आतंक के खिलाफ युद्ध में पैसा ही पैसा

military सफल निवेशक वह है जो आने वाले समय के उन उद्योगों में निवेश करता रहे जहां रिटर्न अधिक मिलने की उम्‍मीद हो। शेयर बाजार में एक खास बात यह देखने को मिलती है की हर नई तेजी के समय पिछली तेजी की कुछ कंपनियां छूट जाती हैं और कुछ ऐसी कंपनियां अगली तेजी में चमक जाती है जिनके बारे में हर निवेशक अनुमान नहीं लगा पाता। यही हालत उद्योगों की होती है। मसलन कुछ अरसे पहले पावर सेक्‍टर की ओर किसी का ध्‍यान नहीं था लेकिन अब हर निवेशक पावर सेक्‍टर से जुड़ी कंपनियों के शेयर लपक रहा है। शेयर बाजार में अगली तेजी की अब जो लहर चलेगी उसमें दो उद्योग उभरकर आएंगे। ये हैं शीपयार्ड और हथियार उद्योग। भारत में अब तक हथियार उद्योग पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में रहा है लेकिन अब इसमें बढ़ती निवेश जरुरत की वजह से निजी क्षेत्र की भागीदारी शुरु हो रही है। समूची दुनिया में हथियार की बढ़ रही दौड़ से हथियार बनाने वाली कंपनियों में किया गया निवेश आने वाले दिनों में बेहद फायदेमंद होगा।

अर्नस्‍ट एंड यंग ने दुनिया भर में हो रहे सैन्‍य खर्च पर जारी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2040 तक अमरीका दुनिया का सबसे बड़ा प्रतिरक्षा बाजार होगा। जबकि चीन एशिया में सेना पर खर्च करने वाला प्रमुख देश होगा जबकि इजरायल जो कि भारत का दूसरा सबसे बड़ा प्रतिरक्षा भागीदार है, के रुस से आगे निकल जाने की संभावना है। वर्ष 2010 तक भारत और रुस के बीच प्रतिरक्षा कारोबार दस अरब अमरीकी डॉलर का रहेगा।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में मिलिट्री हार्डवेयर का आयात करने वाला सबसे बड़ा देश होगा। रिपोर्ट में उम्‍मीद जताई गई है कि भारत प्रतिरक्षा उत्‍पादन और घरेलू उत्‍पादन क्षमताओं को विकसित करने में आत्‍मनिर्भर होने की दिशा में आगे बढ़ेगा। अर्नस्‍ट एंड यंग के साझीदार कुलजीत सिंह का कहना है कि हथियार के मामले में भारत में चीन के बाद बड़ी कारोबारी संभावनाएं हैं। भारत का प्रतिरक्षा खर्च वर्ष 2004/05 से वर्ष 2007/08 के बीच प्रतिरक्षा खर्च की सालाना औसत वृद्धि दर आठ फीसदी रही। भारत का वर्ष 2007/08 में प्रतिरक्षा बजट 960 अरब रुपए का था जिसमें 44 फीसदी हिस्‍सा नए हथियार, प्रणालियां और इक्विपमेंट खरीदने के लिए रखा गया। भारत ने वर्ष 2005/06 में छह अरब डॉलर से अधिक के मिलिट्री हार्डवेयर आयात किए। भारत के बाद दूसरे विकासशील देशों में सबसे ज्‍यादा हथियार खरीदने वालों में सउदी अरब और चीन रहे। इन दोनों देशों ने दो से तीन अरब डॉलर के सौदे किए। रुस भारत को हर साल डेढ़ अरब डॉलर के हथियार बेचता है और इजरायल एक अरब डॉलर के हथियार बेचता है। यानी इजरायल रुस से ज्‍यादा पीछे नहीं है।

भारत प्रतिरक्षा के क्षेत्र में अपनी 70 फीसदी जरुरत के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है और केवल 30 फीसदी जरुरत निजी क्षेत्र के माध्‍यम से पूरी करती है। सरकार का इरादा वर्ष 2010 तक अपनी 70 फीसदी प्रतिरक्षा जरुरतों को घरेल स्‍त्रोतों से पूरा करने का है। देश में हथियारों के मामले में निजी क्षेत्र की भागीदारी को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। देश में इस समय निजी क्षेत्र के लिए प्रतिरक्षा बाजार 70 करोड़ अमरीकी डॉलर का है। भारत में प्रतिरक्षा उद्योग में निजी क्षेत्र की बढ़ाई जा रही भागीदारी के बाद इस बाजार में बढ़ोतरी हो रही है। भारत मिलट्री हार्डवेयर के निर्यात पर भी ध्‍यान दे रहा है। इनमें रशियन-भारतीय क्रूज मिसाइल्‍स सहित राइफल्‍स, राकेट और राडार का निर्यात शामिल है। यह निर्यात पड़ौसी देशों के साथ तीसरी दुनिया के देशों को किया जाएगा। हालांकि, भारत हथियारों का निर्यात अपनी पसंद के देशों को ही करना चाहता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2006 में दुनिया भर का सैन्‍य खर्च 1204 अरब अमरीकी डॉलर रहा जो पूर्व वर्ष की तुलना में 3.5 फीसदी अधिक था। इस खर्च में अमरीका की हिस्‍सेदारी सर्वाधिक थी, जिसने आंतक के खिलाफ युद्ध के नाम पर बड़ी राशि खर्च की। अमरीका का यह खर्च इराक और अफगानिस्‍तान के पीछे हुआ है।

टिप्पणियाँ

Ashish Maharishi ने कहा…
यह एक शर्मनाक वाकया है खासतौर पर हमारे जैसे देश के लिए जहां लोग भूख से मरते हैं, कर्ज के कारण आत्‍महत्‍या करते है, जहां शिक्षा, हेल्‍थ जैसी बेसिक सुविधाओं की घोर कमी है, उस देश में हथियारों के नाम पर अरबो रुपए बर्बाद किए जा रहे हैं
आशिषजी हमारा देश अरबो रूपैये बरबाद कर रहा है?!!!

यह रक्षा में खर्च हो रहा है, न की पिकनिक मनाने में. खतरा बाहरी भी है अन्दरूनी लाल-आतंक का भी है.
Ashish Maharishi ने कहा…
संजय जी मैं मानता हूं कि यह पैसा पिकनिक मनाने में खर्च नहीं हो रहा है लेकिन आप ही बताई क्‍या केंद्र सरकार को आधारभूत सुविधाओं में अधिक से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए। यदि हमारे देश की नौजवान पीढ़ी भूखी, नंगी रहेगी तो यह हथियार कौन उठाएगा। और इस बात से कैसे इंकार किया जा सकता है कि हर विकासशील देश पर विकसित देशों का दबाव रहता है कि वो अधिक से अधिक हथियार खरीद कर उनके हथियारों के धंधें को चार चांद लगाएं। पिछले दिनों एक रपट पर नजर गई थ‍ी, जिसमें लिखा था कि इराक पर हमला भी इसी मकसद से किया गया था। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि अपनी रक्षा के लिए खर्च मत किजीए लेकिन देश के निर्माण का भी बजट बढ़ना चाहिए

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