हिज मास्‍टर वॉयस यानी चाबी वाला बाजा


ग्रामोफोन आज बीते जमाने की बात हो गई है क्‍योंकि अब संगीत सुनने के साधन इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि बहुत कम लोगों को ही इसके बीते महत्‍व के बारे में पता है। एक जमाना था जब संगीत सुनने के लिए ग्रामोफोन के अलावा कोई दूसरा सशक्‍त माध्‍यम नहीं था। उन दिनों रेडियो पर गीत जरुर प्रसारित होते थे लेकिन संगीत का पर्याप्‍त आनंद लेने के लिए घर में ग्रामोफोन होना जरुरी माना जाता था। आज से लगभग 130 वर्ष पूर्व एडीसन ने ऐसी मशीन का आविष्‍कार किया था जिससे रिकॉर्ड की गई आवाज सुनी जा सकती थी और इस मशीन का नाम फोनोग्राफ रखा गया। उस समय थियेटरों में फोनोग्राफ खास शो में रखा जाता था। एडीसन स्‍वयं भी थियेटरों में हाजिर रहते थे और लोग फोनोग्राफ सुनने के लिए बैठे रहते।

इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए एमिल बर्लीनर ने वर्ष 1888 में ग्रामोफोन बाजार में जारी किया। एक ही वर्ष बाद इंग्‍लैंड में ग्रामोफोन कंपनी की स्‍थापना हुई। शुरूआत में इस कंपनी के ट्रेडमार्क में एक देवदूत को लिखते हुए बताया गया। कुछ समय बाद ही इसे बदल दिया गया और ग्रामोफोन के लाउडस्‍पीकर के समक्ष बैठे कुत्‍ते का प्रतीक रखा गया। स्‍वयं के मालिक की आवाज सुनता यह कुत्‍ता हिज मास्‍टर वॉयस के नाम से विश्‍व विख्‍यात हो गया। इस ग्रामोफोन की एक विशेषता थी कि हरेक रिकॉर्ड को चलाते समय हैंडल घुमाकर चाबी भरनी पड़ती थी एंव स्टायलस में पिन बदलनी पड़ती। पिनों से एक्‍सट्रा लाउड प्राप्‍त होती थी जो उस युग में स्टिरियो के सबसे नजदीक था। इस ग्रामोफोन को चाबी वाला बाजा या पाली वाला बाजा कहा जाता था। ग्रामोफोन के लिए कितनी सावधानी रखनी पड़ती थी इस संबंध में भी आज शायद ही कोई अंदाज लगा सकेगा। प्रयुक्‍त की गई पिन एक विशेष खाने में एकत्र की जाती थीं। रिकॉर्डों को रखने के लिए विशेष बॉक्‍स बनाया जाता था जिसमें रिकॉर्डस खड़े रखे जाते थे।

भारत में सर्वप्रथम ग्रामोफोन कंपनी की शाखा कोलकाता में वर्ष 1901 में खुली। उस समय प्रत्‍येक ग्रामोफोन की खरीद पर पांच रिकॉर्डस मुफ्त मिलते थे। प्रारंभ में रिकार्ड एक ही तरफ से बज सकते थे, दूसरी तरफ ये खाली होते थे। यह रिकार्ड साढ़े तीन मिनट चलता एवं इसकी गति प्रति मिनट 78 चक्‍कर होती थी, अत: इसका नाम 78 आर पी एम पड़ा। तत्‍पश्‍चात अनेक नई कंपनियां इस क्षेत्र में आने लगीं। कोलंबिया, ओडियन, यंग इंडिया के रिकार्डस बाजार में जारी करने के लिए वी शांताराम ने बंबई में नेशनल ग्रामोफोन कंपनी खोली। इन रिकार्डों के विषय भी विविध होते। गीत, भजन से लेकर रविन्‍द्रनाथ टैगोर की कविता पाठ तक। यंग इंडिया कंपनी के रिकार्ड पर तिरंगे झंडे का प्रतीक होता एवं स्‍वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले नेताओं के भाषणों के रिकार्डस इस कंपनी की विशेषता होती थी।

इस युग में संगीत प्रेमियों के शौक भी जरा अलग प्रकार के होते थे। नाटकों के संवाद, लोकगीत एवं हास्‍य प्रधान कार्यक्रमों के रिकार्डस बाजार में काफी बिकते थे। ग्रामोफोन कंपनी सबसे बड़ी मानी जाती थी। इस कंपनी ने सचिन देब बर्मन और कुंदनलाल सहगल को गायक के रुप में अस्‍वीकार कर दिया था। आगे जाकर इस रिकार्ड कंपनी ने अपनी भूल महसूस की। फिल्‍मी गीत जब प्रचलन में नहीं थे तब रिकार्डिंग करते समय गायकों को ऊंची आवाज में गाना पड़ता था। उस समय धीमी आवाज पकड़ पाने वाले साधनों का अभाव था।

वर्ष 1902 में पहली हिंदुस्‍तानी कलाकार का रिकार्ड आया। इस गायिका का नाम था शशि मुखी देवी। वर्ष 1904 में दोनों तरफ गीत वाले रिकार्ड बाजार में आए। तब सम्‍भ्रांत घरों की स्त्रियां परदे में रहती थीं अत: बेहतर गायन के बावजूद रिकार्ड नहीं आ सकते थे। सी आर दास की बहिन अमला दास ने इस प्रथा को तोड़ा एवं वर्ष 1912 में अमला दास का गीत रिकार्ड हुआ। प्रारंभ में रिकार्ड पर कलाकार का नाम नहीं लिखा जाता था। गीत पूरा होने पर कलाकार अपना नाम बोलता था। कवि रविन्‍द्रनाथ टैगोर ने वंदेमातरम् एवं सोनार तोरी का गायन एच बोज कंपनी की रिकार्ड के लिए किया था। वर्ष 1925 में पहली बार कवि एवं संगीतकार के नाम रिकार्ड पर लिखे गए। वर्ष 1934 में पहले फिल्‍मी गीत की रिकार्डिंग वी शांताराम ने की। उन दिनों विशेष त्‍योहारों पर नए रिकॉर्ड जारी किए जाते थे। ग्रामोफोन मनोरंजन का मुख्‍य साधन होने के नाते विशेष महत्‍व था। सभी कंपनियों में बेहतर ग्रामोफोन बनाने की स्‍पर्धा थी। इसके बाद लोंग प्‍ले आई। आज भी अनेक लोग पुराने रिकार्डस एकत्र करने का शौक रखते हैं, जिनमें कोलकातावासी ही आगे हैं।

टिप्पणियाँ

रवि रतलामी ने कहा…
मुझे लगा था कि एचएमवी में इनवेस्ट करने हेतु कुछ सुझाब दे रहे हैं... :)

बढ़िया जानकारी दी आपने.
मसिजीवी ने कहा…
अच्‍छी जानकारी
उन्मुक्त ने कहा…
बचपन में एक सवाल पूछा करते थे कि ग्रामाफोन के सामने कुत्ता बैठा है कि कुतिया? शायद यह अब भी पूछा जा सकता है।

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