टॉक एक्सचेंज में इसकी लिस्टिंग 130 रुपए प्रति शेयर पर हुई, जबकि भारत में यह प्रति शेयर 610 से 690 रुपए वसूलना चाहती थी। निवेशक अब पहले से ज्यादा सचेत हैं और जब उन्हें पता है कि दुबई में इस कंपनी का शेयर काफी सस्ता मिल रहा है तो वे क्यों यहां इतना महंगा दाम चुकाएं। निवेशकों को यदि एमआर में रुचि होगी तो सीधे दुबई एक्सचेंज में शेयर नहीं खरीद लेंगे।
वोकहार्ट हॉस्पिटल और एमार एमजीएफ के आईपीओ की हुई दुर्दशा के बाद भी कुछ कंपनियां प्राइमरी बाजार में ताल ठोंक कर खड़ी हुई हैं। लेकिन इनके आईपीओ का क्या हाल रहेगा, यह तो शेयर बाजार का मूड तय करेगा। इस बीच, एसवीईसी कंसट्रक्शंस ने अपने प्राइस बैंड 85 से 95 रुपए को घटाकर 80 से 90 रुपए करने के साथ आईपीओ बंद होने की तारीख बढ़ाकर 13 फरवरी कर दी है। कंपनी को 40 लाख शेयरों के केवल 24 फीसदी हिस्से के लिए अब तक आवेदन मिल पाएं हैं। यानी इस आईपीओ को भी कोई चमत्कारिक निवेश ही बचा सकेगा।
फरवरी महीने में अब सात और कंपनियों के आईपीओ आने हैं उनमें खास नजर सरकारी कंपनी रुरल इलेक्ट्रीफिकेशन कार्पोरेशन यानी आरईसी पर रहेगी। यह कंपनी 957 करोड़ रुपए के आईपीओ के साथ 19 फरवरी को पूंजी बाजार में उतरेगी। इस कंपनी ने अपने शेयर का प्राइस बैंड 90 से 105 रुपए प्रति शेयर तय किया है। इसके अलावा वस्कॉन इंजीनियरिंग 500 करोड़ रुपए, ऑयल इंडिया 500 करोड़ रुपए, जीएसएस अमरीका 150 करोड़ रुपए, ग्लोबस स्पिरिट 68 करोड़ रुपए, अल्कली मेटल 55 करोड़ रुपए और झवेरी फ्लैक्सो 50 करोड़ रुपए पूंजी बाजार से जुटाने के लिए इस महीने बाजार में उतर रही हैं। इन कंपनियों की वोकहार्ट हॉस्पिटल और एमआर एमजीएफ के नतीजों ने नींद उड़ा दी है।
आने वाले आईपीओ के भविष्य के बारे में एक विशेषज्ञ का कहना है कि यह बाजार के मूड पर निर्भर करता है। बजट आने वाला है और बाजार में स्थिरता आ सकती है और यह सुधर भी सकता है। मगर कंपनियों को अपने आईपीओ के दाम को लेकर काफी होमवर्क करना होगा। निवेशक अब सैकेंडरी मार्केट को देखकर ही आईपीओ को खरीदेगा।
टिप्पणियाँ
बस अपन तो बाल बाल बचे कि लास्ट दिन ही चैक दिया और बाद में पता चला कि डेट बढ गई इसलिए बच गए वर्ना 15 दिन के लिए रकम और अटक जाती