शेयर बाजार में नरमी के संकेत, बांध लेना मुनाफा गांठ में
निवेश गुरु जिम रोजर्स पर भरोसा करें तो अमरीकी फैडरल रिजर्व बैंक द्धारा की गई ब्याज दर कटौती गंभीर गलत कदम है और इससे अमरीका में मुद्रास्फीति बढ़ेगी। अमरीकी डॉलर का दुनिया भर में बज रहा बैंड और बजेगा। कमोडिटी के बढ़ते दाम और डॉलर की ठुकाई अमरीका में मंदी को बढ़ावा देगी। जिम रोजर्स सोने और कृषि कमोडिटी में तेजी की बात कह रहे हैं। वे कहते हैं कि चीनी मुझे अच्छी लग रही है और यह मौजूदा स्तर से बढ़ेगी। भारतीय चीनी के संबंध में यहां पढ़े....चीनी स्टॉक्स में किया निवेश तो खाएंगे धोखा....भविष्य कृषि कमोडिटी का है। हालांकि, वे चीन को छोड़कर अन्य उभरते बाजारों में तेजी नहीं देखते।
वाह मनी ने 19 सितंबर को कहा था कि....केवल अमरीका ने ब्याज दरों में कटौती की और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था सुधर गई। ऐसा कोई जादूई कदम हर देश क्यों नहीं उठा लेता ताकि सभी जगह खुशहाली दिखाई दे। अमरीका ने ब्याज दरों में जो कटौती की है, उसके परिणाम तत्काल दिखाई नहीं देंगे और अर्थव्यवस्था में सुधार भी नहीं होगा। सबप्राइम का मामला केवल इस कदम से ठीक हो सकता है तो पहले यह कदम क्यों नहीं उठा लिया गया। हम आम निवेशक को कहना चाहेंगे कि मृग मरीचिका में न फंसे और अपने विवेका का उपयोग कर ही नया निवेश करें। अमरीका में भी अर्थव्यवस्था की समीक्षा इस साल के अंत में होगी तभी यह पता चल पाएगा कि ब्याज दर में जो कमी की गई है क्या वाकई वह लाभकारी रही। ऐसा न हो कि साल के आखिर में अमरीकी अर्थव्यवस्था में कमजोरी बढ़ जाए। अमरीका पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से उबरने का हर संभव प्रयास कर रहा है लेकिन वह मंदी के दलदल में फंसता ही जा रहा है। पूरी रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें....शेयर बाजार में गिरावट का खेल दस अक्टूबर के बाद....।
हमेशा यह ध्यान रखें कि बाजार कहीं भागकर नहीं जा रहा और कंपनियां तो बनती बिगड़ती रहती है। यदि आप रिलायंस चूक गए तो कोई बात नहीं...क्योंकि रिलायंस को आज तक सफर तय करने में कई साल लगे हैं। ठीक ऐसी ही दूसरी कंपनी की तलाश किजिए और देखिए वह भी इतने साल बाद रिलायंस बनती है या नहीं। एल एंड टी छूट गई तो क्या...पकडि़ए दूसरी इंजीनियरिंग कंपनी जो बरसों बाद दूसरी एल एंड टी होगी। असली निवेशक वही है जो भारत की दूसरी बड़ी भावी कंपनियों में आज कम निवेश करता है और हो जाता है करोड़पति कुछ साल बाद। वर्ष 1980 में विप्रो के सौ रुपए वाले सौ शेयर को आपने खरीदा होता तो आज आपके पास दो सौ करोड़ रुपए हो सकते थे। वर्ष 1992 में इंफोसिस के शेयर में दस हजार रुपए का निवेश किया होता तो आपके पास आज डेढ़ करोड़ रुपए हो सकते थे। इसी तरह 1980 में रेनबैक्सी में एक हजार रुपए का निवेश किया होता तो आपके पास आज तकरीबन दो करोड़ रूपए होते। पुरानी बातें छोड़ भी दें तो अगर आपने 2004 की गिरावट में यूनिटेक में 40 हजार रुपए का निवेश किया होता तो आज आपके पास एक करोड़ दस लाख रुपए हो सकते थे। इंतजार करने वाले निवेशकों ही यहां फायदा होता है, भले ही सेंसेक्स कुछ भी हो। जिस तरह एक बच्चे को पूरी तरह क्षमतावान होने में समय लगता है वही इन कंपनियों के साथ होता है। इसलिए उन कंपनियों की तलाश कीजिए जो कल के युवा होंगे।
वाह मनी ने 19 सितंबर को कहा था कि....केवल अमरीका ने ब्याज दरों में कटौती की और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था सुधर गई। ऐसा कोई जादूई कदम हर देश क्यों नहीं उठा लेता ताकि सभी जगह खुशहाली दिखाई दे। अमरीका ने ब्याज दरों में जो कटौती की है, उसके परिणाम तत्काल दिखाई नहीं देंगे और अर्थव्यवस्था में सुधार भी नहीं होगा। सबप्राइम का मामला केवल इस कदम से ठीक हो सकता है तो पहले यह कदम क्यों नहीं उठा लिया गया। हम आम निवेशक को कहना चाहेंगे कि मृग मरीचिका में न फंसे और अपने विवेका का उपयोग कर ही नया निवेश करें। अमरीका में भी अर्थव्यवस्था की समीक्षा इस साल के अंत में होगी तभी यह पता चल पाएगा कि ब्याज दर में जो कमी की गई है क्या वाकई वह लाभकारी रही। ऐसा न हो कि साल के आखिर में अमरीकी अर्थव्यवस्था में कमजोरी बढ़ जाए। अमरीका पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से उबरने का हर संभव प्रयास कर रहा है लेकिन वह मंदी के दलदल में फंसता ही जा रहा है। पूरी रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें....शेयर बाजार में गिरावट का खेल दस अक्टूबर के बाद....।
हमेशा यह ध्यान रखें कि बाजार कहीं भागकर नहीं जा रहा और कंपनियां तो बनती बिगड़ती रहती है। यदि आप रिलायंस चूक गए तो कोई बात नहीं...क्योंकि रिलायंस को आज तक सफर तय करने में कई साल लगे हैं। ठीक ऐसी ही दूसरी कंपनी की तलाश किजिए और देखिए वह भी इतने साल बाद रिलायंस बनती है या नहीं। एल एंड टी छूट गई तो क्या...पकडि़ए दूसरी इंजीनियरिंग कंपनी जो बरसों बाद दूसरी एल एंड टी होगी। असली निवेशक वही है जो भारत की दूसरी बड़ी भावी कंपनियों में आज कम निवेश करता है और हो जाता है करोड़पति कुछ साल बाद। वर्ष 1980 में विप्रो के सौ रुपए वाले सौ शेयर को आपने खरीदा होता तो आज आपके पास दो सौ करोड़ रुपए हो सकते थे। वर्ष 1992 में इंफोसिस के शेयर में दस हजार रुपए का निवेश किया होता तो आपके पास आज डेढ़ करोड़ रुपए हो सकते थे। इसी तरह 1980 में रेनबैक्सी में एक हजार रुपए का निवेश किया होता तो आपके पास आज तकरीबन दो करोड़ रूपए होते। पुरानी बातें छोड़ भी दें तो अगर आपने 2004 की गिरावट में यूनिटेक में 40 हजार रुपए का निवेश किया होता तो आज आपके पास एक करोड़ दस लाख रुपए हो सकते थे। इंतजार करने वाले निवेशकों ही यहां फायदा होता है, भले ही सेंसेक्स कुछ भी हो। जिस तरह एक बच्चे को पूरी तरह क्षमतावान होने में समय लगता है वही इन कंपनियों के साथ होता है। इसलिए उन कंपनियों की तलाश कीजिए जो कल के युवा होंगे।
टिप्पणियाँ
कैसे ??????? समझा सकते है ??????
एक बात अजीब लगी कि आपने इस टिप्पणी के तीसरे पैरे में वही बाते दोहरा दी हैं जो आप अपने 20 सितंबर की टिप्पणी शेयर बाजार कहीं भागा नहीं जा रहा है, में पहले ही लिख चुके हैं।
चीनी उद्योग पर आपकी राय दुरूस्त लगी। कृषि मंत्री शरद पवार ने नई दिल्ली में फिक्की के जिस कार्यक्रम में चीनी उद्योग के लिये राहत की बात की थी उसमें एक और पेंच था जिस पर विश्लेषकों का ध्यान शायद नहीं गया है। उन्होंने कहा कि कर रियायतें उन्हीं कंपनियों को मिलेगी जिन पर किसानों का बकाया ना हो। बकायेदार कंपनियां राहत से महरूम रहेंगीं।
अब शायद ही ऐसी कंपनी हो जिसने किसानों का पूरा पैसा चुका दिया हो। यह अलग बात है कि इन खबरों ने इंट्रा डे ट्रेडिग करने वाले कारोबारियों को मालामाल जरूर कर दिया है। लेकिन आपकी बात 100 फीसद सही है कि चीनी उद्ययोग के लिये फंडामेंटल्स अच्छे नहीं हैं।