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धैर्यवान का साथ देगा शेयर बाजार

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भारत ही नहीं दुनिया भर के शेयर बाजार इस समय वैश्विक वित्तीय संकट की चपेट में हैं जिससे आम और खास दोनों तरह के निवेशक बुरी तरह मायूस हैं। शेयर बाजारों का और बुरा हाल होने की आंशका अभी भी बनी हुई है लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि बुरे दौर से गुजरने के बाद इस बाजार ने हमेशा बेहतर रिटर्न दिया है तभी तो दुनिया के सबसे बड़े निवेशक वारेन बफेट इस समय बेहतर अमरीकी कंपनियों में निवेश कर रहे हैं। असल में शेयर बाजार और लक्ष्‍मी ने हमेशा धैर्यवानों का साथ दिया है। न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे अपने लेख में वारेन बफेट ने कहा है कि अमरीका को खरीदो, मैं इसे खरीद रहा हूं। वित्तीय संकट के केंद्र में बैठे इस शक्तिशाली और धैर्यवान निवेशक का एक-एक शब्द निवेशकों के लिए पत्थर की लकीर जैसे होता है और इसका सकारात्मक असर दुनिया भर के बाजारों में पड़ सकता है। वे लिखते हैं कि 20 वीं सदी में अमरीका ने दो विश्वयुद्धों के साथ लंबे समय तक चला शीतयुद्ध और अनेक मंदियां देखी। हर बार लगा कि रिकवर कर पाना कठिन है बावजूद डॉव जोंस 11497 पर पहुंच गया। अमरीका, ताईवान सहित अनेक देशों ने अपने यहां शेयरों में शार्ट सेल पर रोक

सेंसेक्‍स का और टूटना बाकी

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दुनिया की सबसे बड़ी 14 खबर डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था ने घुटने टेक दिए हैं...यह बात है अमरीकी अर्थव्‍यवस्‍था की जो समूची दुनिया में अपने डॉलर का डंका बजवा रही थी लेकिन इसे अब एक बार फिर 1929-30 की महामंदी जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है। 700 अरब डॉलर की अमरीकी वित्तीय बचाव योजना भी मंदी के इस तूफान में ऊंट के मुंह में जीरा साबित होती नजर आ रही है। दुनिया भर के आर्थिक ज्ञानी तो यह मानते हैं कि 1930 के ग्रेस डिप्रेशन के बाद यह सबसे बड़ा वित्तीय झटका है। लिक्विडिटी इन्‍फयूजन से लेकर अधिग्रहण तक, जो कुछ भी संभव है किया जा रहा है। इससे वित्तीय बाजारों में कुछ स्थिरता की उम्‍मीद की जा सकती है लेकिन पहले जैसी गर्मी लौट पाएगी, यह कठिन लग रहा है। आईएमएफ के फर्स्ट डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर जॉन लिप्स्की का कहना है कि वित्तीय क्षेत्र में घट रही घटनाओं से आने वाले कुछ महीनों तक अनिश्चितता का माहौल बना रहेगा। वित्त क्षेत्र में बड़े संकट की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। रिलायंस कैपिटल के अध्यक्ष अनिल अंबानी ने पिछले दिनों कंपनी की सालाना आम बैठक में शेयरधारकों से कहा था कि अंतरराष्‍ट्रीय अर्थव्

शेयर बाजार ट्रेडिंग जोन में

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भारतीय शेयर बाजार इस समय पूरी तरह ट्रेडिंग जोन में है और निवेशकों को इस समय लंबी अवधि के निवेश के बजाय पूरी तरह एक कारोबारी की तरह लाभ उठाना चाहिए। लेकिन ज्‍यादातर निवेशक एक गलती करते हैं और वे वैल्‍यू स्‍टॉक पर दांव लगा बैठते हैं जो फंडामेंटल व टेक्निकल तौर पर बेहद मजबूत होते हैं लेकिन निवेशकों की शिकायत होती है कि उनके शेयर चल ही नहीं रहे। जबकि, बाजार जब पूरी तरह ट्रेडिंग जोन में हो तो निवेश ग्रोथ स्‍टॉक में करना चाहिए। अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में क्रूड के दाम 147 डॉलर से घटकर 116 डॉलर प्रति बैरल आ जाने से अर्थव्‍यवस्‍था पर सबसे घातक मार करने वाला कारक ठंडा होता नजर आ रहा है। लेकिन सरकार के समाने अभी भी बढ़ती महंगाई दर को काबू में करना, उच्‍च ब्‍याज दरों को फिर से कम करना और औद्योगिक उत्‍पादन बढ़ाना मुख्‍य चुनौतियां हैं। हालांकि, अब आम चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीकी आ रहा है सरकार की प्राथमिकताओं में भी ये ही बातें आ गई हैं ताकि चुनावी समर में फतह हासिल की जा सके। ऊंची ब्‍याज दर की वजह से कर्ज की मांग में आने वाली कमी और अंतरराष्‍ट्रीय कमोडिटी बाजारों में आई नरमी से आने वाले दिनों में मह

शेयर बाजार को जरुरत वोट ऑफ कान्फिडेंस की

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भारतीय संसद और शेयर बाजार को इस सप्‍ताह वोट ऑफ कान्फिडेंस की जरुरत है। दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार 22 जुलाई को संसद में विश्‍वास मत हासिल कर पाती है या नहीं, पर खिलाडि़यों की नजरें इसी पर टिकी हैं और यही से शेयर बाजार की दिशा तय होगी। हालांकि यहां एक बात अहम है कि संसद चुनावों से पहले शेयर बाजार ने निवेशकों को पोजिटिव रिटर्न दिया है। संसद में सरकार विश्‍वास मत हासिल करें या नहीं लेकिन यह तो तय है कि देश आम चुनाव की ओर अब धीरे धीरे बढ़ रहा है। संसद चुनावों से पहले के शेयर बाजार इतिहास पर नजर डालें तो इसने केवल 1989 के चुनाव को छोड़कर पिछले पांच आम चुनाव से पहले पोजिटिव रिटर्न दिया है। वर्ष 1991 से 2004 के दौरान कुल पांच बार आम चुनाव हुए। इन चुनावों से पहले तीन, छह और नौ महीनों के दौरान शेयर बाजार ने निवेशकों को खुश किया है। चुनाव से पहले के छह महीनों में जहां बाजार ने 11.03 फीसदी का रिटर्न दिया है, वहीं नौ महीने की अवधि में यह रिटर्न 19.70 फीसदी रहा है। चुनाव से तीन महीने पहले की समयावधि में यह रिटर्न औसतन 2.62 फीसदी देखने को मिला है। वर्ष 1999 में हुए आम चुनाव से पहले

शेयर बाजार के लिए नेगेटिव खबरों का अंबार

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महंगाई दर 11.62 फीसदी के साथ 13 साल के उच्‍च शिखर पर, क्रूड 145 डॉलर प्रति बैरल पार और अब 170 डॉलर की ओर बढ़ने की तैयारी, भारत-अमरीका परमाणु करार पर यूपीए सरकार का भविष्‍य खतरे में, भारतीय रुपया डॉलर की तुलना में तेजी से कमजोर, विदेशी संस्‍थागत निवेशकों की लगातार बिकवाली जैसी नकारात्‍मक खबरें शेयर बाजार का पीछा नहीं छोड़ रही हैं। शेयर बाजार के लिए निकट भविष्‍य में कोई बड़ा सकारात्‍मक कारक उभरकर सामने आने की संभावना कम है। सब प्राइम के बाद अभी भी दुनिया के अनेक बैंकरों और निवेश फंडों के मुश्किल से उबरने में असमर्थ होने की खबरें बाजार के लिए अच्‍छी नहीं हैं। अमरीका के बाद यूरोप की बैंकों को 141 अरब डॉलर जुटाने की जरुरत, कमोडिटी के बढ़ते विश्‍व व्‍यापी भाव इस मंदी को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। घरेलू मोर्चे पर सरकार अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने के अनेक प्रयास कर रही है ताकि अगले वर्ष होने वाले आम चुनावों में जीत हासिल की जा सके लेकिन क्रूड के बढ़ते दाम और चढ़ती महंगाई दर ने सरकार के हर प्रयास को विफल कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक को इस बीच, रेपो रेट और सीआरआर में जो बढ़ोतरी करनी पड़ी है