शेयर बाजार के लिए रिकपलिंग का वर्ष
नया वर्ष का पहला दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए एक शानदार दिन रहा। लेकिन अब पूरे साल यह बाजार कैसा रहेगा, क्या अमरीका में मंदी के बढ़ रहे धीमे कदमों की आहट भारतीय बाजार पर पड़ेगी या नहीं। दुनिया भर के शेयर बाजारों में होने वाली उठापटक से हमारे बाजार अछूते रहेंगे या फिर हर असर हमारे बाजारों पर देखने को मिलेगा। यानी यह वर्ष डिकपलिंग का होगा या रिकपलिंग का।
गोल्डमैन सेक्स और मार्गन स्टेनली के इक्विटी बाजार के विशेषज्ञों ने शेयर बाजारों के लिए सबसे पहले डिकपलिंग की थ्योरी विकसित की थी। यह एक ऐसी विचारधारा है जिसके तहत कोई एक निश्चित बाजार अपना कामकाज दुनिया के दूसरे बाजारों के साथ किसी तरह के संबंध रखे बगैर या बाहरी परिबलों से प्रभावित हुए बगैर चालू रखते हैं। यह थ्योरी नई होने के बावजूद तर्कसंगत है और इसे स्वीकार करने का कोई कारण भी नहीं है।
वर्ष 2007 का आखिर महीना विदा हो चुका है और अमरीका में मंदी फैलने का भय थम नहीं रहा है। क्रेडिट बाजार की होती ऐसी तैसी, सबप्राइम और डॉलर में बढ़ती कमजोरी जैसे कारकों ने डिकपलिंग थ्योरी के पक्षधरों को भी अपने दावे के संबंध में विचार करने पर विवश कर दिया है। कुछ समय पहले ही घरेलू पूंजी बाजार के विशेषज्ञ यह कह रहे थे कि वैश्विक बाजारों की हलचल का असर भारतीय शेयर बाजार पर नहीं होगा जबकि अब भारतीय शेयर बाजार वैश्चिक हलचल से प्रभावित होते हैं और उनके आधार पर ही चाल तय होती है। इस आधार पर देखें तो डिकपलिंग थ्योरी का असर कम होता जा रहा है। वैश्विकरण के दौर में कोई भी बाजार दुनिया भर के बाजारों में पड़ने वाले असर से अछूता नहीं रह सकता।
मार्गन स्टेनली के प्रमुख स्टिफन रोक का कहना है कि डिकपलिंग एक अच्छी थ्योरी है लेकिन आने वाले समय में यह सही होगी, कहा नहीं जा सकता। गोल्डमैन सेक्स के अर्थशास्त्री पीटर बैरेजीन तो इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए कहते हैं कि वर्ष 2008 रिकपलिंग का वर्ष रहेगा। रिकपलिंग यानी दुनिया भर के बाजारों का एक दूसरे बाजार के साथ नाता बढ़ना। यह डिकपलिंग के विपरीत थ्योरी है। इन बयानों के आने के बाद लगता है कि बाजार विशेषज्ञों को अपने विचार बदलने पड़ सकते हैं।
गोल्डमैन सेक्स के अर्थशास्त्री जिन 38 देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर रखते हैं उनमें से 26 देशों की विकास दर कमजोर पड़ेगी। जबकि 12 देशों की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी। नतीजन इस साल अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास दर 4.70 फीसदी से घटकर चार फीसदी रह जाएगी।
आईसीआईसीआई बैंक के ग्लोबल रिसर्च विभाग के मुखिया जी रामचंद्र का कहना दुनिया भर के अधिकतर विश्लेषक अब डिकपलिंग थ्योरी में भरोसा नहीं रखते। यदि अमरीका में मंदी आई तो इसका असर जापान, यूरोप और चीन की अर्थव्यवस्था पर गहरा पड़ेगा ही। यदि चीन में इसका असर होगा तो उसकी वजह से दूसरे एशियाई बाजारों मसलन कोरिया, ताईवान, फिलीपिंस और इंडोनेशिया पर प्रभाव पड़ेगा ही। जबकि, भारत पर इसका असर सीमित रहेगा। इसका मतलब यह हुआ कि इस वर्ष निवेशकों को दुनिया भर के शेयर बाजारों में घटने वाली हर घटना पर नजर और दुनिया की मुख्य अर्थव्यवस्थाओं की खोज खबर लेते रहनी होगी।
गोल्डमैन सेक्स और मार्गन स्टेनली के इक्विटी बाजार के विशेषज्ञों ने शेयर बाजारों के लिए सबसे पहले डिकपलिंग की थ्योरी विकसित की थी। यह एक ऐसी विचारधारा है जिसके तहत कोई एक निश्चित बाजार अपना कामकाज दुनिया के दूसरे बाजारों के साथ किसी तरह के संबंध रखे बगैर या बाहरी परिबलों से प्रभावित हुए बगैर चालू रखते हैं। यह थ्योरी नई होने के बावजूद तर्कसंगत है और इसे स्वीकार करने का कोई कारण भी नहीं है।
वर्ष 2007 का आखिर महीना विदा हो चुका है और अमरीका में मंदी फैलने का भय थम नहीं रहा है। क्रेडिट बाजार की होती ऐसी तैसी, सबप्राइम और डॉलर में बढ़ती कमजोरी जैसे कारकों ने डिकपलिंग थ्योरी के पक्षधरों को भी अपने दावे के संबंध में विचार करने पर विवश कर दिया है। कुछ समय पहले ही घरेलू पूंजी बाजार के विशेषज्ञ यह कह रहे थे कि वैश्विक बाजारों की हलचल का असर भारतीय शेयर बाजार पर नहीं होगा जबकि अब भारतीय शेयर बाजार वैश्चिक हलचल से प्रभावित होते हैं और उनके आधार पर ही चाल तय होती है। इस आधार पर देखें तो डिकपलिंग थ्योरी का असर कम होता जा रहा है। वैश्विकरण के दौर में कोई भी बाजार दुनिया भर के बाजारों में पड़ने वाले असर से अछूता नहीं रह सकता।
मार्गन स्टेनली के प्रमुख स्टिफन रोक का कहना है कि डिकपलिंग एक अच्छी थ्योरी है लेकिन आने वाले समय में यह सही होगी, कहा नहीं जा सकता। गोल्डमैन सेक्स के अर्थशास्त्री पीटर बैरेजीन तो इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए कहते हैं कि वर्ष 2008 रिकपलिंग का वर्ष रहेगा। रिकपलिंग यानी दुनिया भर के बाजारों का एक दूसरे बाजार के साथ नाता बढ़ना। यह डिकपलिंग के विपरीत थ्योरी है। इन बयानों के आने के बाद लगता है कि बाजार विशेषज्ञों को अपने विचार बदलने पड़ सकते हैं।
गोल्डमैन सेक्स के अर्थशास्त्री जिन 38 देशों की अर्थव्यवस्था पर नजर रखते हैं उनमें से 26 देशों की विकास दर कमजोर पड़ेगी। जबकि 12 देशों की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी। नतीजन इस साल अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विकास दर 4.70 फीसदी से घटकर चार फीसदी रह जाएगी।
आईसीआईसीआई बैंक के ग्लोबल रिसर्च विभाग के मुखिया जी रामचंद्र का कहना दुनिया भर के अधिकतर विश्लेषक अब डिकपलिंग थ्योरी में भरोसा नहीं रखते। यदि अमरीका में मंदी आई तो इसका असर जापान, यूरोप और चीन की अर्थव्यवस्था पर गहरा पड़ेगा ही। यदि चीन में इसका असर होगा तो उसकी वजह से दूसरे एशियाई बाजारों मसलन कोरिया, ताईवान, फिलीपिंस और इंडोनेशिया पर प्रभाव पड़ेगा ही। जबकि, भारत पर इसका असर सीमित रहेगा। इसका मतलब यह हुआ कि इस वर्ष निवेशकों को दुनिया भर के शेयर बाजारों में घटने वाली हर घटना पर नजर और दुनिया की मुख्य अर्थव्यवस्थाओं की खोज खबर लेते रहनी होगी।
टिप्पणियाँ
- एक अनुज
स्थिति जो भी हो 'ग्लोबल मेल्टडाउन' में शेयर बाजार से जुडे लगभग सभी निवेशकों अपना कुछ या बहुत कुछ गवांया है।
यदि भारतीय शेयर बाजार में 'ग्लोबल सुनामी' आ गया तो ... देश भले ही 10 प्रतिशत के आर्थिक विकास को प्राप्त कर ले परन्तु छोटे-बडे सभी निवेशकों का आर्थिक विकास ' - ' (माईनस, ऋणात्मक)दिशा की ओर पलट जाएगा....