दलाल स्ट्रीट: डे ऑफ डिपार्चर
इजिप्त (मिस्त्र) में 30 साल से शासन में जमे होस्नी मुबारक के खिलाफ जनता का डे ऑफ डिपार्चर शुरु हो गया है। यमन, सीरिया के भी हालात ठीक नहीं है। टयूनिशिया से शुरु हुई चिंगारी ने दस देशों की जनता को जगा दिया है। भारत की जनता अभी जागी नहीं है लेकिन दलाल स्ट्रीट जाग गई है। इजिप्त और सीरिया की गंभीर स्थिति को समझते हुए दलाल स्ट्रीट में आज आई जोरदार बिकवाली ने भारतीय शेयर बाजार के रिकॉर्ड में दर्ज ब्लैक फ्राइडे में एक और शुक्रवार को जोड़ दिया।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स आज 18450.07 अंक पर खुला और ऊपर में 18542.20 अंक आया। यह नीचे में 17926.98 अंक गया। यह अंत में 441.16 अंक गिरकर 17926.98 अंक पर बंद हुआ। बीएसई मिडकैप इंडेक्स 93.35 अंक घटकर 6734.52 अंक पर निपटा। बीएसई स्मॉल कैप इंडेक्स 132.80 अंक कमजोर पड़कर 8331.20 अंक पर बंद हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की निफ्टी 137.80 अंक फिसलकर 5388.95 अंक पर बंद हुई।
जागी जनता शुक्रवार, शनिवार और रविवार को इजिप्त, सीरिया में क्या गुल खिला देगी, कोई नहीं जानता। यदि यहां अशांति बढ़ी तो शेयर बाजार की परेशानियां कम नहीं होगी लेकिन इजिप्त में मुबारक शांति के साथ सत्ता हस्तांतरण कर देते हैं और वहां अराजकता नहीं फैलती है तो दुनिया चैन की सांस लेगी। अमरीका इजिप्त के अधिकारियों के साथ मुबारक को हटाने का समझौता तैयार कर रहा है। अमरीका में राष्ट्रपति बराक ओबामा का प्रशासन ऐसे ही एक समझौते को अंतिम रूप देने की कोशिशों में जुटा है जिसके तहत इजिप्त के कई वरिष्ठ नेताओं से भी बातचीत चल रही है। ऐसा होता है तो यह तय है कि सोमवार 7 फरवरी 2011 को दलाल स्ट्रीट में बेहतर बाउंस बैक होगा, रौनक लौट आएगी अन्यथा कम से कम अगले दो महीने खराब ही रहेंगे। इजिप्त की शांति नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की निफ्टी को 5700 से 5800 के करीब इस महीने के अंत तक ले जा सकती है। अन्यथा, आज का दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए भी डे ऑफ डिपार्चर होगा जो निफ्टी को आठ सौ से एक हजार अंक और नीचे उतार सकता है।
इजिप्त में होस्नी मुबारक भी अमरीका के खास आदमी है और अमरीका की अगुवाई में बन रहे समझौते में भी वही आदमी इजिप्त की बागड़ोर संभालेगा जो अमरीका का पिछलग्गू बना रहे। अमरीका अब इजिप्त में अपनी पकड़ और मजबूत बनाकर इस्लामिक देशों की गर्दन नापना चाहता है। टयूनिशिया के भागे राष्ट्रपति भी अमरीका के रहमोकरम से ही शासन कर रहे थे। अमरीका अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने और इस्लामिक राष्ट्रों को डांवाडोल करने के लिए एक के बाद एक देश को नापेगा। इन देशों में सीरिया, जार्डन, ईरान, सउदी अरब, अलजीरिया, तजाकिस्तान, बेलारुस, यमन, जिम्बॉबे, सूडान शामिल है।
इराक और अफगानिस्तान में अमरीका पहले ही अपनी पैठ बना चुका है लेकिन इराक के तेल भंडार पर कब्जा करने के अलावा उसे इन दो देशों में कोई खास फायदा नहीं हुआ। लेकिन इस बार जिन जिन देशों की वह गर्दन नापना चाहता है उससे उसे भौगोलिक, राजनीतिक और आर्थिक लाभ होगा। अमरीकी डॉलर मजबूत होगा और दुनिया भर का पैसा फिर अमरीका लौटेगा जिससे वहां की मरी अर्थव्यवस्था में जान आएगी। इन इस्लामिक देशों के बाद अमरीका ब्रिक देशों यानी ब्राजील, रुस, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाने की तैयारी करेगा।
इन बिक्र देशों के बाजारों पर अमरीकी कंपनियों की पकड़ मजबूत न हुई तो यहां अमरीका साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल कर अपनी ताकत बढ़ाएगा। यह वही अमरीका है जिसने एशियन टाइगरों को टाइगर-टाइगर कहकर खूब चढ़ाया और बाद में उनकी हालत चूहे जैसे कर दी। भारत को सचेत रहने की जरुरत है क्योंकि हर विदेशी इंडिया शाइनिंग, इंडिया ग्रोथ स्टोरी, इमर्जिंग मार्केट कह कहकर कहीं चने के झाड पर तो नहीं चढ़ा रहे। हम ग्रोथ करें, आगे बढ़े, लेकिन सचेत होकर अन्यथा यहां के शासकों को भी डे ऑफ डिपार्चर का सामना करना पड़ सकता है और यह हर कोई जानता है कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को ऐसा ही डिपार्चर...भारत छोड़ो करवाया था।
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