सेबी को मीडिया की भूमिका की भी जांच करनी चाहिए
भारतीय शेयर बाजार में आई तीन हजार अंकों की गिरावट के पीछे क्या क्या कारण थे, इनकी जांच करने का जिम्मा सेबी निभाएगी। सेबी का मानना है कि ताजा गिरावट के पीछे कुछ न कुछ गड़बड़ी है। खबरों के मुताबिक सेबी ब्रोकरेज कंपनियों, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) और म्युचुअल फंड जैसी 25 फर्मों की जांच कर रहा है। शुरूआती जांच से मंदडि़यों के बीच साठगांठ के कम-से-कम तीन मामलों का पता चला है। इकानॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक मंदडि़या आपस में मिलकर कुछ शेयरों का बाजार तोड़ते हैं। यह काम वे या तो खुद उन शेयरों को शेयरों की लिवाली के लिए या फिर कंपनी के व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वियों के इशारे पर करते हैं। उल्लेखनीय है कि पांच नवंबर को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स 21004 अंक की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद से यह तीन हजार से अधिक अंक या 15 फीसदी नीचे आ गया है।
सेबी ने जो कदम उठाया है वह प्रशंसा के योग्य है। शेयर बाजार के दो प्रमुख प्लेयर तेजडि़यों और मंदडि़यों की जांच के अलावा एक और पक्ष मीडिया की भी जांच की जानी चाहिए। यह सही है कि बाजार में पिछले कुछ दिनों से काफी नकारात्मक खबरों की बाढ़ आ गई थी। महंगाई दर बढ़ने से लेकर टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की आंच ने बाजार को गिराया। अमरीका से लेकर यूरोप तक शेयर बाजारों के सुधरने से विदेशी निवेशकों ने अपना पैसा यहां से निकाला। लेकिन, भारत की विकास स्टोरी जारी रहने और आर्थिक महासत्ता की ओर बढ़ने का पक्का दावा होने के बावजूद बाजारों के साफ होने का भय जिसने खड़ा किया उस मीडिया एवं इक्विटी विश्लेषकों को इस जांच के दायरे में लेना चाहिए।
प्याज के दाम आसमान पहुंचे,आम आदमी को प्याज नहीं मिल रहा, जबकि सब्जियों और फलों के दाम भी उतनी ही तेजी से बढ़े थे। लेकिन इस पर हल्ला मचाने के बजाय केवल प्याज पर ऐसा हल्ला मचाया गया मानों भारत का एटम बम्ब चोरी होकर पाकिस्तान पहुंच गया हो। आज प्याज बुरी तरह टूट चुका है और किसान काफी निराश है तो इस पर किसी मीडिया हाउस ने मुंह तक नहीं खोला कि किसानों को कम से कम वाजिब भाव तो दो। महंगाई दर बढ़ी तो जमकर हल्ला मचाया। जब हम विकास कर रहे हैं और हमारी जीडीपी आठ फीसदी पार हो रही है,जीवन शैली बदल रही है, आय बढ़ रही है और खर्च बढ़ रहे हैं लेकिन उत्पादन मांग को पूरा नहीं कर सकता तो महंगाई बढ़नी ही है। क्या घोटोले अमरीका,यूरोप या अन्य देशों में नहीं होते, अमरीका में अकेले मेडाफ ने क्या किया। उसके घोटाले का साइज देखिए। टू जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में गड़बड़ हुई है और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। लेकिन जिस तरह इस घोटोले की आड़ में शेयर बाजार को तोड़ा गया, वह सही नहीं है। असल में मीडिया ने हर नेगेटिव खबर को एक हथौड़े की तरह चलाया और 24 घंटों की मार ने निवेशकों का मनोबल तोड़ दिया।
क्या मीडिया में बैठे सारे लोग वित्तीय विश्लेषण बेहतर तरीके से जानते हैं, सेबी को यह जानना चाहिए और इस संबंध में एक मार्गदर्शिका बनानी चाहिए। सेबी को एक परीक्षा लेकर सर्टीफाइड लेखक का प्रमाण पत्र देना चाहिए। अब यहां हल्ला मचेगा कि यह प्रेस की आजादी पर हल्ला है या अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन है। प्रेस की आजादी या अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं कि कुछ भी न्यूज में जाए। मनमानी चले और समाचारों को किसी भी ढंग से पेश किया जाए। आजादी के लिए अनुशासन जरुरी है। एक पंडित जी गाय का बछड़ा कंधे पर रखकर लेकर जा रहे थे। कुछ चालक लोगों ने उस बछड़े को हड़पने की सोची। वे लोग बीच बीच में पंडित जी से मिलते गए और कहते गए कि यह बकरा कहां से उठा लाए। पंडित हर बार कहते रहे कि यह गाय का बछड़ा है लेकिन जब उन्हें लगभग 50 लोगों ने टोक दिया कि यह बकरा है तो वे हार गए और उस बछड़े को नीचे गिराकर चल दिए। यही होता है कि खबरों की मार का असर।
जब शेयर बाजार टूट रहा था तो क्यों कई अखबारों, टीवी चैनलों और वेबसाइटों ने शेयरों की खरीद के कॉल दिए। इन अंर्तयामियों (इक्विटी विश्लेषक) को पता था कि निफ्टी 5400-5200-4800-4200 आ जाएगा तो खरीद के कॉल किसके कहने से दिए। देश के कौने कौने में बैठे निवेशकों ने इन विश्लेषकों को अपना भगवान मानते हुए शेयर खरीदे और हारते गए। जब इन अंर्तयामियों को पता था तो इन्होंने शेयर बेचने के कॉल क्यों नहीं दिए। कुछ पता नही होता इक्विटी विश्लेषकों को। केवल दो लाइन का डिसक्लेमर देने से अपने अपराध से बच जाते हैं ये विश्लेषक। मीडिया माध्यमों ने क्या देखा नहीं कि जब इनमें कॉल पीट रहे हैं तो दिए क्यों जा रहे हैं। क्या किसी का हित साधा जा रहा था। ज्यादातर ब्रोकरेज घरानों और विश्लेषकों ने जो नुकसान पहुंचाया है और मीडिया का उपयोग किया है, सेबी को इसकी भी जांच करनी चाहिए। रोका जाना चाहिए इस तरह के कॉल देने वालों को। बाजार के भाग्य विधाता बनने का प्रमाण पत्र किसने इन्हें सौंपा। सेबी इस मुगालते में न रहे कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा खंभा है। भारतीय संविधान में लोकतंत्र के तीन खंभों के बारे में ही कहा गया है: कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका। ऐसे में प्रेस किस आधार पर अपने को चौथा खंभा मानती है। सिद्ध करे कि देश के संविधान में प्रेस के बारे में इस तरह की बात कही गई है और देश के लिए संविधान से ऊपर कोई नहीं है। कल कोई भी उठकर अपने को देश का प्रधानमंत्री कह देगा तो लोग मान लेंगे क्या। सेबी को शेयर बाजार के तेजडि़यों और मंदडि़यों से पहले मीडिया की जांच करनी चाहिए कि तेजी मंदी में यह कैसे और कितनी भूमिका निभाता है।
सेबी ने जो कदम उठाया है वह प्रशंसा के योग्य है। शेयर बाजार के दो प्रमुख प्लेयर तेजडि़यों और मंदडि़यों की जांच के अलावा एक और पक्ष मीडिया की भी जांच की जानी चाहिए। यह सही है कि बाजार में पिछले कुछ दिनों से काफी नकारात्मक खबरों की बाढ़ आ गई थी। महंगाई दर बढ़ने से लेकर टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की आंच ने बाजार को गिराया। अमरीका से लेकर यूरोप तक शेयर बाजारों के सुधरने से विदेशी निवेशकों ने अपना पैसा यहां से निकाला। लेकिन, भारत की विकास स्टोरी जारी रहने और आर्थिक महासत्ता की ओर बढ़ने का पक्का दावा होने के बावजूद बाजारों के साफ होने का भय जिसने खड़ा किया उस मीडिया एवं इक्विटी विश्लेषकों को इस जांच के दायरे में लेना चाहिए।
प्याज के दाम आसमान पहुंचे,आम आदमी को प्याज नहीं मिल रहा, जबकि सब्जियों और फलों के दाम भी उतनी ही तेजी से बढ़े थे। लेकिन इस पर हल्ला मचाने के बजाय केवल प्याज पर ऐसा हल्ला मचाया गया मानों भारत का एटम बम्ब चोरी होकर पाकिस्तान पहुंच गया हो। आज प्याज बुरी तरह टूट चुका है और किसान काफी निराश है तो इस पर किसी मीडिया हाउस ने मुंह तक नहीं खोला कि किसानों को कम से कम वाजिब भाव तो दो। महंगाई दर बढ़ी तो जमकर हल्ला मचाया। जब हम विकास कर रहे हैं और हमारी जीडीपी आठ फीसदी पार हो रही है,जीवन शैली बदल रही है, आय बढ़ रही है और खर्च बढ़ रहे हैं लेकिन उत्पादन मांग को पूरा नहीं कर सकता तो महंगाई बढ़नी ही है। क्या घोटोले अमरीका,यूरोप या अन्य देशों में नहीं होते, अमरीका में अकेले मेडाफ ने क्या किया। उसके घोटाले का साइज देखिए। टू जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में गड़बड़ हुई है और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। लेकिन जिस तरह इस घोटोले की आड़ में शेयर बाजार को तोड़ा गया, वह सही नहीं है। असल में मीडिया ने हर नेगेटिव खबर को एक हथौड़े की तरह चलाया और 24 घंटों की मार ने निवेशकों का मनोबल तोड़ दिया।
क्या मीडिया में बैठे सारे लोग वित्तीय विश्लेषण बेहतर तरीके से जानते हैं, सेबी को यह जानना चाहिए और इस संबंध में एक मार्गदर्शिका बनानी चाहिए। सेबी को एक परीक्षा लेकर सर्टीफाइड लेखक का प्रमाण पत्र देना चाहिए। अब यहां हल्ला मचेगा कि यह प्रेस की आजादी पर हल्ला है या अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन है। प्रेस की आजादी या अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं कि कुछ भी न्यूज में जाए। मनमानी चले और समाचारों को किसी भी ढंग से पेश किया जाए। आजादी के लिए अनुशासन जरुरी है। एक पंडित जी गाय का बछड़ा कंधे पर रखकर लेकर जा रहे थे। कुछ चालक लोगों ने उस बछड़े को हड़पने की सोची। वे लोग बीच बीच में पंडित जी से मिलते गए और कहते गए कि यह बकरा कहां से उठा लाए। पंडित हर बार कहते रहे कि यह गाय का बछड़ा है लेकिन जब उन्हें लगभग 50 लोगों ने टोक दिया कि यह बकरा है तो वे हार गए और उस बछड़े को नीचे गिराकर चल दिए। यही होता है कि खबरों की मार का असर।
जब शेयर बाजार टूट रहा था तो क्यों कई अखबारों, टीवी चैनलों और वेबसाइटों ने शेयरों की खरीद के कॉल दिए। इन अंर्तयामियों (इक्विटी विश्लेषक) को पता था कि निफ्टी 5400-5200-4800-4200 आ जाएगा तो खरीद के कॉल किसके कहने से दिए। देश के कौने कौने में बैठे निवेशकों ने इन विश्लेषकों को अपना भगवान मानते हुए शेयर खरीदे और हारते गए। जब इन अंर्तयामियों को पता था तो इन्होंने शेयर बेचने के कॉल क्यों नहीं दिए। कुछ पता नही होता इक्विटी विश्लेषकों को। केवल दो लाइन का डिसक्लेमर देने से अपने अपराध से बच जाते हैं ये विश्लेषक। मीडिया माध्यमों ने क्या देखा नहीं कि जब इनमें कॉल पीट रहे हैं तो दिए क्यों जा रहे हैं। क्या किसी का हित साधा जा रहा था। ज्यादातर ब्रोकरेज घरानों और विश्लेषकों ने जो नुकसान पहुंचाया है और मीडिया का उपयोग किया है, सेबी को इसकी भी जांच करनी चाहिए। रोका जाना चाहिए इस तरह के कॉल देने वालों को। बाजार के भाग्य विधाता बनने का प्रमाण पत्र किसने इन्हें सौंपा। सेबी इस मुगालते में न रहे कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा खंभा है। भारतीय संविधान में लोकतंत्र के तीन खंभों के बारे में ही कहा गया है: कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका। ऐसे में प्रेस किस आधार पर अपने को चौथा खंभा मानती है। सिद्ध करे कि देश के संविधान में प्रेस के बारे में इस तरह की बात कही गई है और देश के लिए संविधान से ऊपर कोई नहीं है। कल कोई भी उठकर अपने को देश का प्रधानमंत्री कह देगा तो लोग मान लेंगे क्या। सेबी को शेयर बाजार के तेजडि़यों और मंदडि़यों से पहले मीडिया की जांच करनी चाहिए कि तेजी मंदी में यह कैसे और कितनी भूमिका निभाता है।
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