तमाशा शार्ट सेलिंग का: हेज फंडों को करारी मात

लंदन के अति समझदार हेज फंडों को जिस तरह उनकी बेतहाशा समझदारी के चलते, जर्मन कार कंपनी पोर्श ने 20 अरब डॉलर की करारी चोट दी है, उसकी वजह से हेज फंडों में मचे रोने-पीटने को सांत्वना देने का जिगर किसी में नहीं बचा है।

अधिकांश जर्मन इसे 'लालची' हेज फंडों पर जर्मन कार उद्योग की शानदार जीत के तौर पर महसूस कर रहे हैं जिनमें ज्यादातर पोर्श के ग्राहक हैं। हेज फंडों ने यह भारी रकम उस बाजार रणनीति की वजह से गंवाई, जिसे अभी तक बाजार में चांदी काटने का शानदार अल्पकालिक (शार्ट टर्म) तरीका समझा जाता रहा और जिसकी वजह से तमाम हेज फंडों को दुनिया भर में विद्रोही कमाऊ सपूतों की चमकदार छवि मिली। अब हाल यह है कि उनमें से अधिकांश को अपनी जान के लाले पड़ गए हैं। लीमैन ब्रदर्स के पतन और इसके बाद मचे विश्वव्यापी विकराल आर्थिक संकट की वजह से दुनिया भर की अनेक नामी-गिरामी वित्तीय संस्थाओं के लिए यह चोट, ताबूत की आखिरी कील की तरह है। लेकिन इस मसले को लेकर हेज फंडों के साथ सहानुभूति उनके अपने परिवार के सिवा और किसी की हो ही नहीं सकती।

अगर कार बनाने वाली नामी कंपनी पोर्श ने इसमें केंद्रीय भूमिका निभाई, जैसा कि उस पर आरोपों की झड़ी लगाई जा रही है, तो सम्भवत: यह बाजार से छेड़छाड़ का इसके भयंकर दुष्परिणामों समेत पहला सबसे बड़ा मामला माना जाएगा। हालांकि पोर्श ने इसे पूर्णतया कानूनी करार देते हुए इसमें कुछ भी गलत नहीं बताया है। जर्मन नियामक 'बाफिन' का मानना है कि अगर आंतरिक गड़बड़ी का कोई मामला पाया जाता है तो पूरे मामले की जांच कराई जा सकती है (हालांकि अभी तक जांच संबंधी कोई कार्यवाही किए जाने के संकेत नहीं हैं।) लेकिन बाफिन पोर्श के द्वारा कुछ भी गलत नहीं किए गए होने के दृष्टिकोण को स्वीकार कर रहा है। दूसरे शब्दों में, यह मामला ऐसा है कि इसमें पीड़ित हेज फंडों की करतूतों की समीक्षा की जानी चाहिए।

असल में सारा मामला जर्मनी की एक अन्य नामी कार कंपनी वॉक्सवैगन में हेज फंडों द्वारा शार्ट पोजीशन लिए जाने से शुरू हुआ था जबकि विश्वव्यापी मंदी के दौर में जर्मन कार कंपनियों के शेयर भी ओवरवैल्यूड देखे जा रहे थे और जिनका गिरना तय माना जा रहा था। अमेरिका में कार कंपनियों के शेयरों का भट्ठा बैठने के साथ दुनिया भर के मोटर निर्माता संकट में थे और पोर्श, अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी, वॉक्सवैगन में अपनी हिस्सेदारी बढा़कर 50 फीसदी करने की इच्छा पहले ही जाहिर कर चुकी थी। ऐसे में वॉक्सवैगन के सामान्य शेयरों की बाजार में कमी करके हेज फंडों को अपनी विजय सुनिश्चित नजर आ रही थी। लेकिन डेरिवेटिव सौदों और ऑप्शन आदि के जरिए जिस तरह से पोर्श ने अपनी हिस्सेदारी गोपनीय रूप से तकरीबन 75 फीसदी कर ली, (जिसके कि 42.6 फीसदी के होने का अनुमान था) वही हेज फंडों के लिए प्राणघाती हो गया। 20 फीसदी की सरकारी हिस्सेदारी के बाद बाजार में वॉक्सवैगन के शेयरों का अकाल पड़ गया।

वॉक्सवैगन के शेयर गिरने की आशा में जर्मनी के पेंशन फंडों से शेयर उधार लेकर पोजीशन ले बैठे हेज फंडों पर गाज गिराते हुए, वॉक्सवैगन का शेयर राकेट की गति से बाजार में चढा़ और बाजार पूंजीकरण के मामले में एकाएक ही वॉक्सवैगन को संसार की सबसे बड़ी कंपनी बनाते हुए, जर्मनी के मुख्य सूचकांक डॉक्स' में शामिल हो गया। शुक्रवार को 210 पर बंद हुआ यह शेयर अगले कारोबारी दिन में 1005 का स्तर छूने के बाद 945 पर बंद हुआ। बाजार में केवल 6 फीसदी शेयर ही कारोबार के लिए उपलब्ध होने की वजह से यह जोरदार गर्मी आई। इस तरह हेज फंडों को किसी एक अकेली कंपनी के शेयरों में होने वाले सबसे बड़े घाटे का अलार्म बज गया।

इस साल की दूसरी छमाही में कुल 500 अरब का घाटा हेज फंडों को उनके द्वारा शार्ट सेलिंग पर भरोसा किए जाने के कारण होने का अनुमान मार्गन स्टेनले के विशेषज्ञों ने लगाया है। पिछले सप्ताह 50 फीसदी नीचे आए वॉक्सवैगन के शेयर के बारे में ज्यादातर लोगों के साथ जिस दौरान हेज फंड भी इस शेयर के जल्दी ही ध्वस्त होने के कयास लगा रहे थे, उसी दौरान पोर्श गुपचुप इसमें अपनी हिस्सेदारी मजबूत करते हुए करीब तीन चौथाई कर रही थी।(जबकि पिछले मार्च में इसने वॉक्सवैगन में अपना नियंत्रण 50 फीसदी से बढा़ने की बात को यह कहकर खारिज कर दिया था कि वॉक्सवैगन के शेयरहोल्डरों के ढांचे को देखते हुए, इसमें 75 फीसदी का नियंत्रण हासिल करने की संभावना न के बराबर है।) मौजूदा हालात में, कुल कार्यक्रम में सबसे बड़े फायदे में पोर्श रही है, जो अपने खिलाफ सभी आरोपों को हवा में उड़ा रही है।

आरोपों-प्रत्यारोपों का यह दौर लंबा चले या न चले, कई हेज फंडों को यह करारी चोट दिवालियेपन के कगार पर ला चुकी है। एक नजर शार्ट-सेलिंग के पहलूओं पर डालें कि शार्ट सेलिंग क्या है? दांव या असफलता?
-एक निवेशक शेयर या अन्य परिसम्पत्तियों को धारक से उधार लेता है।
-ये शेयर बाजार में इस उम्मीद में बेच दिए जाते हैं कि बाजार आगे और गिरेगा।
-शेयरों को वापस गिरी कीमतों पर खरीदने का लक्ष्य रखा जाता है। ऐसा करके उधार लिए गए शेयर मूल धारक को वापस लौटा दिए जाते हैं।
-अगर ट्रेडरों की बड़ी तादाद शेयरों की एक साथ शार्ट सेलिंग करती है, तो शेयर की कीमत गिरना तय होता है।
-एक ओवर-वैल्यूड शेयर के भाव को वाजिब कीमतों पर लाने में शार्ट-सेलिंग की अहम भूमिका होती है।


टिप्पणियाँ

ab inconvenienti ने कहा…
बढ़िया सबक सिखाया, सट्टेबाज़ फंडों को इसी तरह की कुछ लातें और लगनी चाहिए

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