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भारतीय शेयर बाजार नई तेजी की ओर

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अंतरराष्‍ट्रीय इक्विटी विश्‍लेषक फर्म इलियटवेव ने जब यह कहा कि भारतीय शेयर बाजार का सेंसेक्‍स अगले 15 साल में एक लाख अंक पर पहुंच जाएगा तो अनेक निवेशकों और विश्‍लेषकों ने इसे हसंने के अंदाज में लिया कि आज क्‍या होगा, यह बताओं, 15 साल किसने देखें। लेकिन एशियाई बाजारों में आने वाले दिन भारतीय शेयर बाजार के होंगे। हो सकता है घरेलू शेयर बाजार चीन जैसे बाजार को भी पीछे छोड़ दें। भारतीय शेयर बाजार के बेहद मजबूत बनने के अनेक कारक अब पैदा होते जा रहे हैं जिसमें अति धैर्यवान निवेशक भारी भरकम मुनाफा कमाने की स्थिति में होंगे। लेकिन इस खजाने को हासिल करने के‍ लिए आज किए गए निवेश पर धैर्य रखना होगा। यहां धैर्य रखने की समय सीमा पर एक बात साफ कर दूं कि धैर्य का मतलब यह कदापी नहीं हैं कि आज शेयर खरीदें और अगले 15 साल तक उन्‍हें न देखें। अपने निवेश पर बीच बीच में मुनाफावसूली करते रहें और हर गिरावट पर फिर से खरीद जरुर करते रहें। यह न तो इंट्रा डे ट्रेडिंग है और ना ही चुपचाप बैठने वाली सलाह। भारतीय उपमहाद्धीप में हमारे शेयर बाजार के लिए जो सकारात्‍मक कारक पैदा हो रहे हैं वे भौगोलिक हैं। श्रीलंका में पिछल

शेयर बाजार को आखिरी धक्‍का मारने की तैयारी !

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मंदी में डूबे शेयर बाजार को क्‍या अब आखिरी धक्‍का मारने की तैयारी हो रही है। आम निवेशक के विचारों को आगे रखें तो शेयर बाजार में मंदी का अंत नहीं है और उन्‍हें ऐसा लगता है सब कुछ जीरो हो जाएगा। लेकिन ऐसा है नहीं। आम निवेशक की मनोस्थिति में उसे जीरो के अलावा कुछ नहीं दिख रहा जबकि अंधेरे के बाद उजाला और उजाले के बाद अंधियारा प्रकृति का नियम है। शेयर बाजार में यह कोई पहली बार मंदी नहीं आई है। ऐसा कई बार हुआ है लेकिन अब तक निचले और आकर्षक स्‍तर पर लेवाली कर फिर लौटी तेजी में मुनाफाकमाने वाले इस बार की मंदी में गच्‍चा खा गए हैं। हर घटे स्‍तर को निचला स्‍तर मानकर शेयर खरीदने वालों ने पैसा कमाया ही नहीं, बल्कि गंवाया ही है। शेयर बाजार की तलहटी का पता न लगते देख अब ऐसे निवेशकों ने खरीद रोक दी है। मंदडि़यों ने पूरे देश को ही नहीं बल्कि सारी दुनिया को मंदी में उतार दिया है। बस बेचो..बस बेचो...यही एक शब्‍द सब जगह गुंज रहा है। लेकिन हर बार ऐसा हुआ है पूरी तरह मंदी या तेजी में डूबा देने के बाद खिलाड़ी खेल बदलते हैं। यदि आपको याद हो तो दिसंबर 2008 में हर कोई मानकर चल रहा था कि रिलायंस पावर का आईपीओ

शेयर बाजार में अगली गिरावट से पहले पुलबैक रैली संभव

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‘अवर इकॉनामी आर लैस इफेक्‍टेड देन अदर्स...’ भारत दुनिया भर की मंदी से अलग है, देश की आर्थिक विकास दर को कोई आंच नहीं आएगी, भारतीय अर्थव्‍यवस्‍‍था स्‍थानीय मांग पर आधारित है...जैसी बात कहकर आम जनता और निवेशकों को भ्रम में रखने वाले हमारे अर्थशास्‍त्री नेताओं और ब्‍यूरोक्रेटस को अब पता चलने लगा है कि वाकई अमरीकी व यूरोपीय मंदी हमारी तरफ तेजी से बढ़ रही है। शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट से पहले केवल आम चुनाव तक एक पुलबैक रैली की संभावना है जिसे हमारे यहां सुधार की संज्ञा दी जा रही है लेकिन स्थिति खराब होने के आसार अधिक है। आर्थिक विकास की दर को नौ से आठ और फिर सात फीसदी बताने वाले अर्थशास्‍त्री अब स्‍वीकार कर रहे हैं कि यह 5.3 से 5 फीसदी ही रह सकती है। आम उपभोक्‍ता वस्‍तुओं की मांग घटने से ही महंगाई दर 3.36 फीसदी पहुंची हैं। जबकि हकीकत में जीवन की जरुरत वाली वस्‍तुओं के दाम वाकई उतने नहीं घटे हैं जितनी महंगाई दर का कम होना बताया जा रहा है। औद्योगिक उत्‍पादन के साथ अब कृषि क्षेत्र भी विकास दर में गिरावट दिखा रहा है। ऐसे में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए मौजूदा यूपीए सरकार ने सरकारी तिजोरी पूरी

बीएसई सेंसेक्‍स का 6940 अंक के आसपास बनेगा बॉटम

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दुनिया भर के शेयर बाजारों के निवेशकों के सामने इन दिनों एक ही सवाल है कि इस गिरते बाजार का बॉटम कहां हैं। क्‍या होगा सबसे निचला स्‍तर जहां से शेयर बाजार फिर ऊपर की ओर लौट सकता है। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था वाले देश अमरीका से लेकर छोटी अर्थव्‍यवस्‍था वाला हर देश इन दिनों मंदी के दलदल में फंसता जा रहा है। अर्थव्‍यवस्‍थाओं के लिए एक के बाद एक आ रहे राहत पैकेज छोटे पड़ते जा रहे हैं। ऐसे में शेयर बाजारों के बॉटम की बात कौन करें। दुनिया के विख्‍यात निवेशक जॉर्ज सोरोस का कहना है कि विश्व की वित्तीय प्रणाली पूरी तरह से बिखर चुकी है। उनकी राय में इस संकट से जल्द छुटकारा मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। इस बार का संकट दूसरे विश्व युद्घ से पहले की महामंदी से भी गंभीर है। उन्होंने अभी के संकट की तुलना सोवियत संघ के पतन से की। निवेश बैंकर लीमैन ब्रदर्स के पिछले साल सितंबर में पतन को उन्होंने मौजूदा वित्तीय प्रणाली के लिए एक निर्णायक मोड बताया। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एक डिनर में उन्होंने कहा कि हमने वित्तीय प्रणाली को बिखरते देखा है। ये लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि संक

शेयर बाजार के लिए बड़ी हलचल का है यह सप्‍ताह

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कार्पोरेट नतीजों के इस मौसम में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के बेहतर कार्य नतीजों और देश की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्‍ट्रीज का प्रदर्शन आशंका से कम खराब आने की वजह से निवेशकों ने शेयर बाजार में अपने निवेश को बनाए रखा हैं। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की कई बुनियादी बातों ने निवेशकों के मन में यह विश्‍वास बैठा रखा है कि शेयर बाजार में तेजी की किरण जल्‍दी दिखाई देगी। हालांकि, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था अमरीका में नए राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के आने से पूर्व राष्‍ट्रपति रुजवेल्‍ट जैसे चमत्‍कार की उम्‍मीद की जा रही है। लेकिन ओबामा के लिए मंदी की चपेट में आई अमरीकी अर्थव्‍यवस्‍था को उबारने की कोई जादूई छड़ी नहीं है। लेकिन वे 1929 की महामंदी से उबारने के रुजवेल्‍ट के किए गए प्रयासों से कई पाठ सीख सकते हैं। यदि ओबामा अमरीका को मंदी से उबार ले जाते हैं तो वे इस सदी के महानायक बनकर उभर जाएंगे। अमरीका और यूरोप में बैंकिंग जगत को अपना अस्तित्‍व टिकाए रखना मुश्किल नजर आ रहा है। यहां पैदा हुई बैंकिंग जगत की मुश्किलों ने दुनिया के सभी देशों पर प्रतिकूल असर डाला है, हालांकि भारत में भारती

अगले वर्ष निफ्टी 2333-4888 के बीच रहेगा

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वर्ष 2008 अमरीका में सब प्राइम, मार्गेज संकट में खरबों डॉलर की एसेटस की धुलाई, अमरीकी वित्तीय प्रणाली के आधार स्‍तंभ सिटी ग्रुप, मेरिल लिंच, मार्गन स्‍टेनली, एआईजी सहित अनेक संस्‍थाओं को हिलाकर रख देने एवं पश्चिमी देशों की वित्तीय प्रणाली खोखली साबित करने के साथ विदा ले रहा है। वर्ष 2008 में दुनिया भर के शेयर बाजारो ने अपना उच्‍च स्‍तर और निम्‍न स्‍तर तो देखा ही, वित्त एवं इक्विटी क्षेत्र के बड़े बड़े खिलाड़ी बाजार की चाल को जानने में नाकामयाब रहे। दुनिया भर में 1929 जैसी महामंदी होने के बावजूद भारत की वित्तीय प्रणाली जिसमें अभी भी काफी कुछ सरकारी नियंत्रण के तहत है, पर इसकी आंच कम आई। आर्थिक महामंदी को रोकने के लिए दुनिया के लगभग सभी देश जोरदार कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश के तहत उद्योगों, वित्त बाजारों को प्रोत्‍साहन एवं राहत देने के लिए स्‍टीम्‍युलस पैकेज घोषित किए जा रहे हैं लेकिन ये पैकेज असरकारक नहीं दिख रहे। अमरीका, ब्रिटेन, जापान सहित अनेक देशों में ब्‍याज दर शून्‍य के करीब आ गई है लेकिन अर्थव्‍यवस्‍थाएं पटरी पर आने का नाम ही नहीं ले रहीं। अब कार्पोरेट जगत ने अपनी विस्‍तार, विवि

पैकेज की ऑक्‍सीजन से शेयर बाजार को उठाने की कोशिश

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भारतीय शेयर बाजार पिछले साल इन्‍हीं दिनों भारी ऊफान पर थे और बीएसई सेंसेक्‍स के जल्‍दी ही 30 हजार, 35 हजार तक पहुंचने जाने की गर्मा गर्म चर्चाएं हर निवेशकों के बीच हो रही थी लेकिन इस साल बातें केवल यह हो रही है कि अब क्‍या लगता है। इस क्‍या लगता है के लिए अमरीका के नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति बिडेन का कहना है कि देश की इकॉनमी पर पूरी तरह धराशायी होने का खतरा मंडरा रहा है। 'देश की इकॉनमी हमारी सोच से कहीं ज्यादा बुरी हालत में 600 से 700 अरब डॉलर के एक प्रोत्साहन पैकेज की जरुरत है। इकॉनमी को पूरी तरह धराशायी होने से बचाने का इसके अलावा कोई तरीका नहीं है। बिडेन के इस बयान को समझे तो शेयर बाजार के हालात जल्‍दी अच्‍छे होने के संकेत नहीं है। अमरीका और कई देशों में अर्थव्‍यवस्‍था को फिर से खड़ा करने के लिए वित्तीय पैकेज दिए जा रहे हैं। अलग अलग उद्योगों के लिए पैकेज दर पैकेज आ रहे हैं। भारत में भी अर्थव्‍यवस्‍था को खड़ा करने के लिए इसी कदम का अनुसरण किया जा रहा है। पहले 30700 करोड़ रुपए के पैकेज के बाद सरकारी बैंकों का सस्‍ता होम लोन पैकेज आया। अब निजी बैंक भी सस्‍ते होम लोन के पैकेज ला रहे