परदेसी ने छोड़ा साथ, बाजार का हुआ सत्यानाश
तुम तो ठहरे परदेसी...साथ क्या निभाओगे..यह गाना इस समय शेयर बाजार पर सटीक बैठ रहा है। शेयर बाजार के फंडामेंटल और तकनीकी विश्लेषकों के साथ सरकारी एजेंसियों के कर्ता धर्ता भी यह कहते रहे कि इंडिया ग्रोथ स्टोरी, इंडिया शाइनिंग, मेरा भारत महान...आप देखते जाइए कि विदेशी निवेशक यहां से भाग नहीं पाएंगे। विदेशी पैसे के आगमन को लेकर निवेशक चिंता न करें, पैसा लगातार आता रहेगा। निवेशक चैन की नींद सोएं। लेकिन ताजा आंकडें देखिए...इन्हीं निवेशकों ने भारत सहित सभी उभरते बाजारों का सत्यानाश कर दिया। ताजा आंकडे देखिए...2 फरवरी 2011 को समाप्त सप्ताह में इन निवेशकों ने सात अरब डॉलर निकाल लिए। बीते तीन सालों में बाजार से निकाली गई यह सबसे ज्यादा रकम है। इस राशि में 4.6 अरब डॉलर की राशि एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड से निकाली गई रकम है। भारतीय बाजार से इन निवेशकों ने 20.7 करोड़ डॉलर की राशि निकाली है जो जून 2010 के बाद सबसे अधिक है।
अभी यह निकलती राशि थमने का नाम नहीं ले रही है। 2 फरवरी के बाद भी बाजार लगातार गिरते जा रहा है। गिरावट जहां जाकर थमेगी, वहां पता चलेगा कि भारत सहित उभरते बाजारों से परदेसियों ने कितना पैसा निकाल लिया। हमारी और हमारे बाजारों की यह नियति बन गई है कि अपने पैसे के बजाय हम दूसरों के पैसे से आगे बढ़े। विदेशी निवेशकों पर बाजार को पूरी तरह निर्भर कर दिया, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों को ऐसे में आगे आकर बाजार को संभालना चाहिए था यदि वाकई इंडिया ग्रोथ स्टोरी सही है तो। भारत के प्रति भरोसा है कि हम वाकई तेजी से तरक्की कर रहे हैं और कुछ भी गड़बड़ नहीं है तो घरेलू संस्थागत निवेशक क्यों शेयर बेच रहे हैं या किसके इशारे पर शेयर बेच रहे हैं। अथवा घरेलू संस्थागत निवेशक भी यह मानते हैं कि परदेसियों के बगैर हमारे बाजार को कोई माई बाप नहीं है। केवल बढ़ती महंगाई को बाजार पर पड़ रही मार के दोषी ठहराना सही नहीं है। जब हमारी जीडीपी जवाहर लाल नेहरु जी के जमाने की 2.25 फीसदी से बढ़कर आठ फीसदी पहुंच गई। हमारी जीवन शैली में तब से अब तक जमीन-आसमान का अंतर आ गया। हमारी प्रति व्यक्ति आय कहां से कहां पहुंच गई और साथ ही जनसंख्या तो महंगाई का बढ़ना कुछ हद तक सही भी है। लेकिन इस समय अधिकतर विश्लेषक महंगाई दर को लेकर इस तरह निवेशकों को डरा रहे हैं जैसे मीडिया की खबरों के मुताबिक 2012 में धरती साफ हो जाएगी और बाद में सतयुग की शुरुआत होगी।
निवेशक एक बात साफ ध्यान रखें कि वर्ष 2008 की शुरुआत में जो गिरावट शुरु हुई थी उसके बाद सेंसेक्स आठ हजार के स्तर से नीचे चला गया था लेकिन इक्विटी विश्लेषकों ने निवेशकों को मीडिया में इस तरह गुमराह किया कि वे कोई शेयर खरीद ही नहीं सके। ये विश्लेषक मानते थे कि सेंसेक्स तीन हजार अंक के करीब आ जाएगा लेकिन 8500 के बाद सेंसेक्स ने पलटकर नहीं देखा एवं फिर से 21 हजार की ऊंचाई को छू लिया। अब फिर बाजार फिसल पट्टी पर है। निवेशक खुद अपनी पढ़ाई और ज्ञान के आधार पर बेहतर कंपनियों का चयन कर छोटी छोटी मात्रा में खरीद करें जिससे न उनकी लागत कम रहेगी बल्कि बाजार के बढ़ने पर उनको बेहतर शेयर खरीद पाने का मलाल भी नहीं होगा। ध्यान रखें कि दूसरों के ज्ञान से भरपूर पैसे नहीं कमाए जा सकते। यदि ऐसा होता तो ये तथाकथित विश्ेलषक अरबपति होते और उनके पास खजाने की चाबी बताने का समय नहीं होता। शेयर बाजार में आज भी कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जो बेहद बड़ी भूमिका निभाते हैं लेकिन अब तक न तो वे किसी टीवी पर आए, न अखबारों में उनका इंटरव्यू आया और न ही किसी वेबसाइट पर चमके। इनके पास काम से फुर्सत नहीं है लेकिन फुर्सतिया विश्लेषक अपना महान ज्ञान एक चार्ट सॉफ्टवेयर को सामने रखकर बांटने आ जाते हैं। मंदी में मंदी और तेजी में तेजी यानी भारतीय नेताओं की तरह आयाराम-गयाराम।
अभी यह निकलती राशि थमने का नाम नहीं ले रही है। 2 फरवरी के बाद भी बाजार लगातार गिरते जा रहा है। गिरावट जहां जाकर थमेगी, वहां पता चलेगा कि भारत सहित उभरते बाजारों से परदेसियों ने कितना पैसा निकाल लिया। हमारी और हमारे बाजारों की यह नियति बन गई है कि अपने पैसे के बजाय हम दूसरों के पैसे से आगे बढ़े। विदेशी निवेशकों पर बाजार को पूरी तरह निर्भर कर दिया, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों को ऐसे में आगे आकर बाजार को संभालना चाहिए था यदि वाकई इंडिया ग्रोथ स्टोरी सही है तो। भारत के प्रति भरोसा है कि हम वाकई तेजी से तरक्की कर रहे हैं और कुछ भी गड़बड़ नहीं है तो घरेलू संस्थागत निवेशक क्यों शेयर बेच रहे हैं या किसके इशारे पर शेयर बेच रहे हैं। अथवा घरेलू संस्थागत निवेशक भी यह मानते हैं कि परदेसियों के बगैर हमारे बाजार को कोई माई बाप नहीं है। केवल बढ़ती महंगाई को बाजार पर पड़ रही मार के दोषी ठहराना सही नहीं है। जब हमारी जीडीपी जवाहर लाल नेहरु जी के जमाने की 2.25 फीसदी से बढ़कर आठ फीसदी पहुंच गई। हमारी जीवन शैली में तब से अब तक जमीन-आसमान का अंतर आ गया। हमारी प्रति व्यक्ति आय कहां से कहां पहुंच गई और साथ ही जनसंख्या तो महंगाई का बढ़ना कुछ हद तक सही भी है। लेकिन इस समय अधिकतर विश्लेषक महंगाई दर को लेकर इस तरह निवेशकों को डरा रहे हैं जैसे मीडिया की खबरों के मुताबिक 2012 में धरती साफ हो जाएगी और बाद में सतयुग की शुरुआत होगी।
निवेशक एक बात साफ ध्यान रखें कि वर्ष 2008 की शुरुआत में जो गिरावट शुरु हुई थी उसके बाद सेंसेक्स आठ हजार के स्तर से नीचे चला गया था लेकिन इक्विटी विश्लेषकों ने निवेशकों को मीडिया में इस तरह गुमराह किया कि वे कोई शेयर खरीद ही नहीं सके। ये विश्लेषक मानते थे कि सेंसेक्स तीन हजार अंक के करीब आ जाएगा लेकिन 8500 के बाद सेंसेक्स ने पलटकर नहीं देखा एवं फिर से 21 हजार की ऊंचाई को छू लिया। अब फिर बाजार फिसल पट्टी पर है। निवेशक खुद अपनी पढ़ाई और ज्ञान के आधार पर बेहतर कंपनियों का चयन कर छोटी छोटी मात्रा में खरीद करें जिससे न उनकी लागत कम रहेगी बल्कि बाजार के बढ़ने पर उनको बेहतर शेयर खरीद पाने का मलाल भी नहीं होगा। ध्यान रखें कि दूसरों के ज्ञान से भरपूर पैसे नहीं कमाए जा सकते। यदि ऐसा होता तो ये तथाकथित विश्ेलषक अरबपति होते और उनके पास खजाने की चाबी बताने का समय नहीं होता। शेयर बाजार में आज भी कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जो बेहद बड़ी भूमिका निभाते हैं लेकिन अब तक न तो वे किसी टीवी पर आए, न अखबारों में उनका इंटरव्यू आया और न ही किसी वेबसाइट पर चमके। इनके पास काम से फुर्सत नहीं है लेकिन फुर्सतिया विश्लेषक अपना महान ज्ञान एक चार्ट सॉफ्टवेयर को सामने रखकर बांटने आ जाते हैं। मंदी में मंदी और तेजी में तेजी यानी भारतीय नेताओं की तरह आयाराम-गयाराम।
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घुघूती बासूती