शेयर बाजार में गिरावट का खेल दस अक्टूबर के बाद
अमरीकी अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए फैडरल रिजर्व के ब्याज दरों में अपेक्षित चौथाई फीसदी के बजाय आधा प्रतिशत कटौती कर दुनिया भर के शेयर बाजारों को तगड़ी ऊंचाई की ओर बढ़ा दिया है। डॉव जोंस भी वर्ष 2002 के बाद कल पहली बार एक ही दिन में 336 अंक उछला। भारतीय शेयर बाजार बीएसई ने अपनी पिछली ऊंचाई 15869 को पीछे छोड़ते हुए 16 हजार अंक को पार किया और इस समय यह 16261 अंक चल रहा है। इस समय तक सेंसेक्स में 591 अंक का जोरदार इजाफा। निवेशक झूम रहे हैं कि सेंसेक्स दौड़ गया लेकिन मिड कैप और स्मॉल कैप की कितनी कंपनियों के शेयरों में उछाल आया है।
आज की दौड़ का आम निवेशक को जो मझौली और छोटी कंपिनयों में पैसा लगाता है कोई फायदा नहीं हुआ। कौनसे शेयर दौड़ रहे हैं, जरा यह सोचिए। क्या आज आपको शेयर बाजार से सेंसेक्स की तुलना में बड़ा फायदा हुआ है। अधिकतर निवेशकों का इस पर नकारात्मक जवाब है। जब आम निवेशक को लाभ नहीं हुआ है तो मौजूदा तेजी किसके हित में। विदेशी संस्थागत निवेशक, घरेलू बड़े संस्थागत निवेशक और म्युच्यूअल फंड इस मलाई के भागीदार बने हैं। इस समय सभी जगह यह बात आ रही है कि अमरीकी कदम से शेयर बाजारों को खूब लाभ होगा और तेजी जारी रहेगी। आम निवेशक को पैसा निवेश करना चाहिए। लेकिन आम निवेशक तो मझौली व छोटी कंपनियों में पैसा लगाता है और जब ये शेयर बढ़ते नहीं तो उसे क्या फायदा। हां, खूबसूरत पिक्चर खड़ी कर छोटे निवेशकों की जेब से पैसा निकालने के लिए जमकर राय देना संस्थागत निवेशकों के लिए कारोबार करने वाले विश्लेषकों के लिए जरुर मुनाफे का सौदा है। ये ही विश्लेषक चंद दिनों पहले कह रहे थे कि शेयर बाजार का बंटाढार हो जाएगा।
केवल अमरीका ने ब्याज दरों में कटौती की और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था सुधर गई। ऐसा कोई जादूई कदम हर देश क्यों नहीं उठा लेता ताकि सभी जगह खुशहाली दिखाई दे। अमरीका ने ब्याज दरों में जो कटौती की है, उसके परिणाम तत्काल दिखाई नहीं देंगे और अर्थव्यवस्था में सुधार भी नहीं होगा। सबप्राइम का मामला केवल इस कदम से ठीक हो सकता है तो पहले यह कदम क्यों नहीं उठा लिया गया। हम आम निवेशक को कहना चाहेंगे कि मृग मरीचिका में न फंसे और अपने विवेका का उपयोग कर ही नया निवेश करें। अमरीका में भी अर्थव्यवस्था की समीक्षा इस साल के अंत में होगी तभी यह पता चल पाएगा कि ब्याज दर में जो कमी की गई है क्या वाकई वह लाभकारी रही। ऐसा न हो कि साल के आखिर में अमरीकी अर्थव्यवस्था में कमजोरी बढ़ जाए। अमरीका पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से उबरने का हर संभव प्रयास कर रहा है लेकिन वह मंदी के दलदल में फंसता ही जा रहा है।
अब बात करते हैं भारतीय शेयर बाजार की : क्रूड तेल इस समय तकरीबन 81 डॉलर प्रति बैरल बिक रहा है जो काफी ऊंचा भाव कहा जा सकता है। क्रूड के दाम इसी तरह ऊंचाई पर जमे रहे तो देश में पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ना तय है और यह बढ़त इतनी ज्यादा होगी कि आम आदमी पर भारी पड़ेगी। पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ने की मार चौतरफा पड़ेगी। भारत व अमरीका परमाणु करार पर वामपंथी फिर से हलचल में आ गए हैं। इस करार पर समिति बनने के बाद लग रहा था कि राजनीतिक स्थिरता आ जाएगी। लेकिन माकपा महासचिव प्रकाश कारत का कहना है कि इस करार को छह महीने के लिए स्थगित करो अन्यथा राजनीतिक संकट के लिए तैयार रहो। इस तरह के आने वाले बयान मार्केट के मूड को बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है। अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि जो एक जमाने में भाजपा के दोस्त थे रामसेतु पर यूपीए में जूतमपैजार करने जा रहे हैं। कांग्रेस अलग राप अलपा रही है और डीएमके अलग। भारत अमरीका परमाणु करार ओर राम सेतु के मूद्दे मौजूदा केंद्र सरकार के लिए कष्टकारी रहेंगे ओर हो सकता है कि कांग्रेस को मध्यावधि चुनाव के लिए मन बनाना पड़े।
दस अक्टूबर के बाद भारतीय कार्पोरेट जगत के दूसरी तिमाही के नतीजे आने शुरू हो जाएंगे। नतीजों के उस मौसम में आईटी कंपनियों से बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती। आईटी के साथ कुछ और सेक्टर की कंपनियों के नतीजे भी अच्छे नहीं आएंगे, जो शेयर बाजार के मूड को बिगाड़ेंगे। इन सभी कारणों से बीएसई सेंसेक्स दस अक्टूबर के बाद एक हजार से बारह सौ अंक लुढ़क जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। हालांकि, जो निवेशक लंबा खेल खेलना चाहते हैं उन्हें चिंतित होने की जरुरत नहीं है। यह गिरावट इंट्रा डे कारोबार करने वालों के माथे पर चिंता की लकीर खींचेगी।
आज की दौड़ का आम निवेशक को जो मझौली और छोटी कंपिनयों में पैसा लगाता है कोई फायदा नहीं हुआ। कौनसे शेयर दौड़ रहे हैं, जरा यह सोचिए। क्या आज आपको शेयर बाजार से सेंसेक्स की तुलना में बड़ा फायदा हुआ है। अधिकतर निवेशकों का इस पर नकारात्मक जवाब है। जब आम निवेशक को लाभ नहीं हुआ है तो मौजूदा तेजी किसके हित में। विदेशी संस्थागत निवेशक, घरेलू बड़े संस्थागत निवेशक और म्युच्यूअल फंड इस मलाई के भागीदार बने हैं। इस समय सभी जगह यह बात आ रही है कि अमरीकी कदम से शेयर बाजारों को खूब लाभ होगा और तेजी जारी रहेगी। आम निवेशक को पैसा निवेश करना चाहिए। लेकिन आम निवेशक तो मझौली व छोटी कंपनियों में पैसा लगाता है और जब ये शेयर बढ़ते नहीं तो उसे क्या फायदा। हां, खूबसूरत पिक्चर खड़ी कर छोटे निवेशकों की जेब से पैसा निकालने के लिए जमकर राय देना संस्थागत निवेशकों के लिए कारोबार करने वाले विश्लेषकों के लिए जरुर मुनाफे का सौदा है। ये ही विश्लेषक चंद दिनों पहले कह रहे थे कि शेयर बाजार का बंटाढार हो जाएगा।
केवल अमरीका ने ब्याज दरों में कटौती की और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था सुधर गई। ऐसा कोई जादूई कदम हर देश क्यों नहीं उठा लेता ताकि सभी जगह खुशहाली दिखाई दे। अमरीका ने ब्याज दरों में जो कटौती की है, उसके परिणाम तत्काल दिखाई नहीं देंगे और अर्थव्यवस्था में सुधार भी नहीं होगा। सबप्राइम का मामला केवल इस कदम से ठीक हो सकता है तो पहले यह कदम क्यों नहीं उठा लिया गया। हम आम निवेशक को कहना चाहेंगे कि मृग मरीचिका में न फंसे और अपने विवेका का उपयोग कर ही नया निवेश करें। अमरीका में भी अर्थव्यवस्था की समीक्षा इस साल के अंत में होगी तभी यह पता चल पाएगा कि ब्याज दर में जो कमी की गई है क्या वाकई वह लाभकारी रही। ऐसा न हो कि साल के आखिर में अमरीकी अर्थव्यवस्था में कमजोरी बढ़ जाए। अमरीका पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से उबरने का हर संभव प्रयास कर रहा है लेकिन वह मंदी के दलदल में फंसता ही जा रहा है।
अब बात करते हैं भारतीय शेयर बाजार की : क्रूड तेल इस समय तकरीबन 81 डॉलर प्रति बैरल बिक रहा है जो काफी ऊंचा भाव कहा जा सकता है। क्रूड के दाम इसी तरह ऊंचाई पर जमे रहे तो देश में पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ना तय है और यह बढ़त इतनी ज्यादा होगी कि आम आदमी पर भारी पड़ेगी। पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ने की मार चौतरफा पड़ेगी। भारत व अमरीका परमाणु करार पर वामपंथी फिर से हलचल में आ गए हैं। इस करार पर समिति बनने के बाद लग रहा था कि राजनीतिक स्थिरता आ जाएगी। लेकिन माकपा महासचिव प्रकाश कारत का कहना है कि इस करार को छह महीने के लिए स्थगित करो अन्यथा राजनीतिक संकट के लिए तैयार रहो। इस तरह के आने वाले बयान मार्केट के मूड को बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है। अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि जो एक जमाने में भाजपा के दोस्त थे रामसेतु पर यूपीए में जूतमपैजार करने जा रहे हैं। कांग्रेस अलग राप अलपा रही है और डीएमके अलग। भारत अमरीका परमाणु करार ओर राम सेतु के मूद्दे मौजूदा केंद्र सरकार के लिए कष्टकारी रहेंगे ओर हो सकता है कि कांग्रेस को मध्यावधि चुनाव के लिए मन बनाना पड़े।
दस अक्टूबर के बाद भारतीय कार्पोरेट जगत के दूसरी तिमाही के नतीजे आने शुरू हो जाएंगे। नतीजों के उस मौसम में आईटी कंपनियों से बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती। आईटी के साथ कुछ और सेक्टर की कंपनियों के नतीजे भी अच्छे नहीं आएंगे, जो शेयर बाजार के मूड को बिगाड़ेंगे। इन सभी कारणों से बीएसई सेंसेक्स दस अक्टूबर के बाद एक हजार से बारह सौ अंक लुढ़क जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। हालांकि, जो निवेशक लंबा खेल खेलना चाहते हैं उन्हें चिंतित होने की जरुरत नहीं है। यह गिरावट इंट्रा डे कारोबार करने वालों के माथे पर चिंता की लकीर खींचेगी।
टिप्पणियाँ
मुझे लगता है कि अगले 1-2 माह में जब एक बार फिर फेडरल रिज़र्व बैंक ब्याज दरो में कटौती करेगा तो बाज़ार को औधे मुह गिरा दिया जायेगा... और यह फिजुल का तर्क दिया जायेगा कि इतने कम समय मे दरो में कटौती होने का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी नही है और " कुछ" मुनाफा वसूली कर लेना ही बेहतर होगा....
और जहां तक अपनी घरेलू राजनैतिक स्थिति का सवाल है वो तो माशा अल्लाह है ही... कभी मन्दड़िये तो कभी तेजड़िये कभी दोनो ही किसी को भी जैसे योगेन्द्र यादव, विनोद मेहता या एन राम को कभी भी अपने फायदे के वक्तव्य देने के लिये " मना" सकते हैं....
b
एकदम खरी बात है. थोड़ा और अच्छा होता कि अपन इसमें आंकड़े देते हुए यह साबित कर देते कि छोटी और मंझोली कंपनियों की दशा क्या चल रही है फिलहाल.
फिर भी आपकी पैनी नज़र ने जो देखा है वही प्रत्येक शब्द में परिलक्षित हो रहा है.
Sensex is touching 17000, whats your view on this