शेयर बाजार फिर दौड़ेगा
सेबी ने पार्टिसिपेटरी नोट पर अपने दिशा निर्देशों का मसौदा सामने रखा और भारतीय शेयर बाजार आज औंधे मुंह गिरा। वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने भी शेयर बाजार में आई तगड़ी गिरावट के बाद ज्योंहि बयान दिया, शेयर बाजार सुधार की ओर मुड़ा। शेयर बाजार में आई भयानक गिरावट पर वित्त मंत्री का कहना है कि वे पार्टिसिपेटरी नोट को प्रतिबंधित करने के पक्ष में नहीं है और दिन चढने के साथ शेयर बाजार में फैली यह घबराहट दूर हो जाएगी। इस समय बीएसई सेंसेक्स तकरीबन 750 अंक नीचे है, हालांकि निवेशकों को बहुत सावधान रहने की जरुरत है। फिर भी हम निवेशकों से कहना चाहेंगे कि वे बुनियादी तौर पर मजबूत कंपनियों के शेयर कतई नहीं बेचें बल्कि कम भावों पर ऐसी कंपनियों के शेयर खरीदें जरुर। यदि आज आपने गौर किया है तो कई बेहतर कंपनियों के शेयर काफी घट गए थे लेकिन अब वापस वे कल के स्तर के आसपास दिख रही हैं यानी समझदारों ने इनमें खरीद का मौका देखा।
पी नोट का यह है झंझट पुराना
सेबी और रिजर्व बैंक ने इस बात पर जोर दिया है कि पी नोट्स के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने की आवश्यकता है। हालांकि, पार्टिसिपेटरी नोट को रोकने के लिए यह पहली बार कुछ नहीं कहा गया है। जब भी पार्टिसिपेटरी नोट पर अंकुश लगाने की बात होती है, शेयर बाजार में घबराहट भरी गिरावट आती है। स्थिति को आप भी देखिए कि पार्टिसिपेटरी नोट का कुल अनुमानित मूल्य मार्च 2004 के 31875 करोड़ रूपए से बढ़कर अगस्त 2007 में 353484 करोड़ रूपए पहुंच गया। यही वजह है रिजर्व बैंक इस मामले पर सेबी को जगाता रहा है जिसकी वजह से सेबी ने कुछ कदम उठाने की बात कही। सेबी विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश को लेकर चिंतित है। वह इन पर अब पूरा अंकुश चाहती है। इस कदम को उठाने की पहल इसलिए की गई है कि अचानक से ऐसा बड़ा निवेश न आए जिसकी उम्मीद न की गई हो और फिर एकदम से वह पैसा बाहर निकल जाए जिससे बाजार को तगड़ा झटका लगे।
सब कुछ नहीं मिटेगा
निवेशक घबराएं नहीं क्योंकि सब कुछ मिटने नहीं जा रहा है। बुनियादी रुप से मजबूत कंपनियों के शेयर मजबूत रहेंगे। हां जिन में जमकर सट्टा चल रहा था या कमजोर कंपनियां जो गलत ढंग से दौड़ रही थी में काफी नुकसान होगा। सेबी ने पार्टिसिपेटरी नोट पर अभी कोई आदेश जारी नहीं किया है या कोई अंतिम सिफारिश नहीं दी है। सेबी ने केवल डिस्क्शन पेपर जारी किया है लेकिन इसकी भाषा से लगता है कि सेबी पार्टिसिपेटरी नोट को नियंत्रित करना चाहती है। इस चर्चा पर राय भेजने का समय केवल 20 अक्टूबर तक का है। यानी चार दिन में सब कुछ करना है।
क्या है पी नोट
पार्टिसिपेटरी नोट किसी विदेशी संस्थागत निवेशक और उसके विदेशी ग्राहक के बीच होने वाला समझौता पार्टिसिपेटरी नोट होता है। इसके माध्यम से विदेशी निवेशक उस विदेशी संस्थागत निवेशक को अपने लिए कोई सौदा करने का निर्देश देता है। लेकिन जब यह सौदा बाजार में होता है तो नाम विदेशी संस्थागत निवेशक का ही आता है असली विदेशी ग्राहक का नहीं। असल में पार्टिसिपेटरी नोट के माध्यम से शेयर खरीदने बेचने वाले की पूरी जानकारी सेबी को नहीं मिल पाती। यानी पार्टिसिपेटरी नोट विदेशी निवेशकों को बाजार में पैसा लगाने और बेचकर निकलने का आसान और छिपा रास्ता है। एक तरह से ये बेनामी विदेशी सौदे हैं। असल में ऐसे विदेशी निवेशक यह रास्ता चुनते हैं जो अपना रजिस्ट्रेशन सेबी के पास नहीं कराना चाहते या जिन पर सेबी ने रोक लगा रखी है। हम आपको बता दें कि मार्च 2004 में केवल 14 विदेशी संस्थागत निवेशक ही पार्टिसिपेटरी नोट जारी करते थे जिनकी संख्या अब बढ़कर 34 हो गई है। सेबी का कहना है कि इस समय भारतीय शेयर बाजार में कुल विदेशी संस्थागत निवेश का 51 फीसदी हिस्सा पार्टिसिपेटरी नोट का है। सेबी अध्यक्ष का कहना है कि पार्टिसिपेटरी नोट के संबंध में रखे गए प्रस्ताव पी नोट के खिलाफ हैं न कि विदेशी संस्थागत निवेशकों के।
सेबी के प्रस्ताव
पी नोट का यह है झंझट पुराना
सेबी और रिजर्व बैंक ने इस बात पर जोर दिया है कि पी नोट्स के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने की आवश्यकता है। हालांकि, पार्टिसिपेटरी नोट को रोकने के लिए यह पहली बार कुछ नहीं कहा गया है। जब भी पार्टिसिपेटरी नोट पर अंकुश लगाने की बात होती है, शेयर बाजार में घबराहट भरी गिरावट आती है। स्थिति को आप भी देखिए कि पार्टिसिपेटरी नोट का कुल अनुमानित मूल्य मार्च 2004 के 31875 करोड़ रूपए से बढ़कर अगस्त 2007 में 353484 करोड़ रूपए पहुंच गया। यही वजह है रिजर्व बैंक इस मामले पर सेबी को जगाता रहा है जिसकी वजह से सेबी ने कुछ कदम उठाने की बात कही। सेबी विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश को लेकर चिंतित है। वह इन पर अब पूरा अंकुश चाहती है। इस कदम को उठाने की पहल इसलिए की गई है कि अचानक से ऐसा बड़ा निवेश न आए जिसकी उम्मीद न की गई हो और फिर एकदम से वह पैसा बाहर निकल जाए जिससे बाजार को तगड़ा झटका लगे।
सब कुछ नहीं मिटेगा
निवेशक घबराएं नहीं क्योंकि सब कुछ मिटने नहीं जा रहा है। बुनियादी रुप से मजबूत कंपनियों के शेयर मजबूत रहेंगे। हां जिन में जमकर सट्टा चल रहा था या कमजोर कंपनियां जो गलत ढंग से दौड़ रही थी में काफी नुकसान होगा। सेबी ने पार्टिसिपेटरी नोट पर अभी कोई आदेश जारी नहीं किया है या कोई अंतिम सिफारिश नहीं दी है। सेबी ने केवल डिस्क्शन पेपर जारी किया है लेकिन इसकी भाषा से लगता है कि सेबी पार्टिसिपेटरी नोट को नियंत्रित करना चाहती है। इस चर्चा पर राय भेजने का समय केवल 20 अक्टूबर तक का है। यानी चार दिन में सब कुछ करना है।
क्या है पी नोट
पार्टिसिपेटरी नोट किसी विदेशी संस्थागत निवेशक और उसके विदेशी ग्राहक के बीच होने वाला समझौता पार्टिसिपेटरी नोट होता है। इसके माध्यम से विदेशी निवेशक उस विदेशी संस्थागत निवेशक को अपने लिए कोई सौदा करने का निर्देश देता है। लेकिन जब यह सौदा बाजार में होता है तो नाम विदेशी संस्थागत निवेशक का ही आता है असली विदेशी ग्राहक का नहीं। असल में पार्टिसिपेटरी नोट के माध्यम से शेयर खरीदने बेचने वाले की पूरी जानकारी सेबी को नहीं मिल पाती। यानी पार्टिसिपेटरी नोट विदेशी निवेशकों को बाजार में पैसा लगाने और बेचकर निकलने का आसान और छिपा रास्ता है। एक तरह से ये बेनामी विदेशी सौदे हैं। असल में ऐसे विदेशी निवेशक यह रास्ता चुनते हैं जो अपना रजिस्ट्रेशन सेबी के पास नहीं कराना चाहते या जिन पर सेबी ने रोक लगा रखी है। हम आपको बता दें कि मार्च 2004 में केवल 14 विदेशी संस्थागत निवेशक ही पार्टिसिपेटरी नोट जारी करते थे जिनकी संख्या अब बढ़कर 34 हो गई है। सेबी का कहना है कि इस समय भारतीय शेयर बाजार में कुल विदेशी संस्थागत निवेश का 51 फीसदी हिस्सा पार्टिसिपेटरी नोट का है। सेबी अध्यक्ष का कहना है कि पार्टिसिपेटरी नोट के संबंध में रखे गए प्रस्ताव पी नोट के खिलाफ हैं न कि विदेशी संस्थागत निवेशकों के।
सेबी के प्रस्ताव
1-विदेशी संस्थागत निवेशक यानी एफआईआई या उनके सब एकाउंट की ओर से डेरिवेटिव्स के लिए पार्टिसिपेटरी नोट या इसी तरह के दूसरे ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रुमेंट जारी करने पर तत्काल रोक लगाना। जो पार्टिसिपेटरी नोट पहले जारी हो चुके हैं उन्हें 18 महीने के अंदर निपटाया जाए। हालांकि, नकद बाजार में ऐसी रोक का प्रस्ताव नहीं है।
2- विदेशी संस्थागत निवेशक के सब एकाउंट की ओर पार्टिसिपेटरी नोट जारी किया जाना पूरी तरह बंद हो।
3-जिस विदेशी संस्थागत निवेशक की ओर से जारी पार्टिसिपेटरी नोट डेरिवेटिव्स छोड़कर का अनुमानित मूल्य भारत में उसके कुल निवेश के 40 फीसदी से ज्यादा हो, उन्हें मौजूदा पार्टिसिपेटरी नोट के रद्द होने, भुनाए जाने या बंद होने पर उतने के बराबर ही नए पार्टिसिपेटरी नोट जारी करने की अनुमति रहे। सेबी के प्रस्ताव के लिए पूरी डिटेल आप पढ़ सकते हैं
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टिप्पणियाँ
मनोज
यही ख़तरनाक है और सेबी यदि इस प्रवृति पर अंकुश लगाने की बात कर रही है तो अफ़रा-तफ़री होनी ही है। आलेख अनेकानेक बिंदुओं पर प्रकाश डालता है। धन्यवाद कमल भाई.